Friday, April 29, 2011

इंतजार

मधु -मंदिर में अचानक एक महिला को देखते ही मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला .वह भी मेरी ओर देखते हुए बोली मधुसुदन आप ?यहाँ कैसे कब आये ?
कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को देखते ही रहे .तभी हमें हमारी स्थिति का आभास हुआ . अचकचा कर चारों ओर देखते हुए मैंने कहा हमें किनारे हो जाना चाहिए .
में दर्शन करके आती हूँ . तुमने दर्शन कर लिए ?
हाँ हाँ तुम जाओ में बाहर सीढ़ियों पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ .
ठीक है कहते हुए मधु मंदिर के गर्भ गृह की और चल दी
आज बसंतपंचमी पर शहर से दूर बसी इस कॉलोनी के सरस्वती मंदिर में बहुत गहमागहमी थी .दूर दूर से लोग दर्शन के लिए आ रहे थे. इतने बड़े शहर में बमुश्किल एक दो सरस्वती मंदिर थे . आम दिनों में यह मंदिर सामान्यतः सूना ही रहता है गाहे बगाहे बाहर की कॉलोनी या शहर से कोई यहाँ आता है.
में सीढ़ियों पर बैठ कर मंदिर की सजावट देखने लगा . पूरा मंदिर केसरिया पीले फूलों की माला से सजा था. माँ सरस्वती का शृंगार भी पीले सफ़ेद फूलों से किया गया था. हाथ में वीणा और पुस्तक लिए माँ अपनी सौम्य मुस्कान के साथ मानों मुझे ही देख रही थी. लाउडस्पीकर अपने पूरे जोश के साथ माँ की स्तुति गान के साथ उन्हें प्रसन्न करने में लगा था. प्रांगंद में तीन चार कर्ता धर्ता दोने में बूंदी और फल का प्रसाद वितरण कर रहे थे.
मधु दर्शन कर प्रसाद लेने आ गयी थी .उसने मेरी और इशारा करके उन लोगो को कुछ कहा और उन्होंने मधु के हाथ में एक दोना और पकड़ा दिया .उसने दोनों हांथों से दोना लेते हुए माथे से लगाया और मेरी और बढ़ चली. उसके माथे पर कुमकुम का बड़ा सा टीका उसकी शोभा बढ़ा रहा था.
प्रसाद का एक दोना मेरे हांथों में पकड़ाते हुए उसने कहा आपने तो प्रसाद लिया नहीं होगा? में मुस्कुरा दिया. तुम तो मेरी आदत जानती हो. पर तुम्हे अभी तक याद है? कहना तो चाहता था मुझे अच्छा लगा पर में चुप ही रहा . मधु भी मुस्कुरा दी.
मंदिर के बाहर ही छोटा सा बगीचा था जिसमे दो -तीन बेंचे लगी थीं मैंने बगीचे की और देखते हुए कहा-थोड़ी देर रुक सकती हो ?अकेले आयी हो क्या ? अभी तक किसी और के साथ होने का संकेत मुझे नहीं मिला था.
हाँ अकेले आयी हूँ. कहाँ बैठे गार्डेन में? मेरी नज़रों का पीछा करते हुए उसने पूछा .
हाँ वही बैठते है .हम दोनों खाली पड़ी बेंच की ओर बढ़ चले.
बेंच पर बैठ कर हम दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा.कितना बदल गयी है मधु,पर बदल कर भी वैसी ही है मेरी आदते अभी तक याद है उसे. में कभी भी मंदिर से प्रसाद नहीं लेता था उसे याद है .अधिकतर बाल सफ़ेद हो गए है बीच बीच में एक्का दुक्का काले बाल उन्हें सुंदर शेड दे रहे है. सामने के थोड़े आगे निकले दांत अभी भी हँसते हुए लगते है .उम्र के साथ शरीर भर गया है पर मोटापा नहीं कहा जा सकता.
सलवार कुरता पैरों में जूतियाँ हलकी ठण्ड से बचने के लिए जेकेट .बत्तीस सालों के अंतराल में भी ज्यादा कुछ नहीं बदला है.
मुझे अपनी ओर देखते हुए पाकर मधु ने हंसते हुए पूछा ज्यादा तो नहीं बदली हूँ न में? हाँ बाल जरूर सफ़ेद हो गए है.
में झेंप सा गया . बाल तो मेरे भी सफ़ेद हो गए है. अब इस उम्र में काले बाल अच्छे भी तो नहीं लगते . और हम दोनों ठहाका मार कर हंस दिए. क्रमश

6 comments:

  1. ऐसी जगह क्रमश: आ गया जब उत्कंठा उत्कर्ष पर थी ..अच्छी कहानी ..आगे इंतज़ार है इंतज़ार का

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  2. कविता जी,
    अच्छी रचना लगी,या कहूं निज अनुभव अच्छा लगा.
    क्रमशः ने विचार प्रवाह तोड़ दिया.अगला भाग जल्दी लिखिएगा.

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  3. अच्छी लगी कहानी.क्रमशः ने जिज्ञासा बढ़ा दी.

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  4. हर बार लघु कथा होती है शायद आज पहली बार .. क्रमश: आया होगा।
    अगले भाग का इंतजार है।

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  5. sagarji...aapne bahut protsahit kiya hai likhane ke liye isiliye ab rachanayen badi hoti ja rahi hai aakar me...fir salon ka safar...bas thoda sa intajar...

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  6. अच्छी लगी कहानी.क्रमशः ने जिज्ञासा बढ़ा दी.

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नर्मदे हर

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