Thursday, September 26, 2024

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। गैस खिड़कियाँ बंद करो इतना सारा सामान गाड़ी में रखो लेकिन क्या करें करना ही पड़ता है। उसके बाद हाईवे पर जो अदूरदर्शिता के चलते खोदकर रखा है पुल बनाने के लिए वह रास्ता गुस्सा दिलाता है। एक बार महू पार कर लिया और मिलिट्री एरिया में आ गये फिर तो बस आनंद का सफर होता है और इसमें लगभग एक घंटा लग जाता है। अब ध्यान जाता है आगे पीछे चलने वाली गाड़ियों पर सवारियों पर आसपास के खेत खलिहान कच्चे पक्के घरों पर जंगल और घुमावदार रास्तों पर।

आज ऐसे ही रास्ते पर एक बाइक पर नजर गई। तीन सवारियाँ दो लड़के उनके पीछे एक दुबली पतली छोटी सी लड़की उसकी गोद में एक बच्चा दो तीन बैग। दो तीन बार वह बाइक क्रास हुई और हर बार उस पर नजर गई।

अधिकतर मैं अकेले गाड़ी चलाना पसंद करती हूँ मैं और मेरी तन्हाई मेरा रेडियो मेरे गाने। गाड़ी में या तो ऐसा साथ हो जिससे बातचीत का आनंद हो या चुपचाप चलें या फिर अकेले हों। मन में आया इस लड़की को गाड़ी में बैठा लूँ तब तक वह गाड़ी आगे बढ़ गई।

जाम घाट पर पार्वती मंदिर के आगे रास्ते पर बादल उतरे थे। इतना घना व्हाइट आउट कि दस मीटर आगे भी न दिखे। अरे आज फिर! यही कहा मन ने। मैंने गाड़ी धीमी की मोबाइल में वीडियो आॅन किया और एक हाथ में मोबाइल थामे वीडियो बनाते धीरे-धीरे जाम गेट की तरफ बढी। रेयर व्यू में देखा वह बाइक मेरे पीछे हो गई। सुरक्षा के हिसाब से यह अच्छा था। घने बादल के बीच रास्ता किस तरफ मुड़ रहा है यह भी नहीं दिख रहा था। लग रहा था आगे बारिश होगी। 

जाम गेट पर कुछ दिखने लगा और वह गाड़ी अब बगल से आगे निकलने को हुई तभी मैंने कार का शीशा नीचे करके उसे हाथ दिया।

कहाँ जा रहे हो? इसे गाड़ी में बैठा दो।

हम भी खरगोन जा रहे हैं। गुड़िया भी है साथ में।

हाँ तभी तो कहा तुम तीन होते तो थोड़ी कहती। उन्होंने तुरंत उस लड़की और गुड़िया को गाड़ी में बिठाया एक बैग गाड़ी में रखा।

मंडलेश्वर में मिलना कहकर मैंने गाड़ी आगे बढा दी।

आज देवानंद का जन्मदिन है विविधभारती पर प्यारे गाने बजे और मैं साथ न गाऊँ कैसे संभव है। थोड़ी देर मुझे संकोच हुआ फिर सोचा गाड़ी मेरी है यार मैं चाहे जो करूँ 😜

खैर थोड़ा गाना थोड़ी बातचीत वह लड़की पास के गाँव की है शादी को तीन साल हुए ग्यारह महीने की बेटी है। खरगोन कालेज से एम काॅम कर रही है। कालेज जाती है सुबह दस बजे तक घर के काम हो जाते हैं और बच्ची को सब संभाल लेते हैं।

मंडलेश्वर में बाइक पीछे आती नहीं दिखी तो हम आगे बढ़ गये। अब वह थोड़ी बैचेन हुई। बार बार साइड मिरर में देखती।

मैंने कहा चिंता मत करो फोन नंबर याद है तो फोन कर दो। उसे अपना फोन दिया क्योंकि उसका फोन रिचार्ज नहीं था और बैग में था। फोन की घंटी गई किसी ने नहीं उठाया।

कोई बात नहीं गाड़ी चला रहे हैं आवाज नहीं आ रही होगी। जब देखेंगे फोन लगा लेंगे। गुड़िया उठ गई थी थोड़ा कुनमुनाई अचरज से मुझे देखा। धीरे से मेरा हाथ छुआ। सोकर उठी थी भूखी थी वह फीड करवाने लगी। मुझे याद आया कई बार बच्चों को बाइक से लेकर जाते थे कभी ऐसा भी होता कि गाड़ी रोकने के लिए सुरक्षित स्थान नहीं मिलता तब बाइक पर चलते हुए फीड करवाया है। 

कसरावद पार करके हम आगे बढ़ गये तब फोन आया। उन्हें बता दिया खरगोन में कहाँ आना है। कुछ खास समझ नहीं आया बोले हम वहाँ आकर फोन कर लेंगे।

