पग -पग नीर डग -डग रोटी वाले मालवा की हालत रेगिस्तान सी हो गयी .पंछियों का बसेरा छिन गया .हवा भी पत्तों के झुनझुनों को याद कर उदास है उसकी तपिश हरने वाले ,उसकी रफ़्तार को थाम लेने वाले खुद ही बेजान पड़े है .हवा की हर साँस में टनों जहर उगला जा रहा है .माँ के आँचल की तरह इस जहर से बचाने वाला कोई नहीं है .थके पथिक सूरज से ही गुहार करते है पथराई आँखों से आसमान को ताकते हैं .शायद माँ के आँचल की तरह कोई बदली थोडा सा सुकून देदे .जीवन दायनी धूप चुभती नहीं छेद देती है .कहा तो था नीम और ग्रीन पर सब तो बेबस पड़े है चौक जाते है हर आहट पर ,कही अंत तो नहीं आ गया .अब किसका दामन थामें किससे करे गुहार क्या कोई नहीं रखवाला ?
कविता वर्मा
कविता वर्मा
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