Saturday, September 28, 2013

डर या रोमांच

 
साहित्य के नव रसों में भय का अपना स्थान है। भय ,डर ,रोमांच जीवन की स्थिरता को गति प्रदान करते हैं।  हमारे यहाँ तो बहुत छोटे बच्चों में भी डर भरा जाता है ,बचपन से हौया है ,साधू बाबा पकड़ ले जायेगा जैसी बातें उनके जेहन में शायद डर से परिचय करवाने के लिए भरी जाती हैं।  बच्चों के ग्रुप में भी एकाध बच्चा तो ऐसे परिवार से होता ही है जहाँ बच्चों के सामने इस तरह की बाते करने से परहेज़ नहीं किया जाता।  
मुझे याद है डर से मेरा पहला परिचय हुआ था जब मैं शायद दूसरी या तीसरी में पढ़ती  थी। उस समय ये अफवाह जोरो से फैली थी कि कुछ लोग आँखों में देख कर सम्मोहित कर लेते है और फिर व्यक्ति उसके अनुसार काम करता है या उसके पीछे पीछे चला जाता है। बहुत डर लगा था इस बात से। 

इसके बाद भूत चुड़ैल जैसी कहानियों से परिचय हुआ ,एक कहानी तो मैंने अपने बचपन के बहुत सालों बाद किसी बच्चे के मुँह से सुनी कि एक बच्चे की माँ मरने के बाद रोज़ रात में घर आ कर उस बच्चे के लिए खाना बना कर रख जाती है। मुझे यकीन है आपमें से कईयों ने ये कहानी सुनी होगी।  
इस तरह डर को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढाया जाता है।  

मम्मी बताती थीं कि उन्हें जासूसी उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक था। तीन मंजिला पुराने ढंग के बने मकान में रात में अकेले जब वो जासूसी उपन्यास पढ़तीं तो घर के सन्नाटे में कभी किसी साए को भागता देखतीं , तो कभी किसी दरवाजे के पीछे किसी को छुपा हुआ। वो बताती थी कि तीसरी मंजिल से नीचे बाथरूम जाने में या दूसरी मंजिल पर पानी पीने जाने में भी उन्हें डर लगता था। वो दादी से कहतीं आप रात में पड़ोस में मत जाया करो हमें अकेले डर लगता है। फ़िर क्या पता बढ़ती जिम्मेदारियों ने या शायद दादी की डांट ने उनका जासूसी उपन्यास पढ़ना छुड़वा दिया।  मुझे भी जासूसी उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक लगा था। राजन इकबाल सिरीज़ के कई नोवेल्स पढ़े लेकिन वयस्कों के जासूसी उपन्यास मम्मी ने कभी नहीं पढ़ने दिए। बल्कि उपन्यास ही नहीं पढ़ने दिए ये कह कर की जब तक ख़त्म नहीं हो जाते छोड़ते नहीं बनता।  

बचपन में डर को मात देने के लिए कई बेवकूफाना हरकतें की है जैसे कुँए की जगत पर चलना , साईकिल के ऊपर से ऊँची कूद करना ,आधी रात को अकेले छत पर चले जाना। 
बचपन के बाद तो सपने देखने की उम्र आ जाती है तो कुछ साल इन सब पर रोक सी लगी रही।  

उस समय होरर मूवीज सिर्फ थियेटर में आती थीं , फिर जमाना आया वी सी आर पर फिल्म देखने का।  उस समय "एविल डेड " फिल्म की सीरिज़ आयी थी बहुत डरावनी। जिसमे वीभत्स तरीके से डर पैदा किया गया था। चीखें, खून,अविश्वनीय दृश्य। एक दृश्य तो अब भी जिज्ञासा जगाता है 'हिरोइन आईने में अपना अक्स देखती है और अपना हाथ आईने को छूने को बढाती है और उसका हाथ खून से भरे मर्तबान में डूब जाता है।  एविल डेड घर पर वी सी आर मंगवा कर देखी गयी थी इसके साथ रेखा की खूबसूरत फिल्म भी मंगवाई थी ताकि डर का असर कम किया जा सके।  फिल्म देखने के बाद बाहर गार्डन में बैठे थे कि बिजली चली गयी। घर के बगल में पुराना आम का बगीचा, सामने बैंक की सुनसान बिल्डिंग,होरर फिल्म के भुतहा बंगले से कम नहीं था वह मकान , उस पर एविल डेड देखने के बाद बिजली चली जाना।  सब लोग एक दूसरे से अन्दर जा कर मोमबत्ती जलाने को कहते रहे लेकिन अकेले जाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई।

