आप लोग इत्तेफाक में विश्वास रखते हैं या नहीं? अगर नहीं रखते तो इस किस्से को पढ़कर बताइये कि यह क्या है?
अभी कुछ दिन पहले मैं पतिदेव की पोस्टिंग वाले शहर में रहने चली गई। अभी तक तो उनका बैचलर्स अपार्टमेंट था सिंगल बेड से काम चल रहा था। मेरे जाने के बाद दो अलग-अलग डील डौल आकार के पलंग बदलने की जरूरत महसूस हुई। तो हम लोग शहर की एक दुकान पर डबल बेड देखकर आये। चूँकि हमारा वहाँ रहना लाॅकडाउन के कारण कुछ दिन टल गया तो हमने सोचा पलंग देख लेते हैं और जब लगेगा खरीद लेंगे।
उसी दिन सुबह हमने सोचा कि एक्स्ट्रा पलंग एक परिचित को अगर जरूरत हुई तो दे देते हैं इस बारे में हमने उनसे फोन पर बात भी की। साथ ही यह भी बताया कि वे जब चाहे बता दें और पलंग ले जाएं।
सभी बातें तय हो गई।
उसी दिन दोपहर में मेरे नंबर पर एक फोन आया "मैम आपने पलंग का आर्डर दिया था उसकी डिलीवरी कब करना है?
यह चौंकाने वाला था क्योंकि अभी तक हमने कोई आर्डर नहीं दिया था। दूसरी बात कि दुकानदार के पास मेरा फोन नंबर कैसे आया? क्योंकि अनजान लोगों को मेरा नंबर नहीं देती हूँ खासकर जब हसबैंड भी साथ में डील कर रहे हैं।
"मैंने कहा कि अभी हम तुरंत नहीं ले रहे हैं आपको दो चार दिन में बता देते हैं।"
वह बोला "मैम फिर दो दिन लाॅकडाउन रहेगा।"
"हाँ ठीक है हमें अभी कोई जल्दी नहीं है" यह कहकर मैंने फोन रख दिया लेकिन इस बात से हम दोनों ही अचंभित थे। थोड़ी देर सोचने के बाद कि ऐसा कैसे हुआ हसबैंड ने उस नंबर पर फिर फोन लगाया और पूछा कि आपको ये नंबर कहाँ से मिला?
उसने कहा ये फलाने भाई ने दिया। अब उसने जिस फलाने भाई का नाम लिया था उसी नाम के हमारे परिचित से हमने सुबह पलंग देने की बात की थी।
इस बार बात करके हम और ज्यादा कंफ्यूज हो गये कि फलाने भाई अभी पलंग लेने आ रहे हैं क्या? उन्होंने ऐसा कुछ तो नहीं कहा था कि आज पलंग लेंगे।
हम सोचने लगे कि उन परिचित को फोन लगाकर पूछें कि वे किसी को पलंग लेने भेज रहे हैं क्या? इस दौरान पलंग लेना है या डिलीवर करना है का कंफ्यूजन बना रहा।
इस बात को तीन-चार घंटे बीत गये फिर अचानक फोन की घंटी बजी "मैम आपका पलंग हमने भेज दिया है आप घर पर ही हैं न"
अब यह सुनकर मुझे थोड़ा गुस्सा आया मैंने कहा "आप यह तो बताइये कि आप यह पलंग किसके घर डिलीवर करना चाहते हैं। उनका कोई नाम तो होगा?"
"मैम फलाने जी ने कहा कि पलंग डिलीवर कर दें उन्होंने ही नंबर दिया।"
दिन भर के दो तीन बार फोन पर हुई बातों को प्रोसेस करके दिमाग ने निष्कर्ष निकाला कि निश्चित रूप से यह रांग नंबर है। अब मैंने खुद को संयत किया और कहा" भाईसाहब या तो फलाने भाई ने आपको गलत नंबर दिया है या आपने गलत नंबर नोट किया है या गलत नंबर लगाया है। आप एक बार नंबर फिर से चैक करें। मैं आपकी मदद ही करना चाहती हूँ। अगर मैं कह दूँ कि पलंग ले आइये और वहाँ घर पर कोई नहीं मिला तो आपका चक्कर बेकार होगा। आप फिर मुझे फोन करेंगे लेकिन उससे क्या होगा? आप नंबर फिर से अच्छे से चैक करें। "
अब वह मेरी बात समझ गया" जी मैम समझ गया ठीक है मैं देखता हूँ "कहकर उसने फोन रख दिया।
पता नहीं फिर वह पलंग डिलीवर हुआ या नहीं दुकानदार को सही नंबर मिला या नहीं?
आपको क्या लगता है कि मुझे फोन करके पूछना चाहिये?
पूछना तो खैर नहीं होगा लेकिन आप इसे क्या कहेंगे इत्तेफाक या कुछ और?
कविता वर्मा
सोचने को विवश करता आलेख।
ReplyDeleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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