मधु से मंदिर में मिल कर मधुसुदन को कई पुरानी बातें याद आ गयीं .कैसे उसकी मधु से मुलाकात हुई कब वो प्यार में बदली और फिर समय ने कैसी करवट की .उस रिश्ते का क्या हुआ ?मधु से मिलकर उसे सारी बात बताने के बाद भी वह शांत थी ...उसके बाद वह फिर नहीं मिली मुझसे .आज मंदिर में मुलाकात हुई मुलाकातें बढ़ती गयीं और एक आशा ने फिर सर उठाया क्या हम फिर साथ नहीं हो सकते. इस बीच कुछ अप्रत्याशित घट गया मधु का क्या जवाब होगा पढ़िए समापन किश्त में )
रिटायरमेंट का दिन भी आ गया ,माला का फ़ोन आया आप कितने बजे फ्री होंगे?
ऑफिस के बाद एक छोटा सा कार्यक्रम है यही कोई सात बजे .
ठीक है कह कर उसने फ़ोन रख दिया.
विदाई चाहे कैसी भी हो भावपूर्ण ही होती है. मेरा भी गला रुंध गया जब मैंने विदाई भाषण दिया . करीब सात बजे जब बाहर आया देखा माला और आरती खड़ी है .उन्होंने मुझे बधाई दी और गाड़ी माला के घर की और घुमा दी.
मेरे लिए डिनर का इंतजाम किया था .मधु भी वहीँ थी .सब कुछ सामान्य था मधु शांत थी पर खामोश नहीं. उसने अपने को संभाल लिया था. मेरा प्रश्न मेरी आँखों में आ कर ठहर जाता पर पूछने का समय नहीं था .
खाने के बाद सबने शाहपुर का पता लिया और हमेशा संपर्क में रहने का वादा लिया .मेरे लिए एक छोटा सा गिफ्ट भी लाया गया .मेरी नानुकुर को माला की ठिठोली ने उड़ा दिया .
ये इसलिए है की आपको वहां हमारी याद दिला सके . हम अपने को भुलाये जाना पसंद नहीं करते .
मधु ने कहा की वह मुझे अपनी गाड़ी से घर छोड़ देगी .गाड़ी से उतरते हुए मैंने कहा -मधु एक एक कॉफी हो जाये.
कॉफी पीते हुए मधु ने बताया उस दिन मम्मी ने तुम्हारी बात सुन ली थी वह खुश थी और चाहती थी में तुम्हारी बात तुरंत मान लूं. उनकी हमेशा से एक ही चिंता रही थी उनके बाद मेरा क्या होगा ?मैंने बात ३-४ दिन यूं ही टाल दी फिर कहा सोच कर बताउंगी तो वह अचानक गुस्सा हो पड़ीं .
सारी जिंदगी सोचने में बिता दी और सोचना अभी बाकी है ?उसी गुस्से में उन्हें अस्थमा का अटेक आया और उसी गुस्से में वो मुझे छोड़ कर चलीं गयीं .
ओह्ह मेरे कारण..
नहीं तुम्हारे कारण नहीं. तुम किसी को जिंदगी दे नहीं सकते तो ले कैसे सकते हो. बस उनका समय पूरा हो गया था.
थोड़ी देर ख़ामोशी छाई रही फिर मैंने पूछा -मधु तुमने क्या सोचा?
मधुसुदन में भी तुमसे यही बात करना चाहती थी देखो मुझे गलत मत समझना .शाहपुर से जब में यहाँ आयी थी तो बुरी तरह टूटी हुई थी .किसी तरह मैंने अपने को संभाला और नौकरी में व्यस्त किया .लेकिन ८-१० साल बाद फिर मुझे अवसाद ने घेर लिया .उस समय आरती पुष्प और माला से मेरी दोस्ती हो चुकी थी .उन लोगो ने एक परिवार से भी ज्यादा मुझे संभाला .फिर तो हम एक दूसरे के लिए सब कुछ हो गए. हमने हमेशा साथ रहने की और हमेशा सुख दुःख बांटने की कसम खाई है. तुमने देखा ही है मम्मी के लिए उन लोगो ने अपनों से बढ़ कर किया है .
