कल दौटेर्स डे है ,वैसे तो हमारे यहाँ ये दिन साल में दो बार ९-९ दिन के लिए मनाया जाता है ,पर वैश्वीकरण ने हमें अपने रीति- रिवाजों के अलावा भी कई दिन त्यौहार मानाने का मौका दिया है। अब में इस फेर में नहीं पड़ना चाहती की ये सही है या गलत। बस एक ही बात है दिमाग में की ये मेरी उन नन्ही परियों के लिए है जिनसे मेरे घर और जीवन में रौनक है।
२० साल पहले जब मेरे जीवन में किसी नन्हे सदस्य के आगमन की आहट हुई तो मन झूम उठा। उस समय तो सिर्फ ममता थी, फिर जब मन ने ये सोचना शुरू किया की क्या होना चाहिए जो निश्चित रूप से किसी के हाथ में न था पर मुझे ही क्या सबको अपनी उमीदों और दुआओं पर बहुत भरोसा रहता है सो मैंने भी सोचना शुरू किया ,कभी लड़का कभी लड़की। इसी बीच दिवाली आ गयी .दीपक लगाते हुए अनायास ही मन ने कहा इस घर में बिटिया आयी तो अगले साल सारे घी के दीपक लगाउंगी ,और सच में होंठो पर सुंदर सी हंसी गालों में गढ्ढे बड़ी बड़ी आँखों से निहारती बेटी जब गोद में आयी तो लगा पूरा घर दीपों से रोशन हो गया।
हॉस्पिटल में जब नर्स बेटी को नहलाने के लिए लेने आयी तो मन काँप गया कही इन्होने बदल दी तो ?ये तो इतनी छोटी है इसे पहचानूंगी कैसे?? बहुत ध्यान से देखा,उसके नन्हे हाथों को थामे फिर उसकी पतली पतली लम्बी लम्बी उंगलिया देखी,लगा यही सही पहचान है कितनी सुंदर उंगलियाँ है इससे सुंदर तो किसी की हो ही नहीं सकती और बिटिया नर्स को पकड़ा दी। जब वो नर्सरी से वापस आयी तो सबसे पहले उसकी उँगलियाँ देखी और इत्मिनान किया हाँ ये मेरी ही बिटिया है क्योंकि इससे सुंदर उँगलियाँ तो किसी की हो ही नहीं सकती।
सारा दिन उसके साथ कहाँ बीत जाता था पता ही नहीं चलता। हमारे जीवन की धुरी हो गयी वो। उसके हिसाब से उठाना बैठना ,खाना पीना ,कही आना जाना... थोड़ी बड़ी हुई जब मोटरसाइकल पर आगे बैठती थी ,उसके लिए कैप लाना ,छोटे चश्मे लेना.बीच-बीच में चप्पल -जूते चेक करना पता नहीं कितनी ही एक-एक चप्पल गिर जाती थी । मेरा तो सारा दिन "मेरे घर आयी एक नन्ही परी " गाते हुए निकल जाता था । उसके बोलना सीखते ही घर की रौनक को चार चाँद लग गए ,सारा दिन बातें और गाने ,मुझे याद है हाथ में कलम ले कर घर के फर्श पर चित्रकारी करते हुए जब उसने कहा मम्मी देखो "अ" तो मन विभोर हो गया मेरी बेटी पढना लिखना सीख रही है ।उसकी तोतली बोली में बोले गयी शब्द आज भी हमारे घर की डिक्शनरी के स्थाई शब्द है । दाल छालूम (दाल चावल ),किचड़ी (कीचड )और एक गीत "ओ हसीना गुण-गुण गाणी "ये आज भी हमारे यहाँ इसी तरह गया जाता है । ४ साल की थी जब सिंठेसैजर बजाना सीखने लगी ,म्यूजिक टीचर अपने घर पर एक कार्यक्रम करवाते थे वहां उसे बजाते हुए सुना तो में अपने आंसू न रोक पाई। दिवाली पर रंगोली बनाना,होली पर पापा को रंग लगा कर किलकारी भरना यादें यादें कितनी यादें सब तो लिख ही नहीं पाउंगी ...
