अपने आसपास की बातें करती कहानियाँ
गिरजा कुलश्रेष्ठ जी को उनके ब्लॉग के माध्यम से कई साल पहले से जानती हूँ लेकिन उनसे पहली मुलाकात इसी महीने फरवरी में इंदौर महिला साहित्य समागम में हुई। आपने आपका कहानी संग्रह कर्जा वसूली बहुत प्यार से भेंट किया और उसे तुरंत पढ़ना भी शुरू कर दिया लेकिन बीच-बीच में व्यवधान आते गये और वह टलता गया। तेरह कहानियों का यह संग्रह सन 2018 में बोधि प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। गिरिजा की लेखनी में एक तरह का ठांठीपन है। अपने कैरियर और मध्यम वर्गीय जीवन से रोजमर्रा की बहुत छोटी छोटी घटनाओं को तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हुए आपने कहानियों में ढाला है और अपने पाठकों को हर कहानी से जोड़ लिया है। शिक्षण से जुड़ी गिरिजा जी सरकारी गलियारों की उठापटक से भी वाकिफ हैं और उसमें सामान्य आदमी को परेशान करने के तौर तरीकों से भी। ये ऐसी दुनिया है जहाँ आप गलत को देखते समझते भी गलत नहीं कह पाते और इसे कहानी में ढाल कर दुनिया को दिखाना सबसे बेहतर तरीका है जो गिरिजा जी ने अपनाया है।
कहानियों की बात करूँ तो संग्रह की पहली कहानी अपने अपने कारावास एक ऐसी लड़की की कहानी है जो म्यूजिक सीखना चाहती है। शादी के पहले उसके शौक को कोई तवज्जो नहीं दी जाती और शादी के बाद घर गृहस्थी के जंजाल में भी उसमें सीखने की ललक तो रहती है लेकिन क्या वह सीख पाती है यह उत्सुकता पाठकों के मन में अंत तक बनी रहती है। यह कहानी एक इच्छा के जीवित रहने की कहानी है।
साहब के यहाँ तो सरकारी कार्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के इर्द-गिर्द घूमती यह कहानी उनके मौज मजे को दिखाते हुए एक मोड़ लेती है और अंत में जिसे मौज समझा जा रहा था उसकी हकीकत कुछ और ही निकलती है। कहानी में पात्रों के संवाद बुंदेलखंडी बोली में होने से कहानी का प्रभाव बढ जाता है।
शपथ-पत्र कहानी भी सरकारी कार्यालयों की कार्य प्रणाली को उजागर करती है।
कर्जा वसूली शीर्षक कथा गांव देहातों में साहूकारों के शोषण से इतर एक साहूकार की कहानी है। ऐसी कहानियाँ सिक्के का दूसरा पहलू उजागर करती हैं जो बरसों से अंधकार में गुम था।
उसके लायक कहानी एक सामान्य शक्ल सूरत की लड़की की कहानी है जो पढ़ना चाहती है लेकिन हमारे समाज में गुणों के बजाय रूप को किसी के सम्मान का मापक समझा जाता है। एक आम मानसिक धारणा पर प्रहार करती यह कहानी भी अच्छी बन पड़ी है हालांकि अंत के पहले कुछ कुछ अंदाजा हो जाता है कि कहानी किस ओर मुडेगी।
व्यर्थ ही एक छोटी कहानी है जो परिवारों में लेन देन की परंपराओं की मानसिक यंत्रणा को दर्शाती हैं।
पियक्कड ब्लण्डर मिस्टेक नामुराद पहली रचना कहानियाँ अपने आसपास से उठाई गई हैं। ये कहानियां समाज सरकारी विभागों के चलन की कहानियाँ हैं जो अपने प्रवाह से बांधे रखती हैं।
बोधि प्रकाशन से आये इस संग्रह की प्रिंटिंग और प्रूफ रीडिंग बेहतर है कवर पेज आकर्षक है। गिरिजा जी को इस संग्रह के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ।
कर्जा वसूली
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
बोधि प्रकाशन
मूल्य 175 /-
