Tuesday, June 8, 2010

न्याय........

२ दिसम्बर १९८४ शाम को ५ बजे मम्मी और पास में रहने वाली वैध आंटी के साथ घूमने निकली। सूरज पश्चिम में डूबने को था.आसमान में सुर्ख लाल रंग बिखेर कर आगाह कर रहा था की,पंछियों घर जाओ मुझे जाना है। पंछी भी जैसे सूरज की चेतावनी को समझ कर अपने साथिओं को आवाज़े दे कर तेज़ी से चले जा रहे थे।
मम्मी ने कहा ,कितनी सुंदर शाम है पूरा आसमान लाल हो गया ,"देखो कैसा दिन फूला है"।
आंटी बोली ,हमारी दादी कहती थी ऐसा दिन डूबना अशुभ होता है।
अरे, हम तो समझ रहे थे कितना सुन्दर लग रहा है, मम्मी ने कहा ।
बात आयी गयी हो गई,हम लोग घूम कर कुछ गप्प्पे मार कर वापस अपने -अपने घरो को चले गए।
दूसरे दिन सुबह सामान्य हुई.अपने काम निबटा कर मम्मी आराम कर रही थी, तभी पास वाली आंटी ने आवाज़ दे कर कहा ,:भाभी जल्दी आओ ,वैध भाभी के यहाँ कुछ हो गया।
देखा उनके घर के सामने भीड़ जमा थी.कुछ लोग अंदर थे ,बाहर लोगो से बात करने पर पता चला की कल भोपाल में कुछ हादसा हो गया ,वैध सर वही थे ,उनकी तबियत ख़राब हो गयी है। अभी भोपाल से फ़ोन आया है ,सर के कोलाज में ,वहा से उनके साथियों ने घर आ कर खबर दी । आंटी के कुछ करीबी रिश्तेदार आये है उन्हें भोपाल ले जाने के लिए।
यहाँ आंटी अपने बेटे के साथ रहती थी,अंकल का कुछ दिनों पहले ही भोपाल तबादला हुआ था.उनका बड़ा बेटा कही बाहर रह कर पढ़ रहा है। जब आंटी बाहर आयीं तो सभी ने उन्हें धधास बंधाया ।
सब ठीक हो जायेगा भाभीजी ,आप चिंता मत करो।
उस शाम सूरज भी जैसे आगाह करना भूल गया, बस उदास सा, लालिमा बिखेरे बिना चला गया । लोगो में चर्चा होती रही क्या हुआ होगा, सर तो बिलकुल ठीक थे,वगैरह वगैरह ।
उस समय २४ घंटों के न्यूज़ चैनल्स नहीं होते थे,न ही शाम के अखबार खंडवा जैसी छोटी सी जगह में छपते थे ।
रात ८ बजे के समाचार में पता चला की हादसे की भयावहता क्या है ?पर कौन सी गैस,कितनी नुकसानदेह ये अभी भी समझ नहीं आ रहा था ।
दूसरे दिन अखबारों में छपी ख़बरों ने तो जैसे सब को हिला कर रख दिया। अब सही मायने में सब को वैध सर की तबियत की चिंता हुई।
उस समय मोबाइल जैसे साधन भी नहीं ठ । २-३ दिन बाद किसी लड़के ने कोलेज से ला कर खबर दी ,कि "सर नहीं रहे "।
कोलोनी में सन्नाटा पसर गया ,आंटी की,उनके बच्चो की ,इतनी बड़ी जिम्मेदारियों की चिंता ने सब को व्यथित कर दिया।
१२-१५ दिन बाद जब आंटी वापस आयी ,तब पूरी बात पता चली। अंकल रसायन शास्त्र के प्रोफेसर थे। जब गैस फैली उन्हें उसकी सान्ध्रता का अंदाजा हो गया था। और उसकी मारक शक्ति का भी, पर उन्हें मालूम था की मुह-नाक पर गीला कपडा रखने से इससे बचा जा सकता है। इसलिए वे न सिर्फ उनके परिवार के लोगो को बल्कि हॉस्पिटल में भी और लोगो को मुह पर गीला कपडा रखने की सलाह देते रहे। और बोलने के लिए अपने मुह से गीला कपडा हटाते रहे,और गैस की चपेट में आने से उनकी मौत हो गयी।
इस आकस्मिक आघात से उबरने में आंटी को बहुत समय लगा ,गैस त्रासदी के मुआवजे के रूप में मिलाने वाली रकम उनके बेटों के भविष्य की राह बना सकती थी।
पर आंटी के मन में इस त्रासदी के जिम्मेदार लोगो के लिए जो गुस्सा था ,वह मुआवजे की रकम से ठंडा नहीं हो सकता था।
सालों -साल भोपाल गैस त्रासदी की खबरे पढ़ते रहे ,आन्दोलन होते रहे,दिलासे मिलते रहे ,
"कल मिलेगा न्याय"जब ये शीर्षक पढ़ा तो मन में एक आस बंधी अब आंटी चैन मिलेगा ,उनकी जिंदगी की खुशियाँ छीनने वाले को सजा मिलेगी.शायद और जिम्मेदार लोग इस सजा से सबक सीखेंगे ,और अपने काम के प्रति गंभीर होंगे।
२५ साल के इन्तेजार के बाद जो हाथ आया ,ऐसा लगा अगर ये फैसला आंटी के जाने के बाद आता तो शायद वो इंतजार में ही सही एक आस के सहारे जी तो लेती। इस फैसले के बाद उनके दिल पर क्या गुजारी होगी ......
अब मैं क्या बताऊ आपको........

