खरगोन इंदौर के रास्ते में कुछ न कुछ ऐसा दिखता या होता ही है जो कभी मजेदार विचारणीय तो कभी हास्यापद होता है लेकिन एक ही ट्रिप में तीन चार ऐसी घटनाएँ कम ही होती हैं।
आजकल खरगोन या इंदौर से निकलते देर हो ही जाती है। तेज धूप में गाड़ी में चलता एसी भी कभी-कभी घुटन पैदा करता है। इस बार खरगोन से निकले सुबह के दस बजे अमूमन इस समय तक हम इंदौर पहुँच जाते हैं। जाम घाट पर चढ़ते समय तक तेज धूप गर्म हवा ने विंड शीट को भी गर्म कर दिया था जिसके कारण बार बार एसी को फ्रंट ब्लोअर पर करना पड़ रहा था ताकि काँच ठंडा हो और गाड़ी भी। ऐसी चिलचिलाती धूप में गाड़ी के सभी काँच पर काले फलके लगे रहते हैं और मैं तो अपनी तरफ इन्हें दोहरा करके लगा लेती हूँ। इतनी धूप में घाट के हरे भरे पेड़ भी आँखों को ठंडक नहीं दे पाते। हाँ उन्हें देखती जरूर रहती हूँ लेकिन बस सामने से।
तभी आगे एक बाइक पर एक परिवार जाता दिखा। पति पत्नी। पत्नी ने हवा में उड़ गया अपना साड़ी का सीधा पल्ला सिर पर रखा तब दिखा कि उसकी गोद में एक छोटा बच्चा है। अच्छा बच्चों को लोग सीधे बाहर की ओर मुँह करके बैठाते हैं। गर्मी में आधे कपड़े पहने वे मुँह हाथ पैर में हवा के थपेड़े सहते रहते हैं।
गाड़ी उन्हें ओवरटेक करके आगे बढ़ी तो देखा एक पाँच छह साल का बच्चा आगे भी बैठा था। मैंने ब्लैक शीट हटाकर देखा। नींद में ऊँघता सा गर्मी से बेहाल। हाय बेचारे मासूम बच्चे बता भी नहीं पाते कि उन्हें कोई तकलीफ है और माता-पिता समझते नहीं हैं कि उनके सिर पर रुमाल बाँध दें मुँह ढँक दें बीच में बैठा लें या उल्टी तरफ मुँह करके ही बैठा दें।
ओह बेचारा बच्चा!
"तुम्हारी जेब में रुमाल है क्या?" हमारे लेडीज रुमाल के प्रयोग बड़े सीमित होते हैं।
"हाँ क्यों पर एक ही है"
"ठीक है न तुम्हें कौन सा पसीना आना है एसी में बैठे हो। निकालो"
इतने वार्तालाप में गाड़ी लगातार चल रही थी और उनसे काफी आगे आ गई थी। अब गाड़ी धीमी की रुमाल खोलकर एसी वेंट के सामने कर फ्रेश किया और इंतजार करने लगे उस बाइक के आने का। हालाँकि ट्राफिक कम था लेकिन बीच घाट में रुकना ठीक नहीं था। रेयर मिरर में हम बाइक को आते देखते रहे।
अच्छा बाइक वालों को किसी भी तरफ से ओवरटेक करने की सुविधा हमारे देश में उपलब्ध है। उनके लिए दायां बांया कुछ नहीं होता बस जहाँ अगले टायर के समाने की जगह मिले वहाँ से निकल लो। इसलिये मैंने भी अपनी तरफ के फलके हटा दिये ऊँगली शीशा खोलने के लिए तैयार रखी थी वह पास आता जा रहा था और पास और पास।
किस तरफ से निकलेगा मेरी तरफ से दूसरी तरफ से और वह बगल से निकला। पतिदेव ने शीशा नीचे किया हाथ देकर उसे रोका रुमाल निकाल कर उसे दिया।
"ये बच्चे को बाँध दो बहुत गर्मी है।"
वे दोनों आदिवासी दंपत्ति अकबकाए रुमाल हाथ में लिया "हम तो बस यहाँ माताजी तक जा रहे हैं।"
