जब तन्हा होता हूँ में
निकल पड़ता हूँ यूँ ही कहीं
अपनी तन्हाई के साथ
किसी भीड़ भरे बाजार में
फेरी वालों की आवाज़ों के बीच
चीखती गाड़ियों के शोर में
किसी धुआं उड़ाते हुए झुण्ड
के पास से गुजरते हुए
उस उड़ते धुंए के साथ
दूर तक चला जाता हूँ में
किसी भीड़ भरे रेस्तरां में
कोने की ख़ाली मेज़ पर
यूं ही बैठे शीशे के उस पार
भागती दौड़ती दुनिया को देखते
ख़ाली प्लेटों चम्मचों
संगीत की आवाज़ के साथ
कहीं ठहर जाता हूँ में
पर नहीं जाता किसी निर्जन
समुद्र तट पर ,
पहाड़ी पर बने किसी सूने किले में
की मेरी तन्हाई होती है मेरे साथ
की डरता हूँ की इस एकांत में
मेरी तन्हाई न पूछ बैठे वो सवाल
जिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में .
कई बार खुद को भुलाए रखना ही अच्छा लगता है ! बांटे भी कहाँ ....??
ReplyDeleteसोंचने को मजबूर करती है यह रचना !
शुभकामनायें
पर नहीं जाता किसी निर्जन
ReplyDeleteसमुद्र तट पर ,
पहाड़ी पर बने किसी सूने किले में
की मेरी तन्हाई होती है मेरे साथ
की डरता हूँ की इस एकांत में
मेरी तन्हाई न पूंछ बैठे वो सवाल
जिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में .
जब कोई साथ नहीं देता तब तन्हाई साथ देती है.
उससे डरना क्या ?
we should be thankful to loneliness.
की डरता हूँ की इस एकांत में
ReplyDeleteमेरी तन्हाई न पूंछ बैठे वो सवाल
जिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में ....
सुन्दर कविता.. बेहद कोमल रचना और भाव !
bahut hi sanjida rachna,aise laga jaise kisi ne meri hi gatividhiyon ki picture bana di aur kavita ke rup me prastut kar diya i like it very much....thnx for visiting my blog and prasing it.
ReplyDeletecongrts.
मेरी तन्हाई न पूंछ बैठे वो सवाल
ReplyDeleteजिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में
तनहाई के सवालों से डर कर आपका छिपना अच्छा लगा , बधाई .
आज मैने कोने में ही बैठकर काफ़ी पी, क्योंकि दिन भर लेक्कचर दिए और सुने।
ReplyDeleteकभी कभी तनहाई की भी जरुरत होती है।
मेरी तन्हाई न पूंछ बैठे वो सवाल
ReplyDeleteजिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में .
तन्हाई वाकई में सबसे डरावनी होती है. दूसरों से भाग सकते हो, अपने से कैसे भागोगे. सुंदर कविता. बधाई.
की डरता हूँ की इस एकांत में
ReplyDeleteमेरी तन्हाई न पूंछ बैठे वो सवाल
जिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में ....
तन्हाई मे सवालों के सिवा रहता ही क्या है। भावमय रचना। शुभकामनायें।
पर नहीं जाता किसी निर्जन
ReplyDeleteसमुद्र तट पर ,
पहाड़ी पर बने किसी सूने किले में
की मेरी तन्हाई होती है मेरे साथ
की डरता हूँ की इस एकांत में
मेरी तन्हाई न पूंछ बैठे वो सवाल
जिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में .....
khud se kab tak bhaga ja sakta hai . ekakipan ko mukhar karti rachna
बहुत ही उम्दा.
ReplyDeleteडरता हूँ कि इस एकांत में
मेरी तन्हाई न पूछ बैठे वो सवाल
तन्हाई के सवाल और तनहा कर जाते हैं.
भीड़ में भी सुनसान होता है ,
और सुनसान में भी कोलाहल.
सलाम.
तन्हाई में भी अक्सर इंसान तनहा नहीं रहता
ReplyDeleteaapne bahut hi acchi kavita likhi hai .. man me bas gayi hai , tanhayi ke waqt hamesha hi padunga ..
ReplyDelete--------------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..होली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteसुन्दर कविता, बेहद कोमल रचना और भाव|
ReplyDeleteनिकल पड़ता हूँ यूँ ही कहीं
ReplyDeleteअपनी तन्हाई के साथ
किसी भीड़ भरे बाजार में ...
काव्य में छिपी तन्हाई की तड़प
इन्ही चंद अलफ़ाज़ में
ढूँढी जा सकती है
भावनाओं का सटीक चित्रण ... !!
सुंदर कविता. बधाई.
ReplyDeleteकविताजी की कविता की अंतिम लाईने दिल को छू गई
ReplyDeleteकी डरता हूँ की इस एकांत में
मेरी तन्हाई न पूंछ बैठे वो सवाल
जिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में .
जब कोई साथ नहीं देता तब तन्हाई साथ देती है.
उससे डरना क्या ?
कल 13/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मेरी तन्हाई न पूछ बैठे वो सवाल
ReplyDeleteजिससे बचने के लिए
भीड़ भरी जगहों पर जाता हूँ में .
बहुत बढ़िया ...
एक भावपूर्ण प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई
आशा
की डरता हूँ की इस एकांत में
ReplyDeleteमेरी तन्हाई न पूछ बैठे वो सवाल....
कितनी खूबसूरती से गुंथा है आपने खयालो को...
सादर बधाई...
भावपूर्ण रचना....
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