बात सन 80 की है। पापाजी का झाबुआ जिले के राणापुर से इंदौर ट्रांसफर हुआ था। इंदौर में खुद का मकान था जिसमें कभी रहे नहीं थे। हम तो बहुत छोटे थे अपने घर में रहने का सुख और इच्छा नहीं थी हमारे लिए तो जहाँ मम्मी पापा वही घर। इंदौर में मकान में किरायेदार थे उन्हें एक महीने पहले ही चिठ्ठी लिखकर मकान खाली करने को कह दिया गया था। उनकी जवाबी चिठ्ठी क्या आई नहीं पता।
वह पंद्रह अगस्त का दिन था। स्कूल में स्वतंत्रता दिवस का आयोजन था। मैं गर्ल्स गाइड में थी और मुझे परेड में शामिल होना था। सामान का ट्रक सुबह जल्दी निकलना था लेकिन मैं स्कूल जाने की जिद पर अड़ गई। स्कूल में झंडावदन किया बाकी कार्यक्रम की याद नहीं है। बस इतना याद है जब वापस घर आई ट्रक में सामान भरा जा चुका था। घर का एक चक्कर लगाने तक का समय नहीं था और हम सब भी उसी ट्रक में सवार हो गये।
दोपहर बाद इंदौर पहुँचे तो किरायेदार हमें सामान सहित देखकर हैरान हो गये। वे छह साल से मकान में रह रहे थे। मकान खाली करने की चिठ्ठी को उन्होंने किराया बढ़ाने के लिए धौंस सा समझा और निश्चिंत रहे।
सामान परिवार सहित मकान मालिक को सड़क पर तो नहीं रहने दे सकते। ताबड़तोड़ दो कमरे खाली किये जिनमें हमारा सामान रखा गया बाकी दो कमरों में उनका पाँच लोगों का परिवार समाया। तीन-चार दिन में उन्होंने मकान ढूँढकर बदला। छह साल में उन्होंने किचन में इतनी चीकट कर दी थी जिसे हम महीनों रगड़ते रहे।
उन्हें पेड़ पौधे लगाने का शौक था सामने रातरानी जाइंट लिली और भी कुछ पेड़ पौधे लगे थे जो वहीं छूट गये। जाइंट लिली में साल में एक बार फूल आयेगा यह वे बता गये थे।
आज पैंतालीस सालों बाद भी उनका छोड़ा जाइंट लिली फूलता है और उनकी याद दिला देता है। आज वे कहाँ हैं पता नहीं लेकिन उनकी उपस्थिति उस घर में बनी है। एक पौधा इतने साल आपकी उपस्थिति बता सकता है इसलिए पेड़ लगाना चाहिए वे हमारे बाद भी हमारी याद दिलाते रहेंगे।