खरगोन आ गया हम घर पहुंच गये। आज सुबह काॅफी नहीं पी थी मुझे काॅफी पीना था। वर्माजी डिब्बा भरकर रबड़ी लाये थे बोले उसे दे दूँ।

हाँ बिलकुल वह रास्ते में फीड करवा रही थी भूख लगी होगी।

उसने पहले गुड़िया को खिलाई थोड़ी खुद खाई तब तक फोन आ गया। और वे दोनों चले गये।

Sunday, September 15, 2024

शिवा बाबा

 

शिवा बाबा
बहुत दिनों से विचार चल रहा था शिवा बाबा जाना है लेकिन दो घंटे का रास्ता गर्मी उमस के चलते मैं ही जाना टालती रही। शुक्रवार फिर मन बना लेकिन शनिवार लोक अदालत है इसलिए नहीं जा पाये फिर तय हुआ रविवार को चलेंगे।
आज सुबह निकलना तो जल्दी था लेकिन कुछ रविवार का आलस कुछ काम निपटा लेने का लालच दस साढ़े दस बज ही गये। अच्छा यह था कि आज धूप नहीं थी। खरगोन से बिस्टान होते धूलकोट से तितरानिया पाडल्या होते बुरहानपुर जिले में प्रवेश किया। सड़क कुछ डामर की कुछ कांक्रीट की कुछ गढ्ढेदार। पूरा आदिवासी इलाका छोटे छोटे फलिए दूर दूर खेत में एक एक झोपड़े आसपास खेत और उसके बाद सागौन के जंगल। बारिश न बची धरती को हरियाली की चादर से ढंक दिया था। रास्ते पर इक्का दुक्का वाहन की आवाजाही। पूरी तरह एक अलग दुनिया। छोटे छोटे गाँव में दैनिक जरूरत के सामान की एक दो दुकानें इसके अलावा न कोई बाजार न बड़े भारी मकान।
बस चले जा रहे थे शिवा बाबा।
दो तीन जगह रास्ता पूछा लोगों ने बड़े उत्साह से बताया आखिर वे उनके भी पूज्य हैं। गाड़ी मंदिर के सामने रुकी तब भी अंदाजा नहीं था इतना विशाल भव्य लेकिन सरल सहज मंदिर होगा। सामने बड़ा सा प्रांगण जिसके दोनों तरफ पेड़ों की कतारें। उसे पार करके हम पहुँचे एक कुएं पर जो तिरपाल से ढँका था। पानी इतना कि दो हाथ रस्सी से निकल जाये और पानी ऐसा कि एसिड से धुला कांच भी शरमा जाये। स्टील की बाल्टी में भरे पानी की पारदर्शिता देखकर चौंक गये हम। कुएं में झांका तो आश्चर्य से मुँह खुला रह गया। इतना साफ शुद्ध जल।
वहाँ हाथ पैर धोकर पीछे बने एक हाॅल में बैठे। हाँ मंदिर बारह बजे से एक बजे तक बंद रहता है। करीब दस मिनट बाद मंदिर खुला और हम दर्शन के लिए पहुँचे। साफ सुथरे मंदिर में शिवा बाबा की छोटी सी पिंडी मंदिर में सिर्फ पुरुषों का प्रवेश। हमने बाहर से दर्शन किये और सिंदूर चढ़ाया। बगल में देवी जी का मंदिर था जिसमें दुर्गा काली और गौरी की प्रतिमा थीं। दोनों ही मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बने थे। गोपुरम मूर्ति मंदिर की पेंटिंग का काम दक्षिण भारतीय कारीगरों ने किया है।
इसके बाद हम पहुँचे मंदिर के विशेष आकर्षण केंद्र पर।
जी हाँ इस मंदिर में एक पत्थर है थोड़ा गोल चौकोर सा सामान्य सा दिखने वाला पत्थर लगभग चालीस पचास किलो का। इस पत्थर को उठाने के बाद आदमी सीधा नहीं हो पाता और आधा एक फीट उठाकर रख देता है। यही पत्थर ग्यारह लोग एक तर्जनी से उठा लेते हैं। जी हाँ ग्यारह लोग चाहिये और पत्थर उठाने के पहले शिवा बाबा का आव्हान करना चाहिए। अगर किसी के भी मन में यह अहंकार आया कि मैं उठा लूँगा फिर यह पत्थर नहीं उठता। अब ग्यारह लोग कहाँ से आएँ? मंदिर में दर्शन करने आये लोगों को आवाज दी कुछ मंदिर के सेवादार थे सबने एक साथ जयकारा लगाया तर्जनी ऊंगली आगे की ओर देखते ही देखते चालीस पचास किलो के पत्थर को कमर की ऊँचाई तक उठाकर नीचे रख दिया।
बाद में बातचीत में पता चला कि पहले इसे सात लोग उठा लेते थे। शायद अब धरती पर पाप का बोझ ज्यादा हो गया है इसलिए ग्यारह लोग लगते हैं।
शिवरात्रि पर यहाँ बड़ा मेला लगता है हालांकि उस समय पत्थर को एक जंगले में रखा जाता है बाहर नहीं निकालते।प्रांगण में एक बड़ी तुला रखी थी। मन्नत पूरी होने के बाद लोग तुलादान करते हैं।
दर्शन के बाद चाय नाश्ते का आग्रह किया गया। साथ ही जानकारी मिली कि रामदेवरा का जागरण था रात में और आज अभी उनका भण्डारा चल रहा है। साहब जमीन पर बैठकर प्रसाद ग्रहण करेंगे या नहीं पूछने में संकोच था। मैंने तुरंत समाधान किया कि चाय नाश्ता न बनाया जाये हम रामदेवरा जी का प्रसाद ग्रहण करेंगे। सुनकर ही सेवादार लोग इतने प्रसन्न हो गये कि तुरंत आयोजन स्थल पर इंतजाम के निर्देश दिए गये। हम उनके पीछे वहाँ पहुँचे।
एक चौकी पर रामदेवरा जी विराजित थे दर्शन करके अंदर के साफ सुथरे कमरे में बिछात बिछाई गई और भोजन परोसा। सब्जी पूरी सूजी का हलवा दाल चावल। सादा लेकिन स्वादिष्ट भोजन। हलवा खाने के पहले लगा कि खूब मीठा होगा लेकिन बिलकुल नापतौल से डली शक्कर न मीठा न फीका। पता चला कि आज पूरा गाँव इस आयोजन में शामिल है। आसपास रहने वाले भी आज गाँव आ गये हैं। भोजन भी सभी ने मिलकर बनाया है।
भोजन प्रसाद पाकर हम बैठे और ग्रामीणों ने अपनी बिजली की समस्या साझा की। अच्छा यह था कि उसका समाधान भी था। उसके लिए जरूरी निर्देश देकर हम वहाँ से विदा हुए।
#शिवाबाबा
#बुरहानपुर

