Monday, April 6, 2020

क्या है यह पंथ और वाद

बहुत दिनों से कई बातें दिमाग में उमड़ घुमड रही हैं आज कुछ कहना चाहती हूँ।

लाॅकडाउन शुरू होने के दूसरे ही दिन बेटी ने धीमे स्वर में बताया कि उसकी रूममेट बहुत पैनिक हो रही है कि कहीं उसे या परिवार में किसी को हो गया तो वे लोग आपस में मिल भी नहीं पाएंगे। सुनकर चिंता हुई जबकि जानती हूँ कि वह मानसिक रूप से बहुत स्ट्रांग है लेकिन जब चौबीस घंटे साथ रहने वाले का चित्त अस्थिर हो तो खुद को स्थिर रख पाना भी मुश्किल हो जाता है। उससे यही कहा कि काम के बीच भी उसे कंपनी देना म्यूजिक मूवी बातचीत करते रहना उसे सपोर्ट करना इस वक्त की जरूरत है।
बड़ी बेटी ने वियतनाम यात्रा की बुकिंग की तब कोरोना शुरू ही हुआ था और इसका कोई इलाज नहीं था। चीन से भयानक खबरें आ रही थीं। हम लोग उसे एक दो दिन में एकाध खबर की फोटो भेज रहे थे। मन ही मन मना रहे थे कि भारत सरकार ही सभी उड़ाने बंद कर दे या वीजा रद्द हो जाये लेकिन उससे नहीं कहा क्योंकि अगर वह जा रही है तो मन में आशंका लेकर न जाये। उसका मनोबल बनाए रखना जरूरी था ताकि वह ट्रिप एंजॉय करे और हर स्थिति का स्थिर मानसिकता के साथ सामना भी करे। जब वह वापस आई उसने स्टाफ बस लेना बंद कर खुद की कार से जाना शुरू किया ताकि कलीग के संपर्क में न आये और आफिस में भी सबसे दूरी बना कर रखी।

कोरोना वायरस के साथ ही व्हाट्स अप फेसबुक पर इससे निपटने के कई उपाय आये कपूर धूप-बत्ती काढ़ा दवाइयाँ वगैरह वगैरह। हमारे परिवार के ग्रुप पर भी बहुत सारे मैसेज आये मैंने शायद ही कोई पूरा पढा या देखा हो लेकिन कभी किसी को नहीं कहा कि ये सब बकवास है और इनका कोई फायदा नहीं है। कारण यह था कि धूप-दीप या काढ़ा पीने से  किसी का कोई नुकसान नहीं हो रहा था लेकिन अगर यह सब करने से उन्हें यह विश्वास होता है कि वे स्वस्थ रह सकते हैं तो यह विश्वास बनाये रखने में कोई अड़चन डालना ठीक नहीं है। फिर किसी भी काढे में कोई हानिकारक वस्तु का उपयोग नहीं है वही सब चीजें हैं जो सदियों से उपयोग की जा रही हैं।