मधुसुदन परिवार सिर्फ पति पत्नी ,बच्चे ,भाई बहिन ही नहीं होते .परिवार मतलब प्यार एक दूसरे का संबल आज हम चारों अलग अलग रहते हुए भी एक परिवार से बढ़ कर हैं .पर तुम ही सोचो जब मुझे परिवार की जरूरत थी मेरी सहेलियों ने मेरा साथ दिया और आज जब मेरी जरूरत कम हो गयी में उनका साथ छोड़ दूं क्योंकि मुझे मेरा पुराना प्यार बुला रहा है. मेरा मन नहीं मानता.
में मधु की बातों पर विचार करता रहा गलत क्या है एक दिन मैंने अपने परिवार के लिए एक निर्णय लिया था आज मधु अपने परिवार के लिए एक निर्णय ले रही है.
अच्छा एक बात पूछूं ?
तुम्हारी सहेलियां हमारे बारे में जानती हैं ?
मधु हंस दी हाँ तुमसे मिलने के पहले से जानती हैं . हमारी जिंदगी एक दूसरे के लिए खुली किताब की तरह है.
और इस बात के बारे में?
मधु गंभीर हो गयी. नहीं इस बारे में सिर्फ में तुम और मम्मी जानती थीं .अगर उन्हें पता भी चला तो वो मेरे पीछे पड़ जाएँगी. पर में उन्हें नहीं छोड़ सकती.
मधु में तुम्हारे फैसले से सहमत हूँ फिर भी में तुम्हारा इंतजार करना चाहता हूँ जीवन के किसी भी पड़ाव पर अगर ये इंतजार ख़त्म होगा तो मुझे ख़ुशी होगी .
मधुसुदन, मधु के स्वर में उलझन थी. तुम परेशान मत होवो .तुम्हारे साथ यहाँ बिताया गया समय मेरे जीवन का अनमोल समय रहा है .में खुश हूँ की तुम अकेली नहीं हो बस इन यादों के साथ में तुम्हारा इंतजार करूंगा .तुम न भी आयीं तो कोई शिकायत नहीं करूंगा .बस इस इंतजार का हक मुझसे न छीनो.
ट्रेन ने सीटी दे दी ,प्लेटफार्म पर खड़ी मधु धीरे धीरे आँखों से ओझल हो गयी में नहीं जानता ये इंतजार कभी ख़त्म होगा या नहीं लेकिन फिर भी में इस भ्रम के साथ रहना चाहता था.में अपनी सीट पर आकर बैठ गया .गाड़ी ने अपनी गति पकड़ ली. समाप्त.
(ब्लॉगर मित्रों ने इस कहानी के लिए मुझे बहुत प्रोत्साहन दिया में इसके लिए आभारी हूँ. यदि आपके सुझाव भी मिले तो आगे की कहानियों में में और अच्छा लिख पाउंगी. अगर आपकी कोई जिज्ञासा है इस कहानी के सम्बन्ध में या किसी घटना क्रम के संबंद में तो कृपया मुझे बताये जिससे में और बेहतर कर सकों और यथा संभव समाधन कर सकूं. आप मुझे मेल भी कर सकते है kvtverma27 @gmail .com पर .)
रिटायरमेंट का दिन भी आ गया ,माला का फ़ोन आया आप कितने बजे फ्री होंगे?
ऑफिस के बाद एक छोटा सा कार्यक्रम है यही कोई सात बजे .
ठीक है कह कर उसने फ़ोन रख दिया.
विदाई चाहे कैसी भी हो भावपूर्ण ही होती है. मेरा भी गला रुंध गया जब मैंने विदाई भाषण दिया . करीब सात बजे जब बाहर आया देखा माला और आरती खड़ी है .उन्होंने मुझे बधाई दी और गाड़ी माला के घर की और घुमा दी.
