Sunday, March 18, 2012

यूं मन का बागी हो जाना...



आज सुबह स्कूल में टी टाइम में एक कलीग आये ओर कहने लगे मैडम प्रसार भारती तीन दिवसीय साहित्यिक कार्यक्रम कर रहा है वासांसि के नाम से जिसमे कई नामी साहित्यकार आ रहे है.अगर हो सके तो आप भी आइये.कई अच्छे रचनाकारों को सुनने का मौका मिलेगा. अभी दो दिन पहले ही तो मैंने अपनी एक कविता उन्हें सुनाई थी.स्कूल में काम के बीच में अपनी रची दो पंक्तियाँ कभी में कभी वो एक दूसरे को सुना देते है जिससे दिन भर काम के बाद सृजन का उत्साह बाकी बच रहता है. कहने लगे उसके पास तो में आज नहीं लाया लेकिन कल ला दूंगा पर आप आज भी जाइये .इंदौर में साहित्यिक कार्यक्रम होते रहते है जिनमे जाने कि इच्छा कभी अकेले होने के संकोच में तो कभी दूर ,रात का समय या किन्ही ओर कारणों से टल जाता है.फिर भी मैंने कहा जी सर में जरूर जाउंगी. हालाँकि ये भी पूछने का समय नहीं मिला कि कार्यक्रम का स्वरुप होगा कैसा?? बस यूंही कह दिया कि जाउंगी लेकिन तब भी ये ना मालूम था कि चली ही जाउंगी.   

शाम साढ़े छ बजे उन्हें फ़ोन करके पूछा कार्यक्रम कितने बजे से है?जवाब मिला ठीक सात बजे से ओर प्रसार भारती के कार्यक्रम समय से शुरू होते है तो आप ठीक टाइम से पहुँच जाइये.जल्दी से बच्चों को कुछ बना कर खिलाया ओर घर से रवानगी की.गाड़ी स्टार्ट करते ही समझ आ गया की कुछ तो प्रॉब्लम है सामने डेश बोर्ड पर बेटरी ,हैण्ड ब्रेक ,फ्यूल सभी के  सिग्नल आ रहे थे .सात बजने में सिर्फ ५ मिनिट बाकी थे ओर रास्ता लगभग आधा घंटे का था. इसलिए बाकी सब को नज़र अंदाज़ कर गाड़ी आगे बढा दी लेकिन ये क्या जाने कैसी कैसी आवाजें आ रही है हेंडल टाईट चल रहा है ओर कम स्पीड पर गाड़ी बार बार बंद हो रही है. कुछ समझ नहीं आया बस कार्यक्रम में पहुंचना है यही ख्याल दिमाग में था इसलिए ना तो गाड़ी रोकी ना जाने का इरादा टाला. ये अलग बात है की मेन रोड पर गाड़ी खुद ही कई बार रुकी आगे पीछे गाड़ियों के शोर के बीच भी बस एक ही बात कार्यक्रम में पहुंचना है. 
मन में जब कोई छवि अंकित होती है तो उसकी छाप कितनी गहरी होती है ये तो घर आ कर सोचने पर समझ आया. आज से लगभग ३० साल पहले आकाशवाणी इंदौर के एक हास्य कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला था. हमारे पडोसी आकाशवाणी  में थे उन्होंने ही निमंत्रित किया था.उस कार्यक्रम के कुछ अंश आज भी दिमाग में अटके पड़े हैं. शायद ये भी एक कारण था की दिमाग जिद्द पर था की जाना ही है. इंदौर की भीड़ भरी सडकों पर शाम के समय यूं एक बिगड़ी हुई गाड़ी चलाना ओर ये भी ना पता हो की उसमे खराबी क्या है या कितनी दूर इससे जा पाउंगी ,मन का बागी हो जाना ही तो था.जो हर तत्पर परिस्थिति को नज़र अंदाज़ कर बस अपने मन की किये जा रहा था जबकि ये भी नहीं पता था की वहां क्या मिलना है या पाना है. बस एक नाम आकाशवाणी ओर सपना किसी साहित्यिक कार्यक्रम में अच्छे वक्ताओं को रचनाकारों को सुनने का मौका. दोनों ही मन के कोने में दबे सपने के सामान है जिन्हें आज पूरा करना था. 
बहुत ज्यादा देर तो नहीं हुई होगी इंदौर के प्रसिध्ध चित्रकार रचनाकार प्रभु जोशी जी का संबोधन चल रहा था .फिर बारी आयी प्रसिध्ध लेखक आयजी की जिन्होंने अपनी कहानी पढ़ी ग्लोब्लाइज़ेशन .एक डायरी के पन्नो को पढ़ते हुए कहानी किस तरह अपने परिवेश तक पहुंची ओर फिर किस तरह अपने सरोकारों को परे झटकती मानसिकता को प्रकट कर गयी.सुनना बहुत अद्भुत अनुभव था. 
प्रसिध्ध कहानीकार महेश कटारे जी का उदबोधन बहुत प्रेरक था जिसमे नयी कहानी से उठते हुए सवाल ओर उन सवालों के जवाबों की ओर सोचने को बाध्य करती सोच की ओर अग्रसर करने की क्षमता होने की बात कही गयी. बहुत सरल शब्दों में उन्होंने कहा की भारतीय कहानी का इतिहास जो मात्र सवा सौ साल पुराना है वो इसका अर्जित  इतिहास है ओर इसके  पहले का इतिहास इसका संचित इतिहास है. जो सूत की कथाओं से शुरू होता है जिसमे कहानी के साथ सोच की वृत्ति को उकेरा गया है .इसीलिए सूत जी ना सिर्फ कहानी कहते हैं बल्कि सामने वाले के मन में प्रश्न भी जगाते है ओर उसका उत्तर ढूँढने को विवश भी करते है.मालवी में कहानी को बात कहते है उन्होंने बहुत खूबसूरत कहावत कही "बात वो जिसमे रात कटे".इसकी व्याख्या करते उन्होंने कहा की जिस बात को कहते सुनते अंधकार छट जाये ओर पो फट जाये उजाले की किरण दिखाई देने लगे वही बात है. उन्होंने कहानी में सही शब्दों के इस्तेमाल पर जोर दिया साथ ही भाषा की सरलता को भी एक आवश्यक अंग बताया. 
सुधा अरोराजी ने अपनी एक बहुत पुरानी कहानी पढ़ी सात सौ का कोट जो कभी धर्मयुग में छपी भी ओर काफी चर्चित रही थी. सुधा अरोराजी की कहानियां पोडकास्ट पर यदा कदा सुनती रहती हूँ ,आज पहली बार उनके मुंह से सुनी. 
फिर बारी आयी समीक्षक राकेश बिहारीजी की उन्होंने कुछ कहानियों का सन्दर्भ लेकर जिस तरह उनकी व्याख्या की कहानियों को पढ़ने समझने का एक नया नजरिया जैसे मिल गया हो. सत्यनारायण पटेलजी की लुगड़े का सपना ,जया जी की खारा पानी ,इन कहानियों में छुपे यथार्थ के साथ एक कसक जो मन में उठती है उसकी चर्चा करते हुए उन्होंने आधुनिक कहानियों में यथार्थ के चित्रण ओर विखंडन को चिन्हित करते हुए इस विखंडन को नयी सोच नयी पहचान का पर्याय बताया. एक कहानी सात फेरे का उल्लेख करते हुए उन्होंने अपनी बात बहुत खूबसूरती से समझाई. सुधाजी ने अपने उदबोधन में उन्हें दूसरा प्रभु जोशी करार दिया था .उनकी भाषा विचारों पर पकड़ ओर उनका संयोजन अद्भुत है. 

