#बाल_बाल_बचे
#गुस्से_के_गुड_इफेक्ट
मोबाइल हाथ में ही था जब एक मैसेज आया कि अकाउंट में तीन सौ रुपये आये हैं। एक बार देखा फिर सोचा आये होंगे और वापस अपने सर्फिंग में व्यस्त हो गई। वैसे भी यह विभाग मेरा नहीं है इसलिये कभी देखती भी नहीं हूँ हाँ पतिदेव को फारवर्ड कर देती हूँ तो कर दिया।
तभी एक अनजान नंबर से फोन आया "मैडम आपके अकाउंट में गलती से हमारे तीन सौ रुपये आ गये आप उसे उसी नंबर पर वापस कर दीजिए। हमसे गलती से चले गये।"
सुनते ही वह मैसेज दिमाग में कौंधा। लगा शायद किसी ने मोबाइल रिचार्ज किया होगा (क्योंकि मैं बस इतना ही करती हूँ तो इसके आगे सोच ही नहीं पाई) और एकाध डिजिट गलत दबा दी।
"हाँ तीन सौ रुपये तो आये हैं लेकिन उन्हें वापस कैसे करना है यह मुझे नहीं आता "मैंने असमर्थता जताई।
तभी पीछे से कोई दूसरा लड़का बोला "मैडम वो हम रास्ते में थे जल्दी जल्दी में गलत नंबर चला गया। हमारे लिये बहुत मुश्किल हो जायेगी आप उसे वापस कर दीजिए।"
"कहाँ से बोल रहे हो? "
"बड़ौद से हम बाहर जा रहे थे। "
अब तक मुझे उन पर दया आने लगी लेकिन तब भी मुझे सच में समझ नहीं आया कि उसके पैसे कैसे वापस करूँ।
" ऐसा करिये कि आप इंदौर आयें तो बता दें मैं कैश में आपके पैसे वापस कर दूँगी "
अब उसने पैंतरा बदला" मैडम हम बैंगलोर में हैं वहाँ से आने में ही हमें तीन हजार रुपये लग जाएंगे।"
"तो आपको ध्यान रखना चाहिए था। मैंने तो आपको कहा नहीं था पैसे डालने के लिए" बार बार एक ही बात दोहराते मेरा धैर्य जवाब देने लगा।
" मैडम प्लीज कर दीजिए न इंसानियत के लिए..."
अब तो मेरा पारा हाई हो गया।" इंसानियत के लिए का क्या मतलब? अगर मुझे पैसे वापस करना नहीं आता तो क्या मैं जानवर हो गई? क्या करूँगी मैं आपके तीन सौ रुपट्टी का? क्या बोल रहे हो कुछ समझ आ रहा है?"
अब पता नहीं मेरे गुस्से से या बातचीत से घबराकर उन्होंने कहा ठीक है मैडम और फोन बंद कर दिया।
फोन बंद करने के बाद मैंने थोड़ी देर सोचा फिर मुझे लगा कि फोन नंबर पर भी तो पे किया जा सकता है। बेचारे के लिए तीन सौ रुपये बड़ी रकम हो सकती है और मैं किसी के पैसे रखकर क्या करूँगी?
तो इंसानियत दिखाते हुए फोन नंबर पर पेमेंट करने का सोचा और एप खोलकर नंबर टाइप करने लगी। आधा नंबर टाइप करने के बाद अचानक न जाने कैसे दिमाग में कौंधा कि कहीं ये कोई फ्राड तो नहीं है? इतना ध्यान आते ही मैंने एप तुरंत बंद किया और हसबैंड को फोन लगाया।
जैसे ही उन्हें बताया वे तुरंत बोले कुछ मत करना यह फ्राड है अकाउंट डिटेल चली गई तो अकाउंट साफ हो जायेगा।
हे भगवान तो इंसानियत दिखाने की बात उकसाने के लिए थी वह तो भला हो जल्दी हाइपर होने की अपनी आदत का कि मैं भड़क गई और बाल बाल बची।
कविता वर्मा
अच्छा हुआ आप बाल-बाल बच गए । सच है ऐसे समय में जल्द बाजी ठीक नही । सीख देता हुआ संस्मरण ।
ReplyDeleteजी सच में आजकल जल्दबाजी करना बिलकुल ठीक नहीं। किसी का भला करने का आवेग किसी मुसीबत में भी फँसा सकता है।
Deleteऐसे ही की जाती डकैती
ReplyDeleteजी सच में बहुत धन्यवाद
Deleteबस बच ही गयीं । कभी कभी दरियादिली खुद को दरिया में बहा कर ले जाती है । दूसरों को सावधान करती पोस्ट ।
ReplyDeleteजी दीदी इसीलिये लिखा ताकि लोग सावधान हो जाएं
Deleteसही कहा आपने आज-कल ऐसे बहुत होता है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteजागरूकता जरूरी है।
ReplyDeleteजी बिलकुल
Deleteसही में आजकल बहुत ज्यादा हो गये हैं ऐसे फ्रॉड केस...
ReplyDeleteसावधान करता लेख ।
जी अब हर किसी पर शक होता है। बाबा भारती याद आते हैं
Deleteगुस्सा तो बहुत फलदायी रहा, सच में!
ReplyDeleteजी पता नहीं क्यों गुस्से को दुर्गुण कहा जाता है जबकि कठिन परिस्थितियों से वही बचाता है
Deleteआजकल तो सावधानी ही सुरक्षा है। सचमुच बाल-बाल बचे।
ReplyDeleteजी सावधानी के भी नित नये तरीके सीखने पड रहे हैं
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
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