Saturday, December 26, 2020

उन आठ दिनों की डायरी 4

 उन आठ दिनों की डायरी 4

7 नवंबर 2020

सुबह जल्दी उठकर हास्पिटल पहुँची कुछ देर बाहर हाॅल में बैठी रही। गार्ड को बता दिया था कि मुझे मिलना है हसबैंड से और जानना है कि उनकी तबियत कैसी है? उसने कहा थोड़ी देर में बुलाते हैं। थोड़ी देर करते करते लगभग डेढ़ घंटा बीत गया अब धैर्य जवाब देने लगा। मैं फिर अंदर गई गार्ड नहीं था तो अंदर चली गई। नर्सिंग स्टेशन और वार्ड के बीच में खड़ी थी कि कोई दिख जाये तो उससे पूछ कर हसबैंड को देख आऊं। तभी वहाँ ड्यूटी डाक्टर आया और बिना कोई बात सुने चिल्लाने लगा। मैडम आप कल भी आईं थीं आपको बार बार अंदर नहीं आना है आप क्यों बार बार अंदर आ रही हैं?

बार बार कहाँ आ रही हूँ कल मुझे हसबैंड ने बुलवाया था रिपोर्ट लेने उसके पहले उन्हें खाना खिलाने आई थी क्योंकि पैर से एंजियोग्राफी करने के कारण वे उठ कर बैठ नहीं सकते थे। जो रिपोर्ट आपको मुझे उपलब्ध करवाना था वह आपने नहीं करवाई इसलिये मुझे आना पड़ा। लेकिन वह कुछ सुनने को तैयार नहीं था और लगातार चिल्लाता रहा फिर आखिर में बोला आपके हसबैंड ठीक हैं।

बिना बात की चिल्ला चोट से मैं आहत हुई। अपने पेशेंट का हालचाल जानना हर अटेंडेंट का अधिकार है और उसके लिये भेड़ बकरी जैसे हकाला जाये यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। मैंने कहा कि आपने जो आखरी लाइन बोली वह सबसे पहले ठीक से बोल देते तो मैं चली जाती। बस यही तो जानना था मुझे कि मेरे हसबैंड कैसे हैं?

यह सुनकर उसका पारा फिर चढ़ गया और वह कहने लगा आपको अपने हसबैंड को यहाँ रखना है तो रखिये नहीं तो कहीं और ले जाइये।

अब यह बात असहनीय थी। मैंने कहा माइंड योर लैंग्वेज। वह फिर चिल्लाने लगा तब तक मैंने कहा ये कहने का अधिकार आपको तो क्या किसी को नहीं है यू जस्ट माइंड योर लैंग्वेज। तब तक और डाक्टर नर्स आ गये उन्होंने उसे शांत किया और अंदर ले गये। जाते जाते उसने डाक्टर मनोज बंसल को फोन लगाया जो हसबैंड का इलाज कर रहे थे। मैंने कहा जिसे फोन लगाना है लगाओ लेकिन अपनी हद में रहना मैं यहाँ इलाज करवा रही हूँ खैरात नहीं ले रही। मैं बाहर आ गई तभी डाक्टर बंसल का फोन आया क्या हुआ मैम?

मैंने कहा समझा लेना आपके ड्यूटी डाक्टर को तमीज से बात करे। ये मत समझना कि मैं हेल्पलेस हूँ। इलाज करवाना है तो करवाओ या ले जाओ अपने पेशेंट को यह कहने का अधिकार हास्पिटल के मालिक को भी नहीं है। हास्पिटल मेडिकल काउंसिल के नियमों से बंधा है मैं छोडूंगी नहीं उसे ।

मैंने उन्हें पूरी बात बताई कि कब कब और क्यों मैं अंदर गई थी और यह भी कि अगर मुझे टाइम टू टाइम मेरे पेशेंट की प्रोग्रेस रिपोर्ट नहीं मिलेगी तो मैं अंदर जाऊंगी रिपोर्ट लेने। मुझे ये रिपोर्ट सेकेंड ओपिनियन के लिए भेजना है और ये मुझे तुरंत चाहिए ये मेरा अधिकार है।