Tuesday, May 21, 2024

पोस्ट आफिस

 

पोस्टआफिस 
आज पोस्ट आफिस जाने का काम पडा। घर के पास वाला पोस्ट आफिस बंद था एक मन हुआ कि वापस घर चला जाए लेकिन फिर सोचा थोड़ा दूर ही सही गाड़ी से जाना है चले ही जाती हूँ। गूगल पर रास्ता देखते वहाँ पहुँची नई बनी बिल्डिंग में साफ सुथरा आफिस उसमें व्हीलचेयर जाने के लिए बना रैंप। पार्किंग शेड हालांकि वह पर्याप्त न था फिर भी कुछ तो था जितनी जगह थी उस हिसाब से।
अंदर जाकर देखा तो एक काउंटर पर लंबी लाइन नजर आई आगे लगभग छह सात आदमी खड़े थे उनके पीछे दो बच्चे खड़े थे जिनकी उम्र लगभग दस ग्यारह साल होगी और वे आपस में धींगामस्ती करते अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। खैर मैं उनके पीछे जाकर खड़ी हो गई। अन्य काउंटर पर पोस्ट आफिस अकाउंट के काम हो रहे थे एक काउंटर जिस पर दिव्यांग लिखा था बंद था क्योंकि उस समय वहाँ कोई नहीं था।
मेरे आगे खड़े बच्चे के हाथ में दो तीन लिफाफे थे और दो सौ के नोट के साथ कुछ चिल्लर भी। वे आपस में धीरे धीरे बात करते कभी गले में हाथ डालकर लडियाते कभी लड़ते रूठते मनाते।
लाइन धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी तभी एक व्यक्ति एक डब्बा लेकर वहाँ आया लाइन को देखा और सामने काउंटर पर लाइन के बगल में जाकर खड़ा हो गया और डब्बा काउंटर पर रख दिया।
पूरी तरह सफेद बाल मूँछें बड़े से पेट पर उठंगी शर्ट पैंट और चप्पल पहने उसने एक दो बार आगे पीछे देखा और फिर अपना मोबाइल निकाल कर उसका कैमरा आॅन किया। काउंटर पर पैसों का लेनदेन चल रहा था उसने एक फोटो क्लिक की और फिर इधर-उधर देखा तो मुझे अपनी तरफ देखता पाया और जरा सकपका सा गया। फिर उसने कैमरा बंद करके किसी को फोन लगाया थोड़ी बहुत बातचीत करके फोन जेब के हवाले किया।
लाइन बहुत धीरे चल रही थी वह लगातार काउंटर के काम होते देख रहा था। तब तक मेरे पीछे और दो तीन लोग आकर खड़े हो गये।
तभी पीछे खड़े एक लड़के ने कहा एक्सक्यूज मी मैम मेरे पास कैश नहीं है आप मुझे 50 रुपये दे देंगी मैं आपके नंबर पर आनलाइन पेमेंट कर दूँगा।
दस सेकेंड लगे समझने में फिर मैंने कहा कि आनलाइन पेमेंट काउंटर पर कर दीजिए।
यहाँ आनलाइन की सुविधा नहीं है।
मैंने एक नजर काउंटर पर डाली वहाँ कोई क्यू आर कोड नहीं था। चूँकि मैं खुद आनलाइन ट्रांजेक्शन कम करती हूँ इसलिए उसकी बात गले नहीं उतरी और मैंने कहा ऐसे कैसे नहीं होगा आनलाइन ट्रांजेक्शन? यह सरकारी विभाग है केंद्र शासन का है आनलाइन सुविधा तो होना ही चाहिए। आप कहिये वे उपलब्ध करवाएंगे। नहीं तो आप काउंटर पर बैठे व्यक्ति के नंबर पर ट्रांजेक्शन करिये वह अपनी जेब से पैसे भर देगा।
कह तो दिया बाद में सोचती रही अगर कैश न होने से उसका काम नहीं हुआ तो क्या उसे पचास रुपये दे दूँ? फिर लगा क्या पता सच में पैसे नहीं हैं या फोन नंबर स्कैन करने के लिए झांसा है। क्या पता सच में कोई जरूरत मंद हो। तब तक उसने किसी को फोन लगाया और कहा कि आनलाइन पैसे दे सकते हैं क्या। वहाँ से जो भी कहा गया पर उसने अच्छा ठीक है कहते फोन बंद किया तो लगा हो जायेगा।


