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नर्मदे हर
बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...
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#घूंट_घूंट_उतरते_दृश्य एक तो अनजाना रास्ता वह भी घाट सड़क कहीं चिकनी कहीं न सिर्फ उबड़ खाबड़ बल्कि किनारे से टूटी। किनारा भी पहाड़ तरफ का त...
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भास्कर मधुरिमा पेज़ २ पर मेरी कहानी 'शॉपिंग '… http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/19022014/mpcg/1/
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छुट्टियों में कही जाने का कार्यक्रम नहीं बन पाया तो सोचा चलो एक दो दिन के लिए महेश्वर ही हो आया जाये.वैसे मालवा की गर्मी छोड़ कर निमाड़ की ग...
बधाई व शुभकामनाऐं ।
ReplyDelete"परछाइयों के उजाले" की सभी कहानियां तो मैने भी पढ़ी हैं, कई कहानी इतनी करीब से गुजर गई, लगा कि ये अपने ही इर्द गिर्द बुनी हुई तो नहीं ..कहानी के पात्र वाकई असल जिंदगी के बहुत करीब लगते हैं। पात्रों के भाव और उनके अहसास को जिस तरह प्रस्तुत किया गया है, उसकी जितनी भी प्रशंसा हो कम है। पुस्तक के बारे में कुछ भी कहने में मेरे पास शब्दों की कमी हो जाती है, खैर
ReplyDeleteराहुल खुद लेखक है, इन्होंने जिस तरह किताब की बात की है, लग रहा है मेरे मन की बात थी, जिसे आपने कह दिया। पुस्तक के लिए कविता जी को और पुस्तक की जीवंत समीक्षा के लिए राहुल को ढेर सारी शुभकामनाएं
अभी तक मैंने किताब तो नहीं पढ़ी पर राहुल जी की यह सुन्दर समीक्षा इस बात का प्रमाण है की किताब वाकई खुबसूरत है। बधाई
ReplyDeletebadhai kavita ji .
ReplyDeletebadhai kavita ji .
ReplyDeleteमेरी तरफ से भी बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई.मैं भी पढ़ना चाहती हूँ पर कैसे मिलेगी..?
ReplyDeletemubarkan...
ReplyDeletebahut-bahut shubhkamnayen.....padhke batati hun..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ !!
ReplyDeletehardik Badhayee...bahut sundar
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