डाक्टर को भी शायद समझ आ गया कि मैं आसानी से हकाले जाने वाले लोगों में नहीं हूँ और इसलिए वह समझाने लगे जाने दीजिये मैम हो जाता है वगैरह वगैरह। इसके बाद डाक्टर ने हसबैंड के कलीग को फोन लगाकर सभी बातें बताई वे डॉक्टर के पूर्व परिचित थे। उनका फोन आया जो मुख्यतः मुझे शांत करने के लिए था कि कहीं मैं शिकायत न कर दूँ। मैंने कहा मैं किसी का बुरा नहीं करना चाहती लेकिन मैं कमजोर नहीं हूँ और रही बात शिकायत की तो मेरे हसबैंड की केयर में कोई कोताही हुई तो मैं नौकरी नहीं कैरियर भी खत्म कर दूंगी यह आप समझा देना।

मन बेहद क्षुब्ध था थोड़ी ही देर में भाई आ गया। मैंने उसे कुछ नहीं बताया क्योंकि अगर उसे पता चलता कि मेरे साथ इस तरह बात की गई है तो वह कोहराम मचा देता।

थोड़ी देर बाद मुझे अंदर बुलाया गया। हसबैंड को शायद कुछ पता न था उन्होंने कोई बात नहीं की और न ही मैंने। यह समय उनको टेंशन देने का नहीं था।

बाहर आकर बैठी तब देखा एक बेहद बुजुर्ग महिला बदहवास सी बैठी हैं। आसपास बैठे लोग उनके फोन से नंबर लेकर उनके रिश्तेदारों को फोन कर रहे थे। उनका मेडिक्लेम था या नहीं यह भी उन्हें नहीं पता था। उनका पोता दिल्ली में था उसे खबर की गई वह आने वाला था। उन्हें दवाइयों की लिस्ट दी गई जिसे किसी और पेशेंट के परिजन लेकर आये उन्होंने उन्हें पैसे दिये। पता चला कि सुबह सुबह उनके हसबैंड को खून की उल्टी हुई है और वे पडोसियों की मदद से उन्हें यहाँ लाईं हैं।

बोली भाषा से वे बिहार की लगीं मैंने पूछा कि यहाँ आप और आपके हसबैंड अकेले रहते हैं? बच्चे वगैरह कहीं बाहर हैं।

कहने लगीं कि बेटा तो यहीं है पोता अभी दिल्ली से आ रहा है। मैंने पिछले दो घंटे में उनके बेटे को नहीं देखा था और इसके बाद कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं हुई। ऊफ इतना अकेलापन झेलते वे किस ह्दय से यहाँ बैठी हैं उन्हें कुरेदना ठीक नहीं है। मैंने बात बदलते हुए कहा कि आपने खाना खा लिया।

खाना तो पडोसी लेकर आये थे लेकिन अंदर ही नहीं लाने दिया। यहाँ कैंटीन है वहाँ जाकर खा लूँगी।

दो बज रहे हैं कब खाएंगी पहले खाना खा लीजिये।

हाँ पोता आ जाये न फिर खाऊंगी ।

कब तक आयेगा?

चार बजे उसकी फ्लाइट है दिल्ली से।

अरे तब तो उसे पांच साढ़े पांच बज जाएंगे आने में। मैं खाना खाने जा रही हूँ कैंटीन आप चल रही हैं? मैं समझ गई थी कि अकेले जाने की घबराहट है कि इतने बड़े हास्पिटल में कहीं खो न जाऊँ।

वे तुरंत तैयार हो गईं। मुझे अंदर से एक फाइल दी गई थी कि सीएमओ से रूम अलाॅट करवा लूं मैंने वह पर्स में रखी कि लौटते में वह काम भी करवा लूंगी।

लिफ्ट तक पहुंचे कि हसबैंड दूसरे दरवाजे से लिफ्ट के सामने लाये गये। वे व्हीलचेयर पर थे। कहां तो सुबह मिलने के लिए इतनी हील हुज्जत हुई और अब वे यहाँ पब्लिक प्लेस में व्हीलचेयर पर बैठे हैं और लिफ्ट से ईको के लिए ले जाये जा रहे हैं जिसमें सभी रोगी और अटेंडेंट ले जाये जाते हैं। अब ये लूप होल बता दिये जाएं तो फिर कोई तिलमिला जायेगा इसलिए बस दो मिनट हैलो हाय करके हम नीचे कैंटीन में चले गये। 