गिरजा कुलश्रेष्ठ जी को उनके ब्लॉग के माध्यम से कई साल पहले से जानती हूँ लेकिन उनसे पहली मुलाकात इसी महीने फरवरी में इंदौर महिला साहित्य समागम में हुई। आपने आपका कहानी संग्रह कर्जा वसूली बहुत प्यार से भेंट किया और उसे तुरंत पढ़ना भी शुरू कर दिया लेकिन बीच-बीच में व्यवधान आते गये और वह टलता गया। तेरह कहानियों का यह संग्रह सन 2018 में बोधि प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। गिरिजा की लेखनी में एक तरह का ठांठीपन है। अपने कैरियर और मध्यम वर्गीय जीवन से रोजमर्रा की बहुत छोटी छोटी घटनाओं को तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हुए आपने कहानियों में ढाला है और अपने पाठकों को हर कहानी से जोड़ लिया है। शिक्षण से जुड़ी गिरिजा जी सरकारी गलियारों की उठापटक से भी वाकिफ हैं और उसमें सामान्य आदमी को परेशान करने के तौर तरीकों से भी। ये ऐसी दुनिया है जहाँ आप गलत को देखते समझते भी गलत नहीं कह पाते और इसे कहानी में ढाल कर दुनिया को दिखाना सबसे बेहतर तरीका है जो गिरिजा जी ने अपनाया है।
कहानियों की बात करूँ तो संग्रह की पहली कहानी अपने अपने कारावास एक ऐसी लड़की की कहानी है जो म्यूजिक सीखना चाहती है। शादी के पहले उसके शौक को कोई तवज्जो नहीं दी जाती और शादी के बाद घर गृहस्थी के जंजाल में भी उसमें सीखने की ललक तो रहती है लेकिन क्या वह सीख पाती है यह उत्सुकता पाठकों के मन में अंत तक बनी रहती है। यह कहानी एक इच्छा के जीवित रहने की कहानी है।
साहब के यहाँ तो सरकारी कार्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के इर्द-गिर्द घूमती यह कहानी उनके मौज मजे को दिखाते हुए एक मोड़ लेती है और अंत में जिसे मौज समझा जा रहा था उसकी हकीकत कुछ और ही निकलती है। कहानी में पात्रों के संवाद बुंदेलखंडी बोली में होने से कहानी का प्रभाव बढ जाता है।
शपथ-पत्र कहानी भी सरकारी कार्यालयों की कार्य प्रणाली को उजागर करती है।
कर्जा वसूली शीर्षक कथा गांव देहातों में साहूकारों के शोषण से इतर एक साहूकार की कहानी है। ऐसी कहानियाँ सिक्के का दूसरा पहलू उजागर करती हैं जो बरसों से अंधकार में गुम था।
उसके लायक कहानी एक सामान्य शक्ल सूरत की लड़की की कहानी है जो पढ़ना चाहती है लेकिन हमारे समाज में गुणों के बजाय रूप को किसी के सम्मान का मापक समझा जाता है। एक आम मानसिक धारणा पर प्रहार करती यह कहानी भी अच्छी बन पड़ी है हालांकि अंत के पहले कुछ कुछ अंदाजा हो जाता है कि कहानी किस ओर मुडेगी।
व्यर्थ ही एक छोटी कहानी है जो परिवारों में लेन देन की परंपराओं की मानसिक यंत्रणा को दर्शाती हैं।
पियक्कड ब्लण्डर मिस्टेक नामुराद पहली रचना कहानियाँ अपने आसपास से उठाई गई हैं। ये कहानियां समाज सरकारी विभागों के चलन की कहानियाँ हैं जो अपने प्रवाह से बांधे रखती हैं।
बोधि प्रकाशन से आये इस संग्रह की प्रिंटिंग और प्रूफ रीडिंग बेहतर है कवर पेज आकर्षक है। गिरिजा जी को इस संग्रह के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ।
कर्जा वसूली
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
बोधि प्रकाशन
मूल्य 175 /-
कविता जी आपकी समीक्षा ने गिरिजा जी के कहनी संग्रह को पढ़ने की उत्सुकता को बढ़ा दिया है ।
ReplyDeleteसुनील 'दाना' जी बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत अच्छी समीक्षा.
ReplyDeleteडॉ जेन्नी शबनम जी हार्दिक आभार
Deleteअच्छी समीक्षा प्रस्तुत की । पठनीय संग्रह है ।
ReplyDeleteरेखा दी आपने ब्लॉग को फिर जीवंत कर दिया। हार्दिक आभार आपका
Deleteपढ़ने के बाद समीक्षात्मक टिप्पणी
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteसुन्दर समीक्षा
ReplyDeleteआदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' ०६ मई २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_6.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
बहुत अच्छी समीक्षा ।
ReplyDeleteKafi acha vardan aur samiksha ki h apne
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