Monday, July 7, 2014

सपनों के परिंदे


मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ जी चाहता है तुम्हे अपनी पलकों में छुपा कर रखूँ सिर्फ मैं ही तुम्हे देखूँ और कोई ना देख सके। तुम्हारी नीली आँखों में सिर्फ मेरा ही अक्स हो सिर्फ मेरा। तुम भी मुझे इतना ही प्यार करती हो न ?
उसके प्यार के इस इज़हार में उसकी भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था। प्यार तो मैं भी करती हूँ लेकिन क्या सच में इतना ? मैं तो ऐसा कुछ नहीं सोचती तो क्या मेरा प्यार कुछ कम है ?जाने क्यों एक अपराध बोध सा भर गया था मुझमे। तुमने फिर मुझे झकझोरा था बोलो ना।  मैं अभिभूत सी तुम्हारी बाँहों में समां गई थी खुद के भाग्य पर इठलाती।  अपने प्यार का विस्तृत आसमान पा कर मेरे सपनों के छोटे छोटे परिंदे पंख फड़फड़ाने लगे।  तुम्हारे प्यार का स्वर्ण महल मुझे खूब भाया और मैं उसमे खो गई। मेरे सपनों के परिंदे मुझे खुश देख कर कुछ समय तक अपनी उड़ान की आकांक्षा को मन के कोने में दबाये बैठे मुझे निहारते रहे  लेकिन कब तक ?
धीरे धीरे एक एक करके उन्होंने पंख फड़फड़ाने शुरू किये उनकी उड़ने की बैचेनी ने मुझे भी बैचेन कर दिया। मैं भी तो उन स्वप्न परिंदों के साथ उड़ना चाहती थी लेकिन तुम्हारे प्यार ने मुझे कैद कर लिया था कुछ इस तरह की उड़ाना तो दूर अपने पंख फैलाना भी मुश्किल था।  अब ये बैचेनी सही नहीं जा रही थी एक तरफ तुम्हारा प्यार था जिसने मुझे बाँध रखा था तो दूसरी तरफ मेरे सपने और दोनों का साथ तुम्हे मंजूर न था। लम्बी कश्मकश के बाद आखिर एक दिन मैंने सपने के हर परिंदे को आसमान देने की ठान ली।
कविता वर्मा  

4 comments:

  1. aaj ki nari..apne faisale lene ki samarth rakhti hai..laghukatha me aapne itni sarthakta saza di....sundar abhiwyakti...

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