कैंटीन में आंटी जी के लिए बिना प्याज लहसुन की पेशेंट वाली थाली ली उन्होंने तुरंत पर्स खोला पैसे मैं दूंगी। मैंने पैसे लेकर उनकी स्लिप कटवाई हमने खाना खाया और उन्हें लिफ्ट में छोड़ा और मैं सीएमओ आफिस चली गई।

सीएमओ ने कहा कि अभी कोई रूम खाली नहीं है। सेमी प्रायवेट भी नहीं है।

जनरल। आप फर्स्ट क्लास वाले हैं जनरल आपको जमेगा नहीं कहते हुए उन्होंने फाइल रख ली जैसे ही रूम खाली होगा मैं अलाॅट कर दूंगा।

मेडीकल इंश्योरेंस कंपनी से फोन आया कि आप एक लेटर दें कि पेशेंट का पहले कहीं इलाज नहीं हुआ है?

अरे ये क्या शर्त है क्या एक बार ही बीमार पड़ सकता है कोई? लेकिन एक बार इंश्योरेंस के चक्कर में पड़ गये तो आप चकरघिन्नी से घुमाए जाते हैं। मैंने लेटर लिख कर रखा था भाई उसे लेकर गया।

हसबैंड के कलीग का फिर फोन आया कि डाक्टर आपसे बात करना चाह रहे हैं लेकिन डर रहे हैं भाभीजी थोड़ा आराम से बात करियेगा।

मैंने कहा कि अगर वे आराम से बात करेंगे तो मैं भी करूँगी लेकिन गलत बात बर्दाश्त नहीं करूंगी। मेरे कोई सींग नहीं उगे हैं इसलिए उन्हें डरने की जरूरत नहीं है।

डाक्टर ने कहा कि मैडम आप चाहें तो वर्मा जी को आज ही डिस्चार्ज कर देते हैं क्योंकि संडे को डिस्चार्ज हो नहीं पाएंगे फिर मंडे को डिस्चार्ज करेंगे। अभी कोई रूम खाली नहीं है जब रूम मिलेगा तब शिफ्ट कर देंगे।

आज कैसे डिस्चार्ज करेंगे? अभी तो अटैक आये अडतालीस घंटे हुए हैं 72 घंटे आब्जर्वेशन में रखना पड़ता है न।

जी रखना तो चाहिए लेकिन रूम खाली नहीं है।

रूम नहीं है तो आईसीयू में रखिये लेकिन अभी मैं डिस्चार्ज नहीं करवाऊंगी। हद है यह तो मैंने मन में सोचा। वह तो अच्छा था कि भाभी से सुबह शाम बात हो रही थी और उसने अभी डिस्चार्ज करवाने से मना किया था नहीं तो ये लोग तो किसी भी पेशेंट को कभी भी डिस्चार्ज कर देंगे। गुस्सा तो आ रहा था लेकिन मैंने दबा लिया और यही कहा कि 72 घंटे के पहले डिस्चार्ज नहीं करवाऊंगी जब रूम मिले आप शिफ्ट करिये।

शाम को फिर दवाई मंगवाई गई जिसे अंदर पहुंचाया इसके साथ ही ईको की रिपोर्ट भी ली जिसमें पता चला कि हार्ट का एक लोब 30%डैमेज हुआ है अटैक से। रिपोर्ट भी भाभी को पहुँचा दी।

वहीं एक परिवार बैठा था उनके घर के बुजुर्ग लगभग हफ्ते भर से एडमिट थे। हालाँकि डाक्टर ने अभी डिस्चार्ज के बारे में स्पष्ट नहीं बताया था लेकिन वे डिस्चार्ज के बाद घर की व्यवस्थाओं के बारे में सोच रहे थे और पूर्व तैयारी के लिए सबको फोन लगा रहे थे। उन्होंने दिन-रात देखभाल के लिए मेल नर्स के लिए किसी को फोन किया और उसकी तनख्वाह और दूसरे खर्च की बात करने लगे जो लाख रुपये महीने से भी अधिक हो रहे थे। मैंने अपनी एक सखी के लिए कुछ दिन पहले ही मेल नर्स की खोज के लिए एक समूह में लिखा था और मेरे पास कुछ नंबर थे। उनका फोन बंद होने के बाद मैंने उन्हें वे सभी नंबर दिये साथ ही मेडिकल इक्विपमेंट जैसे पलंग वाकर व्हीलचेयर किराये पर मिलने वाली संस्था के बारे में उन्हें बताया। इस बीच वह महिला मोबाइल पर अरदास लगा कर कहीं बाहर चली गई। उसके शोर में बात करना मुश्किल था। मैंने गार्ड से कहा भैया इसे कम कर दो और उसने आकर उसे बंद कर दिया।