अंत में प्रसिध्ध कहानीकार गोविन्द मिश्रजी ने अपने उदबोधन में कहानी में यथार्थ के साथ सुन्दरता की बात कही.उन्होंने कहा की वीभत्स यथार्थ की बजाय एक आवरण के साथ यथार्थ का चित्रण ज्यादा प्रभावशाली होता है क्योंकि कहानी पाठक के अंतःकरण से जुड़ती है.अपनी बात के समर्थन में उन्होंने मदर  टेरेसा से अपनी बातचीत का जिक्र करते हुए कहा की मदर ने कहा था की आम आदमी इसलिए जीता है क्योंकि वो अपने आसपास सुन्दरता को देखता है.
कुल मिला कर आज के कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाती अगर आज जरा भी किन्तु परन्तु सोचे गए होते.ओर अफ़सोस इस बात का रहता की क्या खोया इसका अफ़सोस भी नहीं कर पाती.कल इसी क्रम में उपन्यास पर चर्चा होने वाली है.उम्मीद है कल भी इसमें शामिल हो पाउंगी.ओर हो सका तो उसके बारे में आपको बताउंगी भी. 

15 comments:

  1. maan to hamesa se hi bagi hai hum hi use baandh kar rakna chahte hai..
    nice read..

    ReplyDelete
  2. बढ़िया प्रस्तुति ||

    ReplyDelete
  3. अपने अनुभव साझा करने के लिए आभार !!

    ReplyDelete
  4. इतनी परेशानी के बाद , सुन्दर रिपोर्ट ! बधाई !

    ReplyDelete
  5. सुन्दर प्रस्तुति ... आभार...

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर रपट्।

    ReplyDelete
  7. बहुत ही बढ़िया


    सादर

    ReplyDelete
  8. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    रोचक रिपोर्ताज ..बेहतरीन लेखन ..बधाई स्वीकारें



    नीरज

    ReplyDelete
  9. वाह अच्छी रिपोर्ट लिखी है आपने। ‘ सार - सार को गहि रख्यो थोथा दियौ उड़ाइ...’।

    ReplyDelete
  10. बहुत रोचक प्रस्तुति...जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर वृतांत विवरण, कथा कहानी से भी अधिक रोचक।

    ReplyDelete
  12. यूं मन का बागी हो जाना .......बहुत रोचक व जानकारीपूर्ण आलेख । अच्छा लगता है चीजों को सहज और सरल रूप मे पढना । इंदौर साहित्यिक नजरिये से एक अलग पहचान रखता है इसलिए ऐसे अवसर आपको मिलते रहेंगे । बस समस्या आज की जिंदगी से कुछ वक्त निकालने की है । पुन: एक अच्छी रोचक प्रस्तुती के लिए बधाई ।

    ReplyDelete
  13. वाह कविता जी जिद हो तो ऐसी .ऐसे साहित्यकारों से मिलना ,उनकी रचनाएं सुनना एक उपलब्धि है .

    ReplyDelete
  14. वाह कविता जी जिद हो तो ऐसी .ऐसे साहित्यकारों से मिलना ,उनकी रचनाएं सुनना एक उपलब्धि है .

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...