उठे जब जनाजा मेरा
बस एक बार आ जाना,
दूर से ही सही ,
एक झलक देख लेना
दिखला जाना।
न देना कन्धा मेरे
जनाजे को,
न करना रुसवा मुझे
ज़माने में,
न आने देना मेरा
नाम भी होंठों पर
चेहरे की हर शिकन
छुपा जाना ।
न दे सकोगे एक
मुठ्ठी माती भी,
जानती हूँ
पर सबके जाने के
बाद,
दो फूल कब्र पर
रख जाना ।
नहीं देखना चाहती
आंसूं तुम्हारी आँखों में ,
पर हो सके तो
दो बूँद मेरी कब्र
पर गिरा जाना।
हसरत ही रही मिलने
की तुमसे,
dar था समझ न
सकेगा जमाना,
इसलिए दूर से ही सही,
एक झलक देख लेना
दिखला jana ना।
Sunday, October 31, 2010
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बहुत विरोधाभासी ख्वाहिशें लिए हुए अच्छी रचना ..
ReplyDeletesach kaha sangeeta di ne..........ek aur nahi girana aanshu, aur fir akele me anshu girane ki gujarish.......achchhi lagi!!
ReplyDeleteवाह क्या बात है……………हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले………………चाहत है भी और नही भी……………गज़ब का प्रस्तुतिकरण्।
ReplyDeletesangeetaji,mukeshji,vandnaji, meri pahli koshish par aapki housla afjai ke liye bahut abhari hu.....
ReplyDeleteनहीं देखना चाहती
ReplyDeleteआंसूं तुम्हारी आँखों में ,
पर हो सके तो
दो बूँद मेरी कब्र
पर गिरा जाना।
कमाल की प्रस्तुति..प्रेम की ख्वाहिशों का बहुत सुन्दर चित्रण..बधाई
bahut achhi rachna
ReplyDeletevery nice & wish u a happy diwali and happy new year
ReplyDeleteविरोधाभास तो मुझे भी लगा लेकिन ये सोच कर कि प्रेम की पराकाष्ठा है सुंदर रचना के लिए कवयित्री को बधाई
ReplyDeletepadhker accha laga aaj idhar se nikla to socha kuch der yaha bhi thaher jau .thara to thaher hi gaya .so nice ..........aata jata rahunga..
ReplyDeleteआपकी कविता पढ़कर मुझे अपनी पंक्तियां याद आ गईं-
ReplyDeleteजीते हैं एक आरजू लेकर
मरेंगे एक आरजू लेकर
जिस जिससे न हो सके मुलाकात इस बेदर्द जमाने में
एक खुदा तू तो मिला देना कम से कम अपने घराने में
bahut jabardst abhivyakti
ReplyDeletebahut accha laga aapki kavita ko padhkar ..
bahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
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