केबल के साथ हर तरह की फिल्मे घर के ड्राइंग रूम तक पहुँच गयीं। जब स्टार मूवी जैसे चेनल शुरू हुए थे तब मैं बहुत खुश नहीं थी लेकिन उस पर सबसे ज्यादा फिल्मे भी मैं ही देखती थी।  रात में होरर मूवीज आतीं जिसे अकेले बैठ कर देखना रोमांच को दुगना कर देता था।  एक रात मैं अकेले बैठे फिल्म देख रही थी किसी सुपर नेचरल पॉवर पर थी तभी फोन की घंटी बजी ,फोन उठाया तो किसी की फुसफुसाती आवाज़ आयी "आप अभी तक जाग रही हैं। "  हेल्लो हेल्लो कह कर फोन रख कर दोबारा फिल्म को पकड़ा क्लाइमेक्स चल रहा था रोमांच चरम पर था कि फोन फिर बजा , अन्दर तक काँप गयी ,फिर वही आवाज़ फुसफुसाती हुई। तीसरी बार हसबेंड को जगाया देखो किसी का फोन है मुझे डर लग रहा है कह कर फिल्म देखने बैठ गयी। अच्छा हुआ उस मूवी के डायरेक्टर को कभी ये वाकया पता नहीं चला वर्ना तो वह आत्महत्या कर लेता कि उसकी फिल्म से ज्यादा लोग आधी रात में आने वाले अनजान फोन्स से डर जाते हैं। 

आजकल तो कई बड़े निर्माता होरर मूवी बना रहे है एक फिल्म आये थी 13 B जिसने आदि से अंत तक बांधे रखा राज़ ,आत्मा ,एक थी डायन जैसी कई फिल्मे डर तो पैदा करती है लेकिन उनमे  कोई  तथ्य नहीं होते हैं। कई बार बहुत आधारहीन तरीके से डर पैदा किया जाता है , अब या तो दिमाग अलग रख कर फिल्म देखो या झींकते रहो ये क्या है।  कल एक फिल्म देखी रात के सन्नाटे में बिना किसी चीख पुकार ,खून खराबे के जिसने डर के बजाय रोमांच पैदा किया और वह अब तक जेहन में है। 
आप कह सकते हैं क्या जरूरत है ऐसी फिल्मे देखने की , लेकिन ये भी तो एक महत्वपूर्ण रस है जीवन का,  इसे महसूस किये बिना कैसे छोड़ दिया जाए। वैसे आज़मा कर देखिये इसका रोमांच कुछ देर के लिए सारी चिंता परेशानियों को भुला देता है। 
कविता वर्मा 



18 comments:

  1. सही कहा ! इसका रोमांच कुछ देर के लिए चिंता और परेशानियों को भुला देता है...

    नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )

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  2. अच्छा लेख-
    शुभकामनायें-

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  3. एविल डेड में जब कटा हुआ हाथ फर्श फोड़ कर पैर पकड़ लेता है तो रोंगटे खड़े हो जाते थे. मैट्रिक में पढता था तब देखी थी.

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  4. जब कालेज में पढ़ता था अंग्रेजी फिल्म "साइको "देखा था .उसमे शायद ९ खून थे l उसको देख कर हॉस्टल के बाथरूम जाने में डर लगता था l
    नई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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  5. उम्दा आलेख | मुझे किसी भी हॉरर फिल्म से कभी डर नहीं लगा न अपनी यादाश्त में भूत प्रेत या इस तरह के किसी कथा कहानी से डरा हूँ |

    मेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (29-09-2013) तुकबन्दी: चर्चामंच - 1383 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. नहीं कविता जी ....you need a strong stomach..और हर किसी के पास नहीं होता ना......

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  8. सुन्दर प्रस्तुति
    आभार आदरणीया-

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    1. डर डर कर जीते रहे, रहे गहे सद्मार्ग |
      किन्तु आज रोमांच हित, जिए बड़ा सा वर्ग-

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  9. bilkul sahi....jinse aap darte hain,use bhi jine me maza hai.....

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  10. kavita ji..ek thi dayan to horror kum,comedy zyada lagi. ramsay brothers ki movies yaad hain.hanste hanste dum nikal jata tha. psycho thodi bahut daravni zaroor lagi thi. actually, jab main bohat chhoti thi darr ke mare achanak neend se uth jati thi. assam mein rahte the hum log. wahan aisa manna tha ki bhaloo ke peeth pr ulta bithakar ek aadh chakkar ghuma diya jaye to bachchon ke man se dar nikal jata hai aur daravne sapne bhi nahin ate. meri ma ne aisa hi kiya tha aur bohat asar hua tha iska mujhpe.... :)

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  11. अज्ञान से पैदा होता है भय सुनी सुनाई बातें भी इसकी इसीलिए वजह बनतीं हैं।

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  12. अज्ञान से पैदा होता है भय सुनी सुनाई बातें भी इसकी इसीलिए वजह बनतीं हैं।

    वैसे तुलसीबाबा भी कह गए हैं भय बिन प्रीति न हॉत गोसाईं

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  13. अज्ञान से पैदा होता है भय सुनी सुनाई बातें भी इसकी इसीलिए वजह बनतीं हैं।


    किसी को क़ानून का भय है किसी को घर में रखे पैसे से ही भय पैदा हो रहा है किसी को बीवी से


    ,किसी


    को टी वी से सबके अपने अपने भय हैं।

    वैसे तुलसीबाबा भी कह गए हैं भय बिन प्रीति न हॉत गोसाईं

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  14. हर चीज़ का अपना मज़ा है ओर सभी का आनंद जीवन में लेना जरूरी है ...
    हारर फिल्मों का भी अपना मज़ा है ...

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  15. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  16. सारे रसों में एक रस ये भी है...इसका भी अपना आनंद है...हॉल में शायद मज़ा आता हो...टी वी पर तो ये हास्यास्पद लगता है...

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