"तुम तो साड़ी से सिर ढँके हो बच्चों को लपट लग रही है।" सुनकर वह हँस दी थोड़ी खिसियाई सी हँसी। "या तो उसे बीच में बैठाओ या उल्टा बैठाओ। बहुत गर्मी है। "
उनके चेहरे पर छोटी सी मुस्कान आई जिसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती और हम आगे बढ़ गये।
अगली शाम इंदौर में मार्केट जाना था इंडस्ट्री हाउस चौराहे पर गाड़ी सिग्नल पर रुकी थी। बगल में बाइक पर एक युवा कपल था अपनी बातों में मशगूल। इस उम्र में बातें भी तो बहुत होती हैं न जाने कहाँ कहाँ की बातें। सिग्नल हरा हो गया हम आगे बढ़े बाइक बगल में ही चल रही थी आसपास से गाड़ियाँ निकल रही थीं। व्यस्त चौराहा जो शाम के समय बेतरतीब हो जाता है पूरा ध्यान गाड़ी चलाने के साथ अगल बगल में भी देना पड़ता है। लड़का बाइक चला रहा था और लड़की इस समय भी बातें कर रही थी।
'हे भगवान अब से लड़कों को मल्टी टास्किंग स्किल दे कर ही भेजना।' सच में मन तो था कि कहूँ 'देवी थोड़ी देर तो चुप हो जाओ चौराहा निकल जाये फिर बातें कर लेना। वैसे मैं भी अपने साथ किसी को गाड़ी में इसीलिए नहीं बैठाती क्योंकि ट्राफिक हो या चौराहा बिना देखे समझे लोग बोलते जाते हैं तो जो चिढ़ पैदा करता है।
अगले दिन खरगोन वापसी थी। आजकल बायपास पर सुबह शाम जबरदस्त ट्राफिक होता है गाड़ी रेंग कर ही चलती है। यहाँ भी बगल में चलती एक बाइक पर नजर गई। अच्छा हम राजदूत सुजूकी जमाने के लोग नये जमाने की बाइक को अचरज और बेचारगी से देखते हैं। पीछे बैठी खाते पीते घर की लड़की आगे बैठे लड़के से चिपकी हुई थी। लड़का आगे की ओर झुका था हेंडल ही ऐसा था कि उसकी पीठ पचास डिग्री के कोण पर थी और पीठ पर लड़की का पूरा वजन था। 'बेचारा लड़का! लड़की को सीधा बैठने का भी नहीं कह सकता वह कहेगी इतना कमजोर है कि मेरा वजन नहीं झेल पा रहा है या बुरा ही मान जाये कि मुझे मोटा कहा।'
या शायद गाड़ी ही ऐसी है कि लद कर ही बैठना पड़ता है। कभी ऐसी गाड़ी पर बैठे नहीं तो कैसे पता होगा। बाइक आगे एक टाउनशिप की तरफ मुड़ गई और मैंने देखा लड़की सीधे बैठ गई। हा बेचारे लड़के की जान में जान आई होगी। अब मुझे तो ऐसा ही लगा हो सकता है लड़के को अच्छा लग रहा हो।
अब हम बायपास पर तेज गति से चल रहे थे तभी एक और विक्रम बेताल बाइक बगल में दिखी। अरे वही जिसमें पीछे वाली सीट इतनी ऊँची होती है कि लगता है वह आगे वाले की पीठ पर सवार है। अब बाइक पर दोनों लड़के थे तो फोटो ली जा सकती थी। चलती गाड़ी में फोटो लेना आसान तो नहीं है न। कभी लगता आ गई लेकिन एंगल बदल जाता कभी गाड़ी का नंबर आ जाता। खैर खूब सारी फोटो खींची और गाड़ी डिजाइन करने वाले को नमन किया।
कुछ और देर बाहर देखती तो कुछ और मैटर मिल जाता लेकिन धूप तेज हो रही थी इसलिए शीशे पर फलके लगाकर रेडियो पर गाने सुनते आगे का सफर तय किया।