फिर जब दूसरे नन्हे मेहमान के आगमन की आहट हुई तो मन आशंकित हुआ अगर इसके मन को कभी ठेस पहुंची तो ?उसे प्यार से बताया की कोई छोटी बहन या भाई आने वाला है तो उसने झट से कहा मुझे तो बहन चाहिए.और भगवन ने उसकी सुन ली। एक दिन बहुत दुखी थी और गुस्से में बोली मम्मी अब अपने घर किसी को मत बुलाना और न अपन किसी के घर जायेंगे । मैंने पूछा क्यों ? तो बोली सब मेरी छोटी बहिन को मुझसे मांगते है हम ले जाये - हम ले जाएँ मुझे अच्छा नहीं लगता में इसे किसी को नहीं दूँगी। आंसू छलक आये मेरे ,मन के किसी कोने में एक दुश्चिंता थी ,दो बेटियां हमारे बाद इनका कौन ?वो एक पल में दूर हो गयी और हजारों हज़ार धन्यवाद दिया भगवन को की दूसरी भी बेटी दी जब ये दोनों है एक दूसरे के साथ तो किसी और की क्या जरूरत??
यादे यादे यादें न जाने कितनी ,बस जिसने भी इन यादों को याद करने के लिए ये दिन इजाद किया उसको धन्यवाद,aur dhanyavad arun royji ko jinhone is din ke liye kuchh likhane ka agrah kiya.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनजान हमसफर
इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...
-
#घूंट_घूंट_उतरते_दृश्य एक तो अनजाना रास्ता वह भी घाट सड़क कहीं चिकनी कहीं न सिर्फ उबड़ खाबड़ बल्कि किनारे से टूटी। किनारा भी पहाड़ तरफ का त...
-
भास्कर मधुरिमा पेज़ २ पर मेरी कहानी 'शॉपिंग '… http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/19022014/mpcg/1/
-
बात तो बचपन की ही है पर बचपन की उस दीवानगी की भी जिस की याद आते ही मुस्कान आ जाती है। ये तो याद नहीं उस ज़माने में फिल्मों का शौक कैसे और ...
अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति .......
ReplyDeleteपढ़िए और मुस्कुराइए :-
क्या आप भी थर्मस इस्तेमाल करते है ?
Happy daughter's day !
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण लिखा है आपने कविता जी.. बेटियों से घर गहर बनता है.. हम भाई भाई ही थे सो हमारा घर घर जैसा नहीं लगता था.. माँ के मन को केवल बेटियाँ ही समझती हैं ..सो मेरी माँ तो अकेली ही रह गई.. अब बहुओं से थोड़ी भरपाई की है.. लेकिन बेटियों का विकल्प नहीं.. बेटियां दिशा दे रही हैं दुनिया को... एक अच्छे और भावपूर्ण आलेख के सूत्रधार बनने में ख़ुशी मिल रही है.. बधाई और धन्यवाद!
ReplyDeleteबेटियां ही समझती हैं माँ बाप को
ये ध्रुव सत्य है।
बेहतरीन लेखन के बधाई
तेरे जैसा प्यार कहाँ????
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
ांच्छी लगी आपकी पोस्ट। डाटर्ज़ डे की बधाई।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/9/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
ललित शर्मा जा से हो कर यहां तक पहूंचा. गिनती के होंगे, ऐसा लिखने वाले और शायद उससे भी कम सोचने वाले, बधाई.
ReplyDeleteसुंदर और भावपूर्ण आलेख, बहुत शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बेटी घर की रौनक है जो एक साथ दो घर को खुश कर सकती है .बिटिया दिवस की बधाई
ReplyDeleteमन को छू गयीं आपकी बातें...
