हालाँकि दशहरा तो रविवार को ही मन गया था लेकिन सोमवार सुबह भी दशमी तिथि थी। सुबह मतलब पूरे ही दिन। कल शाम मार्केट में किसी काम से रुके तो अचानक एक दुकान में और उसके सामने खूब ज्यादा भीड़ दिखी। कौतुहल हुआ कि कहाँ तो बाजार मंदी से जूझ रहा है और इस दुकान में ऐसा क्या है जो इतनी भीड़ जमा है? पहले लगा शायद किसी दुकान का उद्घाटन होगा लेकिन कहीं हार फूल नहीं दिखे और न नाश्ते खाने का इंतजाम। अब इंदौरी बिना खाने उद्घाटन तो नहीं कर सकते न। फिर ध्यान से देखा आखिर चल क्या रहा है? दरअसल दुकान दो मंजिला थी तो साइनबोर्ड काफी ऊँचा था इसलिए एकदम नजर नहीं जा रही थी और भीड़ के बीच क्या चल रहा है वह दूरी के कारण समझ नहीं आया ।फिर दुकान का नाम देखा साइकिल वर्ल्ड। ओह तो यह साइकिल की दुकान है और लोग दशहरे के शुभ मुहूर्त में साइकिल खरीदने आये हैं। तभी कुछ लोग साइकिल का ट्रायल लेते नजर आये तो कुछ साइकिल के अस्थि पंजर कसवाते।
याद आया कि कुछ ही देर पहले उज्जैन रोड़ पर बने नये पुल पर बहुत सारे लोगों को साइकिल चलाते देखा था।
आजकल इंदौर में साइकिल चलाने का क्रेज बढ़ता जा रहा है। बहुत सारे युवा प्रौढ़ साइकिल चलाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। आजकल साइकिल भी काले रंग पर पतली सी लाल सुनहरी लाइन और एक जैसे नक्शे के बजाय अलग-अलग रंग डिजाइन टायर के साइज मोटाई के रूप में मिल रही हैं और हाँ कीमत भी बहुत वैरायटी में हैं। इन डिजाइनर साइकिल की कीमत सामान्य वर्ग के हिसाब से बहुत ज्यादा हैं जिस पर कंट्रोल किये जाने की आवश्यकता है।
हालाँकि इंदौर में सड़कें साइकिल चलाने के लिये बिलकुल भी तैयार नहीं हैं न कोई अलग लेन है और न ही लोगों में साइकिलिस्ट के लिए कोई ट्रेफिक सेंस ही विकसित किया गया है लेकिन साइकिल से सफर को बढ़ावा जहाँ आयातित तेल पर निर्भरता कम कर रहा है प्रदूषण के स्तर में कमी कर सकता है और चलाने वाले के स्वास्थ्य को भी सकारात्मक अंजाम दे सकता है।
वैसे आजकल जो नई साइकिल आ रही हैं वे चाहे जितनी अच्छी दिखती हों उनमें बालबियरिंग हों या गियर हों उन्हें चलाना चाहे जितना आसान हो लेकिन मुझे उनकी बहुत छोटी और कठोर सीट बिलकुल पसंद नहीं आती। इस मामले में पुरानी काली साइकिल की चौड़ी और स्प्रिंग लगी सीट का कोई मुकाबला नहीं। अब आज के युवा कभी उस आरामदायक सीट पर बैठे ही नहीं हैं तो उसके लिए जो है सो है।
# cycling #cycle
मैं भी कई दिनों से सायकिल खरीदने पर विचार कर रहा हूँ, पर सायकिल दुकान तक नहीं पहुंचा हूँ।
ReplyDeleteसाइकिल दुकान तक मोटर साइकिल पर बैठ कर पहुंचना होगा देर न करें।
ReplyDeleteनया नौ दिन।
ReplyDeleteपुराना सौ दिन।।
प्रदूषण और जाम से मुक्ति के लिए साइकिल ही अब विकल्प है।
ReplyDeleteस्कूल के दिनों में एकदम सुबह सुबह जब वाराणसी कैंटोमेंट की सड़के बिल्कुल खाली रहती थी और तब दोस्तो के बीच साइकिल रेस होता था।😅
ReplyDeleteआजकल तो कुछ मित्रों ने "साइकिल फैन क्लब" शुरू किया है।
साइकिल साइकिल....!
साइकिल फैन क्लब एक दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिए बढ़िया है
ReplyDeleteजी जरूरी है कि प्रदूषण से मुक्ति हो और सेहत भी ठीक हो।
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