रोज़ की तरह सुबह घर से स्कूल जाते हुए रस्ते में बनने वाले एक घर को देखती। वहां देखभाल कराने वाले चौकीदार के परिवार में दो छोटे -छोटे बच्चे भी हैं जो सड़क पर खेलते रहते हैं .जब भी कोई गाड़ी निकलती उनकी माँ उन बच्चों को किनारे कर लेती .वहां से गुजरते हुए चाहे कितनी भी देर क्यूँ न हो रही हो गाड़ी की गति धीमी कर लेती.पता है बच्चे सड़क पर ही खेल रहे होंगे.हमेशा उनकी माँ को ही उनके साथ देखा.आज सुबह दोनों बच्चे सड़क पर बैठे थे उनकी माँ वहां नही थी पर उनके पिता पास ही खड़े थे। जैसे ही गाड़ी का हार्न बजा पिता ने गाड़ी की और देखा और तुंरत ही उनकी नज़र बच्चों की तरफ़ घूम गई ।बच्चों को किनारेबैठा देख कर वह फ़िर बीडी पिने में मशगूल हो गया। लापरवाह से खड़े पिता की ये फिक्र मन को छू गई।
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जिंदगी इक सफर है सुहाना
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bas yahi to fark hota hai maa ki mamta aur pita mein.
ReplyDeletethik kaha vandanaji aapane.aur ye fikra bhi man ko chhuti hai.
ReplyDeleteआज सड़को पर लिखे ये सैकड़ो नारे ना देख,
ReplyDeleteघर अंधेरा देख तू आकाश के तारे ना देख !