मेरे लिए डिनर का इंतजाम किया था .मधु भी वहीँ थी .सब कुछ सामान्य था मधु शांत थी पर खामोश नहीं. उसने अपने को संभाल लिया था. मेरा प्रश्न मेरी आँखों में आ कर ठहर जाता पर पूछने का समय नहीं था .
खाने के बाद सबने शाहपुर का पता लिया और हमेशा संपर्क में रहने का वादा लिया .मेरे लिए एक छोटा सा गिफ्ट भी लाया गया .मेरी नानुकुर को माला की ठिठोली ने उड़ा दिया .
ये इसलिए है की आपको वहां हमारी याद दिला सके . हम अपने को भुलाये जाना पसंद नहीं करते .
मधु ने कहा की वह मुझे अपनी गाड़ी से घर छोड़ देगी .गाड़ी से उतरते हुए मैंने कहा -मधु एक एक कॉफी हो जाये.
कॉफी पीते हुए मधु ने बताया उस दिन मम्मी ने तुम्हारी बात सुन ली थी वह खुश थी और चाहती थी में तुम्हारी बात तुरंत मान लूं. उनकी हमेशा से एक ही चिंता रही थी उनके बाद मेरा क्या होगा ?मैंने बात ३-४ दिन यूं ही टाल दी फिर कहा सोच कर बताउंगी तो वह अचानक गुस्सा हो पड़ीं .
सारी जिंदगी सोचने में बिता दी और सोचना अभी बाकी है ?उसी गुस्से में उन्हें अस्थमा का अटेक आया और उसी गुस्से में वो मुझे छोड़ कर चलीं गयीं .
ओह्ह मेरे कारण..
नहीं तुम्हारे कारण नहीं. तुम किसी को जिंदगी दे नहीं सकते तो ले कैसे सकते हो. बस उनका समय पूरा हो गया था.
थोड़ी देर ख़ामोशी छाई रही फिर मैंने पूछा -मधु तुमने क्या सोचा?
मधुसुदन में भी तुमसे यही बात करना चाहती थी देखो मुझे गलत मत समझना .शाहपुर से जब में यहाँ आयी थी तो बुरी तरह टूटी हुई थी .किसी तरह मैंने अपने को संभाला और नौकरी में व्यस्त किया .लेकिन ८-१० साल बाद फिर मुझे अवसाद ने घेर लिया .उस समय आरती पुष्प और माला से मेरी दोस्ती हो चुकी थी .उन लोगो ने एक परिवार से भी ज्यादा मुझे संभाला .फिर तो हम एक दूसरे के लिए सब कुछ हो गए. हमने हमेशा साथ रहने की और हमेशा सुख दुःख बांटने की कसम खाई है. तुमने देखा ही है मम्मी के लिए उन लोगो ने अपनों से बढ़ कर किया है .
मधुसुदन परिवार सिर्फ पति पत्नी ,बच्चे ,भाई बहिन ही नहीं होते .परिवार मतलब प्यार एक दूसरे का संबल आज हम चारों अलग अलग रहते हुए भी एक परिवार से बढ़ कर हैं .पर तुम ही सोचो जब मुझे परिवार की जरूरत थी मेरी सहेलियों ने मेरा साथ दिया और आज जब मेरी जरूरत कम हो गयी में उनका साथ छोड़ दूं क्योंकि मुझे मेरा पुराना प्यार बुला रहा है. मेरा मन नहीं मानता.
में मधु की बातों पर विचार करता रहा गलत क्या है एक दिन मैंने अपने परिवार के लिए एक निर्णय लिया था आज मधु अपने परिवार के लिए एक निर्णय ले रही है.
अच्छा एक बात पूछूं ?
तुम्हारी सहेलियां हमारे बारे में जानती हैं ?
मधु हंस दी हाँ तुमसे मिलने के पहले से जानती हैं . हमारी जिंदगी एक दूसरे के लिए खुली किताब की तरह है.
