Sunday, December 9, 2018

कमजोरी को शक्ति बना जीत लें दुनिया

विश्व दिव्यांग दिवस के अंतर्गत वामा साहित्य मंच के मासिक कार्यक्रम में संजीवनी संगम मूक बधिर केंद्र जाने का मौका मिला। शहर के व्यस्त इलाके में लेकिन मुख्य सड़क से अंदर यह एक बड़ा और शांत परिसर है। सन 81 में शुरू हुआ यह केंद्र प्रारम्भ में सिर्फ अनाथ बच्चों का संरक्षण गृह था। तब से अब तक लगभग ७५० अनाथ लावारिस छोड़ दिए गए नवजात बच्चे यहाँ लाये जा चुके हैं। ऐसे बच्चे जो सड़क किनारे झाड़ियों नालों में छोड़ दिए जाते हैं कई बेहद बुरी हालत में होते हैं। बीमार वक्त से पहले जन्में चीटियों द्वारा कटे गए पॉलीथिन में कम ऑक्सीजन में जीवन के लिए संघर्ष करते ये बच्चे जब इस केंद्र की ममतालु नर्सआया और डॉक्टर्स की देखरेख में आते हैं तो अधिकांश इस सम्बल को पा कर जी जाते हैं। ठीक होने के बाद शीघ्र ही बच्चों के लिए ममता रखने वाले माता पिता को गोद दे दिए जाते हैं। यहाँ अधिकतम आठ वर्ष तक के बच्चों को रखा जा सकता है। 
केंद्र की आया दीदी से बात करते हुए ऐसे कई बच्चों की लोमहर्षक कहानियाँ सुनीं। कुछ बच्चे विदेशों में भी गॉड दिए जाते हैं। 
पूछने पर कि गोद देने के बाद इन बच्चों की मॉनिटरिंग कैसे की जाती है ? आया दीदी ने बताया कि तीन साल तक हर तीन महीने में उनके घर जाकर देखा जाता  है। उसके बाद बच्चे बड़े हो जाते हैं उन्हें पता न चले कि गोद दिया गया है इसलिए संस्था के पदाधिकारी मेहमान बन कर मिलने जाते रहते हैं। उन्होंने बताया कि कई बच्चे तो बड़े होकर खुद पता लगते हैं कि वे कहाँ से गोद लिए गए हैं और फिर हमारे यहाँ मिलने आते हैं दान और अन्य सेवाएं देते हैं। 
पाँच छह कमरों में बिस्तर पालने किचन सहित सभी व्यवस्था बेहद साफसुथरी थीं। 
मूक बधिर केंद्र पहले सिर्फ ऐसे बच्चों को पढ़ाया जाता था लेकिन अब यहाँ स्पेशल बच्चों को पढ़ने के लिए टीचर्स ट्रेनिंग भी दी जाती है। जो बच्चे सुन नहीं पते उन्हें आवाज़ होते हुए भी बोलने में तकलीफ होती है क्योंकि उच्चारण क्या होते है वे नहीं जानते। इन बच्चों को साइन लेंग्वेज के द्वारा ही पढ़ाया और समझाया जाता है। यहाँ बच्चों के लिए कंप्यूटर लैब क्लास रूम एक्टिविटी रूम सभी हैं।  कुछ कक्षा स्मार्ट क्लास में भी तब्दील की गई हैं। 
बच्चों के कान की जाँच के लिए यहाँ रोज़ शाम शहर के वरिष्ठ नाक कान विशेषज्ञ आते हैं। यह ओ पी डी हैं जहाँ बाहर के अन्य मरीज भी बेहद कम फीस से अपने कान की जाँच करवा सकते हैं।संस्था को कुछ सालों पहले ही सरकारी मदद मिलाना शुरू हुई है इसके अल्वा शहर के दानदाता बड़ी मात्रा में आर्थिक और अन्य मदद देते हैं। मदद के लिए यहाँ संपर्क करके आवश्यक वस्तुओं की सूची प्राप्त की जा सकती है। फिलहाल यहाँ डे स्कूल है लेकिन शीघ्र ही भवन निर्माण करके हॉस्टल भी शुरू करने की योजना है ताकि आसपास के गाँवों कस्बों के मूक बधिर बच्चों को भी पढाई की सुविधा मिल सके। 
संस्था की फाउंडर सदस्य शारदा मंडलोई जी ने बताया कि उनकी टीम शहर में बस्तियों में सर्वे करके मूकबधिर बच्चों को तलाशती है और उनके माता पिता को बच्चों का इलाज करवाने और स्कूल भेजने को प्रेरित करती है। बहुत गरीब बच्चों की फीस माफ़ कर दी जाती है अन्य बच्चों की फीस भी काफी कम है। किसी बच्चे की साल भर की फीस की जिम्मेदारी लेकर भी मदद की जा सकती है। 
बच्चों के इलाज के बारे में बताते हुए कोर्डिनेटर यादव जी ने बताया कि एक कॉक्लियर इम्प्लांट करवाने में पाँच से सात लाख का खर्चा आता है फिर इसे रखने का बॉक्स ही ८०० रुपये का होता है जो हर महीने बदलना पड़ता है। बैटरी की कीमत लगभग पाँच लहज होती है और पोस्ट केयर खर्च भी लाखों का आता है। इस तरह जीवन भर का खर्च बीस से पच्चीस लाख तक होता है। 
वामा क्लब के लिए इन बच्चों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दीं। यह आश्चर्यजनक था कि जो बच्चे सुन नहीं सकते वे संगीत की हर टाक के साथ न सिर्फ थिरक रहे थे बल्कि उनका आपसी सामंजस्य भी कमाल का था। उनकी टीचर सामने से उन्हें स्टेप्स के एक्शन दे रही थीं और वे एक दूसरे को देखे बिना बस अपने में मगन नृत्य का आनंद ले रहे थे। उनके टीचर्स ने बताया कि जब एक गुण कम होता है तो डी अन्य गुण अधिक सशक्त होता है। बच्चों के साथ क्लब की सदस्यों ने पिक्चर चेयर रेस और क्विज खेले और विजेताओं को पुरुस्कार बाँटे। 
संस्था की एक वरिष्ठ सदस्य इन बच्चों की सिलाई कढ़ाई बुनाई भी सिखाती हैं। छोटे बच्चों के स्वेटर नैपकिन कम्बल आदि का स्टॉल यहाँ लगाया गया था और सदस्यों ने जैम कर इन सामानों की खरीदी की। 
रोजमर्रा की जिंदगी से अलग हट कर एक दिन इन स्पेशल बच्चों के साथ बिता कर यह एहसास होता है कि अपनी कमजोरियों को अपनी शक्ति बना कर कितने आसानी से खुश रहा जा सकता है। 
कविता वर्मा 

1 comment:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 11/12/2018
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...