वह उचकती जा रही थी
अपने पंजों पर .
लहंगा चोली पर फटी चुनरी
बमुश्किल सर ढँक पा रही थी
हाथ भी तो जल रहे होंगे .
माँ की छाया में
छोटे छोटे डग भरती ,
सूख गए होंठों पर जीभ फेरती ,
माँ मुझे गोद में उठा लो
की इच्छा को
सूखे थूक के साथ
हलक में उतारती .
देखा उसने तरसती आँखों से मेरी और ,
अपनी बेबसी पर चीत्कार कर उठा .
चाहता था देना उसे
टुकड़ा भर छाँव
पर अपने ठूंठ बदन पर
जीवित रहने मात्र
दो टहनियों को हिलते देख
चाहा वही उतार कर दे दूँ उसे
न दे पाया .
जाता देखता रहा विकास की राह पर
एक मासूम सी कली को मुरझाते हुए .
अपने पंजों पर .
लहंगा चोली पर फटी चुनरी
बमुश्किल सर ढँक पा रही थी
हाथ भी तो जल रहे होंगे .
माँ की छाया में
छोटे छोटे डग भरती ,
सूख गए होंठों पर जीभ फेरती ,
माँ मुझे गोद में उठा लो
की इच्छा को
सूखे थूक के साथ
हलक में उतारती .
देखा उसने तरसती आँखों से मेरी और ,
अपनी बेबसी पर चीत्कार कर उठा .
चाहता था देना उसे
टुकड़ा भर छाँव
पर अपने ठूंठ बदन पर
जीवित रहने मात्र
दो टहनियों को हिलते देख
चाहा वही उतार कर दे दूँ उसे
न दे पाया .
जाता देखता रहा विकास की राह पर
एक मासूम सी कली को मुरझाते हुए .
These are good thoughts. I hope you find time to transliterate them in Hindi. (I may suggest Lipikaar Add-in in FireFox browser for Hindi typing.)
ReplyDeleteWaiting for more original thoughts from you!
बहुत अच्छा है
ReplyDelete"सूख गये होठो पर जीभ फेरती" अच्छा चित्रण है। पूरी की पूरी रचना बहुत ही खूबसूरत है।
ReplyDelete2007 से मेरा सफ़र शुरू हुआ था
ReplyDeleteतब से अब तक जारी है
बधाई
behad bhavpoorn.. congratulation.. keep writing
ReplyDeleteबधाई आपको ...लिखती रहें
ReplyDeleteबहुत -बहुत बधाई ! लेखन का सफ़र ऐसे ही चलता रहे !
ReplyDeletebahut bahut mubarak , bahut sari shubhkaanaye aap aise hi likhte rahen .....:)
ReplyDeletekam shabdo main kafi vistarit aur vyathit karne wali baat kahi aapne
ReplyDeleteबहुत सुंदर सटीक और मार्मिक लेखन,बधाई
ReplyDeleteKeep it up