इसके बाद देश में घटनाओं की बाढ़ आ गई इंदौर में जुलूस दिल्ली में लाखों लोगों का पलायन तबलीगी जमात हर घटना के साथ आक्रोश भी था बेबसी भी थी और यह उन लोगों की ज्यादा थी जो खुद को घरों में कैद किये हुए थे।
मुझे याद है जब हम कामाख्या देवी के दर्शन करने गये। किसी पंडित को दक्षिणा देकर पंद्रह बीस मिनट में दर्शन कर लेते लेकिन मेरी ही जिद थी कि लाइन में लगते हैं। वहाँ लाइन के लिये पच्चीस तीस फीट की बेंचो को जाली से घेर पिंजरा सा बनाया गया था। लगभग तीन घंटे बाद उसमें बैठे घुटन होने लगी और मैं दर्शन छोड़ कर बाहर आ गई। मुझे बचपन से ही अकेले रहने की आदत है और अभी भी मैं कई दिनों तक अकेले रहती हूँ लेकिन वह तीन घंटे बंद रहने का अहसास असहनीय था। ऐसे में वे लाखों लोग जो अकेले नहीं रह सकते या रहे हैं उनकी स्थिति समझ सकती हूँ। इस अवसाद को तोड़ने या जमीनी काम वालों को धन्यवाद करने के लिए जब थाली ताली बजाने की बात हुई तब भी इसके विरोध के नाम पर लोगों का मनोबल तोड़ने की कोशिश की गई। पता नहीं किसी के थाली बजाने से किसी व्यक्ति के पास धन्यवाद पहुंचा या नहीं लेकिन अडोसी पडोसियों ने एक-दूसरे की सूरत देखी और साथ के अहसास के साथ उनके अगले कुछ घंटे बेहतर गुजरे।
सेनेटाइजर कहीं नहीं मिला तभी एक ग्रुप पर मुफ्त सेनेटाइजर वितरित करने की बात हुई और मैंने कहा कि कितने का है कीमत लेकर मुझे भी दो दीजियेगा। तब किसी ने कहा कि मुफ्त मिल रहा है तो पैसे क्यों देना और मैंने कहा कि जो नहीं खरीद सकते उन्हें मुफ्त दें और जो खरीद सकत हैं खरीदें।
कल रश्मि ने स्टेटस डाला कि शहर में मेहनत कर कमाने वाले खाने का पैकेट लेते हुए नजरें नहीं मिला पा रहे हैं। समझ सकती हूँ हालांकि कुछ वर्षों से ऐसे लोग कम होते जा रहे हैं लेकिन फिर भी ऐसे लोग हैं जिनके लिए यह असहनीय स्थिति है।
हालांकि मेरा अनुभव इससे बिलकुल उलट रहा है और मैंने अच्छे खाते पीते लोगों को भी मुफ्त के लिए झूठ बोलते बेइमानी करते देखा है। बिजली बिल माफ करवाने के झूठे आवेदन लाने वाले तीस साल से देख रही हूँ लेकिन उस स्टेटस पर अपने अनुभव न लिखते हुए सिक्के के इस पहलू को देखा सराहा। कोई और समय होता तो मैं शायद अपने अनुभव वहाँ शेयर करती लेकिन फिर वही बात कि अभी यह वक्त नहीं है।

मुझसे एक वरिष्ठ लेखक ने कहा था कि हमेशा जनवादी रहना।

 न मुझे साहित्य का क ख ग आता है न ये वाद और पंथ ही कभी समझ आये। हाँ जमीनी काम करते हुए बहुत करीब से देखा है जब पापा दूर-दराज के आदिवासी इलाकों में लंगोटधारी तीर कमान वाले आदिवासियों को बैंक में पैसा जमा करवाने और बैंक से कर्ज लेकर साहूकारों के चुंगल से बचाने जाते थे या पति को बाइक पर जंगल जंगल लाइन की पेट्रोलिंग करते या ट्रांसफार्मर लगाने जाते देखा। और जन का मतलब हर उस व्यक्ति से रहा जो जमीनी काम कर रहा है। ऐसे समय में जब पुलिस के जवान निगम कर्मचारी प्रशासन के अधिकारी कर्मचारी जान हथेली पर लेकर काम कर रहे हैं तब इस जन के साथ भी मैं खुद को खड़े पाती हूँ।

याद है अट्ठाइस साल पहले जब बिजली चोरी का प्रकरण बनाने पर एक कंज्यूमर जिस पर हत्या के केस दर्ज थे पति को जंगी जीप में बैठा कर बिजली की मोटर वापस लाने के लिए रात में हेड आफिस लेकर गया था। वे तीन घंटे भगवान के आगे दीपक लगा कर टकटकी बांधे उनकी सलामती की प्रार्थना करती रही थी। उस दिन उनका जन्मदिन था और उन्होंने सुबह से कुछ नहीं खाया था। ऐसे में उन पुलिस वालों अधिकारियों कर्मचारियों और उनके परिवार वालों की दुश्चिंता को समझ पाती हूँ और ऐसे में अगर कोई वीडियो पुलिस जवान किसी को डंडे से पीटता है तब भी मेरा मन उस जन के साथ होता है जो घर परिवार को छोड़कर रात दिन ड्यूटी बजा रहा है।
बच्चे को किसी काम के लिए चार बार मना करने के बाद माता-पिता भी झुंझला जाते हैं फिर ये उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे हर समय संयम बनाए रखें।

