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Saturday, December 26, 2009

"परेंटिंग स्किल"

घर के पास ही एक आदिवासी परिवार रहता है.पति-पत्नी और उनके ५ बच्चे.सारा दिन गाय-बकरियां चराते हुए यहाँ-वहां घूमते रहते है। मां-बाप सुबह से ही काम पर निकल जातेऔर बच्चे अपने काम पर,घर का दरवाजा ऐसे ही अटका दिया जाता.जब भी कोई बच्चा वहां से निकालता एक नज़र घर पर डाल , पानी पी कर कुछ देर सुस्ता कर फिर गाय-बकरियों को इकठ्ठा करने लगता. बच्चों की आत्मनिर्भरता देख कर आश्चर्य होता.कभी-कभी सोचती ये अनपढ़ आदिवासी कैसे इन बच्चों को सिखाता होगा,फिर सोचती शायद इतना मजबूत बनना इनके खून में ही है। 
एक दिन सुबह-सुबह किसी छोटे बच्चे के चीखने की आवाज़ सुन कर घर से बाहर निकली,तो देखा उसकी सबसे छोटी  मुश्किल से ३-४ साल की लड़की मैदान में खड़ी है और ३-४ कुत्ते उसके आस-पास खड़े जोर-जोर से भौक रहे है.वह लड़की डर कर चीख रही है,उसके बड़े भाई-बहन और पिताजी पास ही खड़े देख रहे है,पर कोई भी न तो कुत्तों को भगा रहा है न ही उस लड़की को उठा कर घर ला रहा है। 
कुछ देर चिल्लाने के बाद जब उस लड़की को ये समझ आया की उसे ही इस स्थिति से निबटना है ,उसने पास पड़े पत्थर उठाये और उन कुत्तों को मारने लगी। उसे सामना करता देख उसका पिता अब इत्मिनान से पास ही पड़ी खाट पर बैठ गया,भाई-बहन अपने-अपने काम में लग गए,और वो लड़की उन कुत्तों को भगा कर घर चली गयी। 
मैं ये सारा वाकया देख कर उस अनपढ़ पिता की "परेंटिंग स्किल" को सराहती हुई अन्दर आ गयी।     

जिंदगी इक सफर है सुहाना

  खरगोन इंदौर के रास्ते में कुछ न कुछ ऐसा दिखता या होता ही है जो कभी मजेदार विचारणीय तो कभी हास्यापद होता है लेकिन एक ही ट्रिप में तीन चार ऐ...