Sunday, March 17, 2024

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जीवन की प्रार्थना की याद ही नहीं। यह एक बहाना ही है कि फिर फिर उन देवस्थानों में जाएं और कृतज्ञता व्यक्त करें। इसी क्रम में आज नर्मदा स्नान का मुहूर्त निकला।

खरगोन आते-जाते हमेशा नर्मदा पार करते हैं। एक नदी जिसके दर्शन मात्र से पुण्य मिलता है। इस बार नर्मदा यात्रा के समय न स्वास्थ्य ठीक था और शादी की तैयारियों के कारण जाना संभव ही नहीं था।

शादियों के तीन महीने बाद तक न जाने कितनी बार नर्मदा पुल से गुजरे हर बार वादा किया माँ जल्दी ही आएंगे लेकिन जब तक वह न बुलाएं कैसे जाना होगा।

आज बुलावा आया तो शाम को निकल पड़े। स्नान करने के साथ मन में उछाह था दीपदान करने का। नर्मदा के विशाल विस्तार पर टिमटिमाते दीप मंथर गति से आगे बढ़ते हैं जिन्हें देखकर ही मन को सुख मिलता है। बस आजकल जिस तरह प्लास्टिक के दोने में रखकर दीप प्रवाहित करते हैं वह मुझे नहीं करना था। घर से घी में डूबी फूलबत्ती तो रख लीं लेकिन उन्हें जलाने के लिए आटे के दीपक नहीं बना पाए इसलिये जामुन के कुछ पत्ते तोड़कर रख लिये।

स्नान के लिए दो आप्शन थे एक महेश्वर का अथाह जल और दूसरा मंडलेश्वर का धीरे-धीरे ढलता किनारा। पिछली बार महेश्वर में स्नान करते जब पैर नीचे की सीढ़ी पर रखना चाहा वह अथाह तल की ओर चला गया और मैं बस डूबने लगी। मुझे संभालने में पतिदेव के भी पैर उखड़ गये और वे घबरा गये इसलिये आज जब लगभग अंधेरा हो चला था महेश्वर में स्नान करने की हिम्मत नहीं हुई। इसलिये रास्ता पूछते हम पहुँचे मंडन मुनि की नगरी मंडलेश्वर के घाट पर।

पत्थरों से बना घाट धीरे-धीरे पानी में उतरता है और जितनी गहराई तक जाना हो वहीं रुकने के लिए जमीन दे देता है। कमर से थोड़े ऊपर पानी में डुबकियाँ लगा लगाकर नहाए। पैरों के नीचे एक सुदृढ़ तल बड़ी आश्वस्ति था। नहाकर नदी को अर्ध्य दिया और बाहर निकले। कपड़े बदलने के लिए यूँ तो चेंजिंग रूम हैं लेकिन चूंकि अंधेरा था और तट बिलकुल खाली तो वहीं थोड़ी आड़ करके कपड़े बदले।

पूजा करके जामुन के पत्ते पर एक एक फूलबत्ती रखकर जलाई और नदी में प्रवाहित कर दी। हल्की-फुल्की बत्ती को पत्ते ने आसानी से वहन किया और नदी के मंधर बहाव के साथ दूर तक बहते चले गये। चूँकि रात नदी के तल पर फैल चुकी थी नावें बंद हो चुकी थीं और कोई स्नानार्थी नहीं थे इसलिए दीपों की इस यात्रा में कोई अवरोध नहीं था।

बस संतोष इस बात का था कि कुछ दिनों में पत्ते सड गल जाएंगे और बत्ती जलकर राख हो जाएगी और नदी में कोई प्रदूषण नहीं होगा।

बस इस तसल्ली के साथ नर्मदा स्नान पूर्ण हुआ।

हर हर नर्मदे

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...