ReplyDeleteकाश कि ईश्वर सबका मन आपस ही बनायें...फिर कभी सुनने को न मिलेगा कि एक नन्ही कली के लिए गर्भ ही कब्रगाह बनी...
बहुत ही भावुक रचना...बेटी ही माता पिता को सही रूप में समझ पाती हैं और सच्चा निस्वार्थ प्यार देती हैं.....बहुत सुन्दर...आभार...
ReplyDeleteइसे पहचानूंगी कैसे?? बहुत ध्यान से देखा,उसके नन्हे हाथों को थामे फिर उसकी पतली पतली लम्बी लम्बी उंगलिया देखी,लगा यही सही पहचान है कितनी सुंदर उंगलियाँ है इससे सुंदर तो किसी की हो ही नहीं सकती और बिटिया नर्स को पकड़ा दी। जब वो नर्सरी से वापस आयी तो सबसे पहले उसकी उँगलियाँ देखी और इत्मिनान किया हाँ ये मेरी ही बिटिया है क्योंकि इससे सुंदर उँगलियाँ तो किसी की हो ही नहीं सकती।
ReplyDeletesunder bhav hai
भावुक कर दिया अपने कविताजी।
ReplyDeleteक्या कहूं... सही शब्द नहीं मिल रहे। बस इतना कह सकता हूँ कि बड़े नसीबों वाले होते हैं जिनके घर में बेटी होती है और आपके यहाँ तो बेटियाँ है, यानि आप तो बहुत ज्यादा खुशनसीब हैं।
और हम (निर्मला और मैं) शायद इस मामले में अभागे हैं।
bahut pyara laga aapka post, ek dum dil se nikalti hui........:)
ReplyDeleteab barabar aaunga, follow jo karne laga hoon:)
bahoot khoob
ReplyDeletesagarji betiya ho ya bete aankhon ke tare sabhi hote hai,aur jinke yaha bachche hai chahe bete ya betiya vo khushkismat hai aur bhagvan ne unhe ek badi jimmedari ke liye chuna hai...h abetiya ghar me jyada der rahti hai isliye ghar bhara bhara lagta hai....aap bhi utane hi khushnaseeb hai...
ReplyDeletemukeshji aap yaha jab bhi aayen nirash hokar na jaye iski poori koshish karoongi..dhanyavad...
ReplyDeletepoorviyaji,akhileshji,kailashji aur ranjanaji aapka bahut bahut dhanyavad is housala afjai ka.
ReplyDelete"ये तो इतनी छोटी है इसे पहचानूंगी कैसे?? बहुत ध्यान से देखा,उसके नन्हे हाथों को थामे फिर उसकी पतली पतली लम्बी लम्बी उंगलिया देखी,लगा यही सही पहचान है कितनी सुंदर उंगलियाँ है इससे सुंदर तो किसी की हो ही नहीं सकती और बिटिया नर्स को पकड़ा दी। जब वो नर्सरी से वापस आयी तो सबसे पहले उसकी उँगलियाँ देखी और इत्मिनान किया हाँ ये मेरी ही बिटिया है क्योंकि इससे सुंदर उँगलियाँ तो किसी की हो ही नहीं सकती।"
ReplyDeleteकविता जी,
आपकी वर्णनात्मक शैली एक जादूई सच है जो अनायास ही अपनी ओर आकर्षित के लेता है.अपनी चाहत के बहाने बिटिया के होने का अर्थ आपने मन में बसा दिया. बेहतरीन पद्यात्मक रचना के लिए धन्यवाद.
dhanyavad rajivji....sach kahu ye sab ehsas bilkul sachche hai shayad isliye man ko chhoote hai...vo beti ko pahali bar god me lene ka dar use apane se alag karne ka dar....poori kitab likhi ja sakti hai in ehsaso par.....aapne pasand kiya bahut shukriya...
ReplyDelete