थोड़ी ही देर में आपसी बातचीत से खुशनुमा माहौल बन गया था। आंटी का पोता आ गया था। आंटी को ब्लड का इंतजाम करने को कहा था। मैंने पूछा कि अगर आपके पास कोई डोनर हो तो फोन करके बुलवा लें नहीं तो मैं किसी ग्रुप पर डालकर डोनर बुलवा लेती हूँ ।उनके पोते को भी कहा कि आप बेसमेंट में ब्लड बैंक में जाकर पता कर लीजिये कि ब्लड की उपलब्धता कैसी है?

शाम को एक बार मैं घर गई लाइट जलाईं पड़ोसियों को अभी तक कुछ नहीं पता था उन्हें घर का ख्याल रखने का कहा। रूम मिलने पर जरूरी कपड़े आदी रखे और बैग तैयार करके गाड़ी में रख दिया और वापस हास्पिटल आ गई ।

अंधेरा हो गया था मैं एक और बार सीएमओ के पास हो आई थी लेकिन कोई रूम खाली नहीं था। करीब नौ बजे मैंने पूछा कि कोई दवा तो नहीं मँगवाना है फिर मैं घर जा रही हूँ। वही गोलमाल जवाब मिला जरूरत होगी तो मँगवा लेंगे। मैंने कहा मैं घर जा रही हूँ।

गार्ड ने अंदर जाकर पता किया फिर मैं घर आ गई।

घर के कुछ जरूरी काम किये कपड़े बदले खाना खाया और दिन भर की थकान के साथ सुबह की बहस को दिमाग से निकालने के लिए मैंने टीवी चालू किया। लगभग सवा ग्यारह बज रहे थे कि अचानक मोबाइल बजा। मैं चौंक गई इतनी रात में किसका फोन है?

हास्पिटल से नर्स का फोन था कि मैम एक रूम अभी खाली हुआ है और सर को वहाँ शिफ्ट करना है।

इतनी रात में!! चौंक गई मैं ।यह कौन सा समय होता है रूम खाली करने का और पेशेंट को शिफ्ट करने का? आप कल सुबह शिफ्ट कर देना अभी तो मैं घर आ गई हूँ और उन्हें अकेले तो रूम में भेज नहीं सकते।

मैम कल तक रूम रहेगा या नहीं क्या पता। अगर आपको रूम चाहिए तो अभी शिफ्ट करना होगा। सर कह रहे हैं कि शिफ्ट कर दें वे अकेले रह जायेंगे आप सुबह आ जाना।

अरे ऐसे कैसे आप एक हार्ट पेशेंट को रूम में अकेले शिफ्ट कर देंगी? अभी आप रुकिये मैं पंद्रह मिनट में पहुंच रही हूँ और तब तक आप सर को अकेले नहीं छोड़ेंगी।

मैं जल्दी से तैयार हुई सामान गाड़ी में ही था दरवाजा लगाया गाड़ी स्टार्ट की और सूनी अंधेरी सड़क पर चल पड़ी। मैं तो मात्र पंद्रह मिनट दूरी पर थी लेकिन जो लोग दूर या दूसरे शहर में रहते हैं उनके लिये ऐसी स्थिति कितनी विकट होगी। ज्यों-ज्यों घटनाएँ घट रही थीं बाम्बे हास्पिटल के बड़े नाम के छोटे पन के दर्शन होते जा रहे थे।

आईसीयू में डिस्चार्ज की प्रक्रिया चल रही थी मैंने और पंद्रह मिनट इंतजार किया। अधिकांश लोग सो चुके थे। दो लोग उनकी नींद की परवाह किये बिना जोर जोर से बातें कर रहे थे। इच्छा तो हुई कि टोक दूँ लेकिन चुप ही रही।

पंद्रह बीस मिनट बाद हसबैंड बाहर आये हम बारहवीं मंजिल पर प्रायवेट रूम में पहुंचे। वहाँ फिर बीपी शुगर टेस्ट हुआ और सभी प्रक्रिया पूरी होते सोते सोते साढ़े बारह बज गये।

कविता वर्मा

#बायपास #minor_attack #bypass 

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