और इस बात के बारे में?
मधु गंभीर हो गयी. नहीं इस बारे में सिर्फ में तुम और मम्मी जानती थीं .अगर उन्हें पता भी चला तो वो मेरे पीछे पड़ जाएँगी. पर में उन्हें नहीं छोड़ सकती.
मधु में तुम्हारे फैसले से सहमत हूँ फिर भी में तुम्हारा इंतजार करना चाहता हूँ जीवन के किसी भी पड़ाव पर अगर ये इंतजार ख़त्म होगा तो मुझे ख़ुशी होगी .
मधुसुदन, मधु के स्वर में उलझन थी. तुम परेशान मत होवो .तुम्हारे साथ यहाँ बिताया गया समय मेरे जीवन का अनमोल समय रहा है .में खुश हूँ की तुम अकेली नहीं हो बस इन यादों के साथ में तुम्हारा इंतजार करूंगा .तुम न भी आयीं तो कोई शिकायत नहीं करूंगा .बस इस इंतजार का हक मुझसे न छीनो.
ट्रेन ने सीटी दे दी ,प्लेटफार्म पर खड़ी मधु धीरे धीरे आँखों से ओझल हो गयी में नहीं जानता ये इंतजार कभी ख़त्म होगा या नहीं लेकिन फिर भी में इस भ्रम के साथ रहना चाहता था.में अपनी सीट पर आकर बैठ गया .गाड़ी ने अपनी गति पकड़ ली. समाप्त.
(ब्लॉगर मित्रों ने इस कहानी के लिए मुझे बहुत प्रोत्साहन दिया में इसके लिए आभारी हूँ. यदि आपके सुझाव भी मिले तो आगे की कहानियों में में और अच्छा लिख पाउंगी. अगर आपकी कोई जिज्ञासा है इस कहानी के सम्बन्ध में या किसी घटना क्रम के संबंद में तो कृपया मुझे बताये जिससे में और बेहतर कर सकों और यथा संभव समाधन कर सकूं. आप मुझे मेल भी कर सकते है kvtverma27 @gmail .com पर .)
bhram bhi mann ko sukun hi deta hai ... intzaar aur sahi
ReplyDeleteहां जी कहानी को आपने भले ही समाप्त कर दिया, लेकिन इंतजार बरकरार है। कहानी का विषय बढिया लगा, प्रस्तुति में तो हमेशा ही बेहतर की गुंजाइश बनी रहती है। लेकिन आपने जिस लगन के साथ इसे निभाया है, काबिले तारीफ है। बधाई
ReplyDeleteकहानी का समापन ... अंत तक इसकी रोचकता कायम रखने के लिये आपका लेखन बेहद सधा हुआ एवं सशक्त रहा ... आभार के साथ शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteकाबिले तारीफ सशक्त लेखन के साथ शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteमधुसुदन को वहीँ रोक लिया होता...बेचारा अकेले शाहपुर में क्या करेगा...लेकिन वो अभी भी रुकने से डर रहा होगा कि...लोग क्या कहेंगे...बच्चे क्या सोचेंगे...ऐसे लोगों कि जिंदगी ऐसे ही कटनी चाहिए...कहानी से अच्छा न्याय किया...बधाई...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली दफा आया हूँ.कहानी की अंतिम किस्त में आपके लेखन से परिचय कर पाया हूँ. बहुत अच्छा लगा.आपके ब्लॉग को फोलो कर लिया है.अब आना जाना होता रहेगा.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप आइयेगा,आपका हार्दिक स्वागत है.
बहुत उम्दा कहानी रही.....संपूर्ण प्रवाह...बधाई.
ReplyDeleteएक बार फिर मधुसूदन अपना निर्णय स्वयं न लेने की कमजोरी दिखा गया..दूसरों के निर्णयों को बिना विचार किये मान लेना कहाँ तक समझदारी है? मधु का, केवल इस कारण कि वह अपनी सहेलियों का साथ नहीं छोड़ सकती, मधुसूदन के प्रस्ताव को ठुकराना कहाँ तक उचित है? क्या प्यार और मित्रता के सम्बन्ध एक साथ नहीं निभाए जा सकते?
