पोस्टआफिस
आज पोस्ट आफिस जाने का काम पडा। घर के पास वाला पोस्ट आफिस बंद था एक मन हुआ कि वापस घर चला जाए लेकिन फिर सोचा थोड़ा दूर ही सही गाड़ी से जाना है चले ही जाती हूँ। गूगल पर रास्ता देखते वहाँ पहुँची नई बनी बिल्डिंग में साफ सुथरा आफिस उसमें व्हीलचेयर जाने के लिए बना रैंप। पार्किंग शेड हालांकि वह पर्याप्त न था फिर भी कुछ तो था जितनी जगह थी उस हिसाब से।
अंदर जाकर देखा तो एक काउंटर पर लंबी लाइन नजर आई आगे लगभग छह सात आदमी खड़े थे उनके पीछे दो बच्चे खड़े थे जिनकी उम्र लगभग दस ग्यारह साल होगी और वे आपस में धींगामस्ती करते अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। खैर मैं उनके पीछे जाकर खड़ी हो गई। अन्य काउंटर पर पोस्ट आफिस अकाउंट के काम हो रहे थे एक काउंटर जिस पर दिव्यांग लिखा था बंद था क्योंकि उस समय वहाँ कोई नहीं था।
मेरे आगे खड़े बच्चे के हाथ में दो तीन लिफाफे थे और दो सौ के नोट के साथ कुछ चिल्लर भी। वे आपस में धीरे धीरे बात करते कभी गले में हाथ डालकर लडियाते कभी लड़ते रूठते मनाते।
लाइन धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी तभी एक व्यक्ति एक डब्बा लेकर वहाँ आया लाइन को देखा और सामने काउंटर पर लाइन के बगल में जाकर खड़ा हो गया और डब्बा काउंटर पर रख दिया।
पूरी तरह सफेद बाल मूँछें बड़े से पेट पर उठंगी शर्ट पैंट और चप्पल पहने उसने एक दो बार आगे पीछे देखा और फिर अपना मोबाइल निकाल कर उसका कैमरा आॅन किया। काउंटर पर पैसों का लेनदेन चल रहा था उसने एक फोटो क्लिक की और फिर इधर-उधर देखा तो मुझे अपनी तरफ देखता पाया और जरा सकपका सा गया। फिर उसने कैमरा बंद करके किसी को फोन लगाया थोड़ी बहुत बातचीत करके फोन जेब के हवाले किया।
लाइन बहुत धीरे चल रही थी वह लगातार काउंटर के काम होते देख रहा था। तब तक मेरे पीछे और दो तीन लोग आकर खड़े हो गये।
तभी पीछे खड़े एक लड़के ने कहा एक्सक्यूज मी मैम मेरे पास कैश नहीं है आप मुझे 50 रुपये दे देंगी मैं आपके नंबर पर आनलाइन पेमेंट कर दूँगा।
दस सेकेंड लगे समझने में फिर मैंने कहा कि आनलाइन पेमेंट काउंटर पर कर दीजिए।
यहाँ आनलाइन की सुविधा नहीं है।
मैंने एक नजर काउंटर पर डाली वहाँ कोई क्यू आर कोड नहीं था। चूँकि मैं खुद आनलाइन ट्रांजेक्शन कम करती हूँ इसलिए उसकी बात गले नहीं उतरी और मैंने कहा ऐसे कैसे नहीं होगा आनलाइन ट्रांजेक्शन? यह सरकारी विभाग है केंद्र शासन का है आनलाइन सुविधा तो होना ही चाहिए। आप कहिये वे उपलब्ध करवाएंगे। नहीं तो आप काउंटर पर बैठे व्यक्ति के नंबर पर ट्रांजेक्शन करिये वह अपनी जेब से पैसे भर देगा।
कह तो दिया बाद में सोचती रही अगर कैश न होने से उसका काम नहीं हुआ तो क्या उसे पचास रुपये दे दूँ? फिर लगा क्या पता सच में पैसे नहीं हैं या फोन नंबर स्कैन करने के लिए झांसा है। क्या पता सच में कोई जरूरत मंद हो। तब तक उसने किसी को फोन लगाया और कहा कि आनलाइन पैसे दे सकते हैं क्या। वहाँ से जो भी कहा गया पर उसने अच्छा ठीक है कहते फोन बंद किया तो लगा हो जायेगा।
अब ध्यान फिर आगे गया।
जैसे ही सभी आदमी वहाँ से हटे और बच्चों का नंबर आया वह तुरंत डब्बा उठाकर आगे बढा और मैंने उसे टोक दिया। "भाईसाहब ये बच्चे और मैं आपके पहले से खड़े हैं आप लाइन में आइये।"
"मैं सीनियर सिटीजन हूँ"
यहाँ कहाँ लिखा है सीनियर सिटीजन के लिए अलग लाइन है? मैं भी लाइन में खड़ी हूँ महिलाओं की कोई अलग लाइन नहीं बनाई तो आप भी लाइन में आइये। ये बच्चों का नंबर है।
"सीनियर सिटीजन की कोई कद्र नहीं है मैं बता दूँ "वह कुछ अनाप-शनाप पर आया और मैंने ऊँगली उठाई
" जरा तमीज से "और वह चुप।
काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने उससे कहा आप लाइन में आइये। बच्चों के जाने के बाद उसने कोई कोशिश नहीं की कि आगे बढ़े मैंने अपना काम किया और बाहर निकल गई।
गाड़ी में बैठकर खुद से बड़बड़ाई जब तक आदमी लाइन में थे तब तक सीनियर सिटीजन होना याद नहीं आया। हष्ट-पुष्ट इंसान दो छोटे बच्चों की बारी मारकर सीनियर सिटीजन होने का दंभ भर रहे हैं। वैसे निकलते हुए देख लिया था कि मेरे बाद उनका ही नंबर था।
सुन्दर
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