जिम्मेदारी
"मम्मी जी यह लीजिये आपका दूध निधि ने अपने सास के कमरे में आते हुए कहा तो सुमित्रा का दिल जोर जोर से धकधक करने लगा। आज वे पूरी तरह अक्षम हैं कल रात ही खाना खाने के बाद चक्कर आया और वे गश खाकर गिर पड़ीं तो खुद से उठ ही नहीं पाईं। डॉक्टर ने बताया आधे शरीर में लकवा का अटैक हुआ है और वह बिस्तर पर लग गईं।
पाँच साल पहले बड़े अरमानों से अपने बेटे की शादी की थी और बहू को घर गृहस्थी सौंप कर निश्चिन्त हुई भी नहीं थीं कि निधि ने घर में हंगामा कर दिया था। उसने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह अकेले सुबह से शाम तक घर के कामों में नहीं खटेगी। मम्मी को भी बराबरी से काम में हाथ बंटाना होगा। सास बनकर राज करने आराम करने के उनके अरमान धरे ही रह गए। सब्जी काटना बघारना कोई स्पेशल डिश बनाना अचार डालना सब उनके जिम्मे था। निधि हाथ बंटाती थी लेकिन सुमित्रा देवी अपनी किस्मत को कोसती ही रहतीं। और अब तो वे असहाय बिस्तर पर पड़ी हैं पता नहीं क्या क्या दुःख देखने पड़ेंगे ? आज तो पहला दिन है इसलिए बहू दूध लेकर आई है जब वो घर के काम में कोई मदद नहीं कर पाएँगी तब जाने क्या होगा ? कहीं उन्हें घर से बाहर ही तो ... इसके आगे वे सोच ही नहीं पाईं।
तब तक निधि ने सहारा दे कर उन्हें बैठा दिया था और उन्हें दवाईयाँ देकर उन्हें अपने हाथों से दूध पिलाने लगी।
"अब मैं घर के कामों में तुम्हारी मदद नहीं कर आऊँगी आँखों से छलक आये आँसुओं को रोकने की कोशिश करते सुमित्रा ने टूटे फूटे शब्दों में कहा। हाथ जोड़ने की कोशिश की लेकिन दूसरा हाथ उठा ही नहीं।
"ये क्या कह रही हैं मम्मी ?" आपकी देखभाल करना मेरा फ़र्ज़ है। अगर आप घर के कामों में मदद की बात सोच कर चिंता कर रही हैं तो निश्चिंत रहिये। यह उस समय की बात है जब आप स्वस्थ थीं एकदम सारे काम छोड़ कर निष्क्रिय हो जाना आपके स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा नहीं था और बिना अनुभव के गृहस्थी संभालना मेरे लिये भी मुश्किल । लेकिन अब आपके सिखाये तौर तरीके से मैं सब ठीक से संभाल सकती हूँ। आप बस आराम कीजिये अब वर्तमान के आखेट की जिम्मेदारी मेरी।
कविता वर्मा
मेरे नाम
"भैया इस पेपर पर यहाँ दस्तखत कर दीजिए।" छोटे ने कहा तो सुरेश ने डबडबाई आंखों से धुँधलाती ऊँगली को देखा और अपना नाम लिख दिया। इसके बाद वह खुद पर नियंत्रण नहीं कर सके और फूट फूट कर रो पड़े।
दो दिन पहले की ही तो बात है जब फोन की घंटी बजी सुरेश ने स्क्रीन पर चमकता नाम पड़ा छोटे। नाम पढते ही उसके चेहरे का रंग उड गया। वह तो फोन उठाना भी नहीं चाहते थे लेकिन लगातार बजती घंटी ने मजबूर कर दिया।
"पांय लागी बडके भैया।"
"हाँ हाँ खुश रहो छोटे कैसे हो?"