ReplyDeleteकहानी केवल एक त्याग के विचार को लेकर आगे बढती है, और इसमें यह पूरी तरह सफल होती है. मधुसूदन का चरित्र एक spineless व्यक्ति के रूप में उभरता है. कहानी का प्रवाह सुन्दर है और और यह पाठक को आखिर तक बांधे रखती है. एक सुन्दर रोचक कहानी के लिये बधाई.
ओह! चलिए कहानी ख़त्म तो हुई, कहानी का प्रवाह सुन्दर है और और यह पाठक को आखिर तक बांधे रखती है. बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteआज एक अच्छी रचना पढने को मिली । धन्यवाद’
interesting story.I enjoyed it. kaash main apna comment hindi me likh pati.
ReplyDeleteआठ कड़ियों के बाद की कहानी एक साथ पढ़ी .... ब्लॉग के २ वर्ष पूरे होने पर बधाई ...
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी लगी ... मधुसूदन पूरी कहानी में एक बेचारा ही बना रहा .... अंत अच्छा लगा ..
कहानी में रोचकता हमेशा बनी रही.शीर्षक सटीक चुना था आपने.
ReplyDeletehai re madhusudan!...
ReplyDeleterochakta ka jabab nahi...
अंत तक रोचकता बरकरार रही ... बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
ReplyDeleteकहानी में इंतज़ार बनी रही ! इसका गम है ! बेहद सुन्दर !
ReplyDeleteआपके पास टेलेंट है , क्या ऐसे ही कुछ श्री गीता के विषय में भी लिख सकती हैं. वह मेरा प्रिय विषय है , और उसमे भी बहुत संभावनाएं हैं .
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी थी.
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखते हैं,शैली रोचक है.पाठक को बांधे रखती है.
और कहानियों का इंतज़ार रहेगा.
आपकी कलम को ढेरों शुभ कामनाएं.
बहुत अच्छी कहानी बेहद सुन्दर
ReplyDeleteएक अच्छी कहानी की प्रस्तुति के लिए शुभकामना.
ReplyDeleteआप से अनुरोध है की आप "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" परिवार की सदस्य बनकर हमारा मार्गदर्शन करे. अपना ई-मेल भेंजे. editor.bhadohinews@gmail.com
धारा प्रवाह बना रहा,सतत ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी
ReplyDeleteबधाई
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ.कहानी की अंतिम किस्त में आपके लेखन से परिचय पाई अच्छा लगा आपकी रचना को पढ़कर ....बहुत अच्छी कहानी
ReplyDeleteबधाई
क्या कहूं। बस इतना ही कि आपने तो बस १२ किश्तों में समां ही बांध दिया। इस बात की खुशी है कि अब कुछ नया पढऩे को मिलेगा। आपने जिस तरह इसे प्रस्तुत किया वह वाकई सराहनीय रहा। आपको बधाई।
ReplyDeleteअब कुछ नए का इंतजार करूंगा।
मैं इस ब्लॉग को फालो कर रहा हूं। अगर आप चाहे तो ऐसा ही कर सकते हैं।
कविता जी,..रोचक शैली में लिखी अच्छी कहानी,जो अन्त तक पाठकों को बंधे रहे में सफल रही सुंदर लेखन ,..बधाई स्वीकारे..
ReplyDeleteआपके ब्लॉग में पहली बार आना मेरा सफल रहा,..
मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
रचना पसंद आये तो अपने विचार जरूर दे और समर्थक बने,मुझे खुशी होगी.....
acchhee lagi aapki kahaani bahut hi ...
ReplyDeleteachchi rachna...badhai
ReplyDeletewelcome to my blog :)
bhram mein hi sahi, insaan kuch to der khush hokar jee leta hai...
ReplyDeletesundar dhang se kahani ka samapan kiya hai aapne....