13 comments:

  1. त्रासदीपूर्ण एवं दुखद हादसा था भोपाल का गैस कांड

    पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था।
    शायद चैरनोविल के बाद इसका ही नम्बर होना चाहिए।
    दुर्भाग्य है कि पीड़ितों को न्याय अभी तक नहीं मिल सका
    एन्डरसन भाग गया। फ़िर नहीं आया।

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  2. raajneeti aur dhan ka lalach dono hi jimmedaar rahe....26 saal baad 2 saal ki saja ...laasho ki khilli udaayi gayi bas...

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  3. बहुत मार्मिक....पढ़ कर दिल दहल गया ..

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  4. lalitji dileepji,sangeetaji,
    jab bhi bhopal gas kand ki koi khabar padhti hu,aunty ka chehra yad aa jata hai.bahut karreb se unke dukh ko dekha isliye shayad is trasdi ko samajh saki,aur un lakho logo ki peeda ko bhi jinhone apno ko khoya hai.

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  5. One of the terrible part of History of INDIA... and most terrible is our Legal Things... Our Govt. just play with us... Take Any incidence, our Govt is not fit till date...This is due to Dirty politicians...They make people forget the things...No 1 is serious...WE HAVE TO CHANGE THE THINGS...JUSTIS...

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  6. मैं स्वयं भोपाल का हूँ, मैंने वह काली रातें भोगी हैं, आपका दर्द मैं अच्छी तरह से समझ सकता हूँ.

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  7. बहुत अच्छा लिखा है आपने। वास्तव में बहुत तकलीफदेह हालात से गुजरे पीडि़त।
    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-अपमान झेलती प्रतिमाएं। समय हो तो पढ़ें और प्रतिक्रिया भी दें-
    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  8. यह अपना देश ही है जहाँ ऐसा हो सकता है... न्याय में देरी... देशी साजिश के कारन दोषियों का प्रत्यर्पण नहीं हो पाना.. सही लोगों तक मुआवजा नहीं पहुँच पाना... मुआवजे के नाम पर सरकारी अफसरों की चांदी और एन जी ओ का कुकुरमुत्तों की तरह उग आना... हम केवल अफ़सोस कर सकते हैं कुछ नहीं... और तो और... दोषी कंपनी और रास्ते से फिर भारत में आने की फिराक में है और यही के कॉर्पोरेट उनकी मदद कर रहे हैं... मर्म्सप्र्शी रचना के आज बधाई नहीं बस संवेदना !

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  9. एक कटु सत्य कहा है मगर यहाँ तो अन्धेर नगरी है और चौपट कनून है।

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  10. व्यथित और विचिलित करने वाला हादसा था जिसे कभी नहीं भुला जा सकता.

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  11. संभवता पहली बार आया हूँ..आपके ब्लॉग पर लेकिन बस पढ़ गया कई पोस्ट..संस्मरणात्मक अभिव्यक्ति बेजोड़ है आपके पास.इस पोस्ट ने तो हिलाकर रख दिया..जोर-कलम और ज़्यादा यही दुआ है..

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  12. जिंदगी की तल्ख सच्चाई....
    और कुछ कहा भी तो नहीं जाता...
    --------
    ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?

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  13. बहुत ही दुखद:
    वैद्य सर के लिए और गैस कांड में उन सभी के लिए संवेदना जिन जिन ने वह पीड़ा झेली है।

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नर्मदे हर

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