"हम अच्छे हैं भैया कल दोपहर की गाड़ी से पहुँच रहे हैं। आपकी बहू और बच्चे भी आ रहे हैं। बस यही खबर देने के लिये फोन किया था। कल मिलते हैं। पाय लागी।"
दिल के किसी कोने में छोटे भाई के आने की खुशी ने उछाह भरा लेकिन मकान जमीन के बँटवारे के संदेह ने उसे कुचल दिया। कुर्सी पर निढाल होते सुरेश ने आवाज लगाई "अरे सुनती हो कल छोटे आ रहा है बहू बच्चे भी आ रहे हैं जरा रुकने का इंतजाम कर लेना।"
"अब क्या होगा क्या मकान जमीन का हिस्सा दे दोगे? आधी जमीन तो बाबूजी पहले ही बेच चुके हैं। फिर अपना गुजारा कैसे होगा? निर्मला ने चिंता जताते हुए कहा।
"अब आने तो दो फिर देखते हैं क्या होता है? "
" और कब तक देखते रहोगे तुम्हें उन्हें आने से ही मना कर देना था। रामदीन काका का बेटा शहर गया था तब छोटे भैया ने साफ साफ तो कहा था कि अगली बार आएंगे तो मकान जमीन का फैसला करेंगे। अगर छोटे भैया ने अपनी जमीन बेचने का कहा या तुमसे पैसे मांगे तो कहां से लायेंगे अपना ही गुजारा मुश्किल है।" कहते कहते निर्मला रुंआसी हो गई।
"पांय लागी बडके भैया।"
"हाँ हाँ खुश रहो छोटे कैसे हो?"
"हम अच्छे हैं भैया कल दोपहर की गाड़ी से पहुँच रहे हैं। आपकी बहू और बच्चे भी आ रहे हैं। बस यही खबर देने के लिये फोन किया था। कल मिलते हैं। पाय लागी।"
दिल के किसी कोने में छोटे भाई के आने की खुशी ने उछाह भरा लेकिन मकान जमीन के बँटवारे के संदेह ने उसे कुचल दिया। कुर्सी पर निढाल होते सुरेश ने आवाज लगाई "अरे सुनती हो कल छोटे आ रहा है बहू बच्चे भी आ रहे हैं जरा रुकने का इंतजाम कर लेना।"
"अब क्या होगा क्या मकान जमीन का हिस्सा दे दोगे? आधी जमीन तो बाबूजी पहले ही बेच चुके हैं। फिर अपना गुजारा कैसे होगा? निर्मला ने चिंता जताते हुए कहा।
"अब आने तो दो फिर देखते हैं क्या होता है? "
" और कब तक देखते रहोगे तुम्हें उन्हें आने से ही मना कर देना था। रामदीन काका का बेटा शहर गया था तब छोटे भैया ने साफ साफ तो कहा था कि अगली बार आएंगे तो मकान जमीन का फैसला करेंगे। अगर छोटे भैया ने अपनी जमीन बेचने का कहा या तुमसे पैसे मांगे तो कहां से लायेंगे अपना ही गुजारा मुश्किल है।" कहते कहते निर्मला रुंआसी हो गई।
छोटे के आने से घर में रौनक तो आ गई लेकिन संशय का बादल घुमडता रहा। और आज जब छोटे वकील के साथ घर आया और कागज पर दस्तखत करवाये तब भी सुरेश कुछ कह नहीं पाये। छोटे ने कहा "भैया मैं तो नौकरी के कारण कभी गाँव में नहीं रहूँगा इसलिए यह जमीन मकान सब आपके नाम कर दिया है बस आपके दिल में मेरी जगह को मेरे ही नाम रहने देना।"
कविता वर्मा
बहुत सुंदर
ReplyDeleteshukriya Suman ji
Deleteये है इस मायावी संसार में बचे रह गये रिश्तों का सोधापन.दोनो लघुकथायें दिल पर दस्तक दे गईं.आपके सकारातमक नज़रिये को सलाम.
ReplyDeleteshukriya Aparna ji
Deletedono laghukatha sundar lagi , aise bhav aaj ke samy me kahan milte hain , sarthak sandeshparak rachnayen
ReplyDeleteसुन्दर ।
ReplyDeleteबिल्कुल आज के माहौल की सटीक अभिव्यक्ति करदी आपने, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
shukriya Tau ..
Deleteप्रेरणादायक लघुकथाएं ।
ReplyDeleteसकारात्मक लेखन ।
दोनों ही लघुकथाएं बहुत सार्थक और दिल को छू गयीं...
ReplyDeleteआपकी रचना काफी मर्मस्पर्शी है इस कहानी को हमने अपने फेस्बूक पेज https://www.facebook.com/socialsandesh.in/ शेयर किया है
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