दो दिन से सोशल मीडिया पर बताया जा रहा है कि अचानक बिजली बंद होने से क्या कुछ नहीं हो सकता है। आशंकाओं को हवा दी जा रही है। आम जन जो इस विषय में कुछ नहीं जानता समझता बल्कि सच कहें तो ये अफवाह फैलाने वाले भी कुछ नहीं जानते समझते। वे बता रहे हैं कि सब कुछ कितना खतरनाक हो सकता है। दरअसल हमारे यहाँ लोग अपने आप को सभी आधुनिक तकनीक से तुरंत लैस कर लेते हैं लेकिन सरकारी तंत्र को लेकर उनकी सोच चालीस साल पुरानी ही है।
इस बात से भी कोई आपत्ति नहीं है कि लोग जो सोच रहे हैं वह बोलें लेकिन जब इसका असर विशाल जन समुदाय के मनोबल को तोड़ने और अफवाहों को जन्म देने के लिए होता है तब जवाब देना पड़ता है।
आम लोगों को तो पता ही नहीं है कि आजकल सारा सिस्टम कंप्यूटरीकृत हो चुका है और किस ग्रिड पर किस समय कितनी बिजली जा रही है कितनी खपत हो रही है उसका पल पल का ब्यौरा मौजूद है और हर सिस्टम के पिछले आठ दिन के डाटा की स्टडी करके पूरी योजना तैयार है। अब आप वह करिये जो आप करना चाहते हैं जिसमें आपको खुशी मिलती है।
आज एक सखी ने कहा यार मैं यह दीया जलाने की बात से कंविंस नहीं हूँ मैंने कहा कोई बात नहीं तुम वह करो जिससे तुम कंविंस हो। लेकिन किसी और को उस बात के लिए कंविंस करने की कोशिश मत करो जिससे वह अभी कंविंस नहीं है।

लब्बोलुआब यह है दोस्तों कि इस समय सभी को अपनी अपनी आस्था के साथ अपना मनोबल बनाए रखने की और दूसरे के मनोबल को संभाले रखने की जरूरत है।

आज ऐसी सास बनिये जो बहू से कहे दूध में जामन लगा दे, और बहू आकर बताए मने तो जामन में दूध डाल दियो, न सास कहे वा जाने दे दही तो जमीज जायेगो।
कविता वर्मा 

6 comments:

  1. हम उस स्थिति में है कि सबकी सलामती की दुआ कर सकते हैं क्योंकि बड़ी बेटी पीपी किट में हॉस्पिटल जाने की फोटो भेजती है तो हाथ भगवान के आगे जुड़ जाते हैं । अगर हमारी दुआ दूसरों को सलामत रखे तो हमारा सौभाग्य । लेख बहुत सार्थक है ।

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    1. जी दीदी जब हमारे हाथ में कुछ न हो तब उस परम शक्ति पर ही भरोसा करके खुद को संभालते हैं। ऐसे में उस पर से विश्वास को तोड़ना बहुत गलत है।

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  2. सबके लिए कामना, सबका स्वस्थ रहना।

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    1. जी बस यही कामना है कि सब अच्छे से गुजर जाये। धन्यवाद आपका

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  3. बहुत अच्छा लिखा है. आज के दौर में बस यही उम्मीद है कि सब ठीक हो जाए. सार्थक आलेख.

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    1. जी यही उम्मीद बनाय रखने के लिए लोगों की आस्था मदद करती है और वह बनाये रखने की कोशिश की जानी चाहिए।

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