Saturday, April 7, 2018

इन्हें कौन दिशा देगा ?

बेटी तब 9 वीं में थी। शाहिद कपूर नया नया आया था और इस आयु वर्ग के सभी बच्चे उसके बड़े फैन थे।
बेटी की क्वार्टरली एक्जाम का रिजल्ट और काॅपी देखने स्कूल गई थी। इंग्लिश की काॅपी देख कर वह बड़ी मायूस हुई कि my hero पर लिखे उसके पैराग्राफ में सर ने बहुत कम नंबर दिये। वह चाहती थी कि मैं सर से इस बारे में बात करूं। मैं काॅपी लेकर सर के पास गई और उनसे पूछा कि आपने इस पैराग्राफ में नंबर दिये ही क्यों?  आपने इसे पूरा काट क्यों नहीं दिया? हीरो का मतलब क्या होता है किसे अपना हीरो अपना आदर्श बनाया जाना चाहिए यह भी आप नहीं समझा पाये बच्चों को। क्या किया है शाहिद कपूर ने देश के लिए?
सर और बिटिया के साथ वहाँ उपस्थित बाकी पैरंट्स भी सन्न थे लेकिन मैंने कहा कि आप बच्चों के मार्कस् की चिंता न करें बल्कि सही कंसेप्ट देने की चिंता करें। आपकी जगह मैं होती तो पूरे पेज पर ऊपर से नीचे तक कट लगा कर शून्य देती और अगली बार अगर ऐसे हीरो के बारे में लिखे मेरी बेटी तो आप उसे जीरो ही दें।
आज टीवी पर रोना बिसूरना और उसको भुनाना देख कर याद आया।
कविता वर्मा

5 comments:

  1. कविताजी, जो समस्या आपके साथ आई,वह समस्या हम भाषा शिक्षकों के साथ तो हमेशा ही आती है। माइ हीरो के नाम पर अब बच्चे फिल्म अभिनेताओं को ही जानते हैं....वही उनके आदर्श हैं । हिंदी के पेपर में निबंध आता है - मेरा प्रिय नेता
    बच्चे अपनी बस्ती के उस स्थानीय नेता पर निबंध लिख देते हैं जिसके चरित्र के बारे में वे कुछ नहीं जानते....चुनावों के समय उसके प्रचार प्रसार में सुनी सुनाई बातों के आधार पर ही उसे जानते हैं और प्रिय नेता भी मान लेते हैं....

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  2. आदरणीय कविता जी,
    आपके जैसे सोच वाले अभिवावक आज के दौर में मिलना मुश्किल है जो अपने बच्चों के बारे में ऐसा सोच रखते हैं।

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    1. जी वही तो दिक्कत है। माता पिता की सोच ही भटकी हुई है बच्चों को कैसे दिशा मिले।

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नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...