अब ध्यान फिर आगे गया।
जैसे ही सभी आदमी वहाँ से हटे और बच्चों का नंबर आया वह तुरंत डब्बा उठाकर आगे बढा और मैंने उसे टोक दिया। "भाईसाहब ये बच्चे और मैं आपके पहले से खड़े हैं आप लाइन में आइये।"
"मैं सीनियर सिटीजन हूँ"
यहाँ कहाँ लिखा है सीनियर सिटीजन के लिए अलग लाइन है? मैं भी लाइन में खड़ी हूँ महिलाओं की कोई अलग लाइन नहीं बनाई तो आप भी लाइन में आइये। ये बच्चों का नंबर है।
"सीनियर सिटीजन की कोई कद्र नहीं है मैं बता दूँ "वह कुछ अनाप-शनाप पर आया और मैंने ऊँगली उठाई
" जरा तमीज से "और वह चुप।
काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने उससे कहा आप लाइन में आइये। बच्चों के जाने के बाद उसने कोई कोशिश नहीं की कि आगे बढ़े मैंने अपना काम किया और बाहर निकल गई।
गाड़ी में बैठकर खुद से बड़बड़ाई जब तक आदमी लाइन में थे तब तक सीनियर सिटीजन होना याद नहीं आया। हष्ट-पुष्ट इंसान दो छोटे बच्चों की बारी मारकर सीनियर सिटीजन होने का दंभ भर रहे हैं। वैसे निकलते हुए देख लिया था कि मेरे बाद उनका ही नंबर था।

Sunday, March 17, 2024

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जीवन की प्रार्थना की याद ही नहीं। यह एक बहाना ही है कि फिर फिर उन देवस्थानों में जाएं और कृतज्ञता व्यक्त करें। इसी क्रम में आज नर्मदा स्नान का मुहूर्त निकला।

खरगोन आते-जाते हमेशा नर्मदा पार करते हैं। एक नदी जिसके दर्शन मात्र से पुण्य मिलता है। इस बार नर्मदा यात्रा के समय न स्वास्थ्य ठीक था और शादी की तैयारियों के कारण जाना संभव ही नहीं था।

शादियों के तीन महीने बाद तक न जाने कितनी बार नर्मदा पुल से गुजरे हर बार वादा किया माँ जल्दी ही आएंगे लेकिन जब तक वह न बुलाएं कैसे जाना होगा।

आज बुलावा आया तो शाम को निकल पड़े। स्नान करने के साथ मन में उछाह था दीपदान करने का। नर्मदा के विशाल विस्तार पर टिमटिमाते दीप मंथर गति से आगे बढ़ते हैं जिन्हें देखकर ही मन को सुख मिलता है। बस आजकल जिस तरह प्लास्टिक के दोने में रखकर दीप प्रवाहित करते हैं वह मुझे नहीं करना था। घर से घी में डूबी फूलबत्ती तो रख लीं लेकिन उन्हें जलाने के लिए आटे के दीपक नहीं बना पाए इसलिये जामुन के कुछ पत्ते तोड़कर रख लिये।

स्नान के लिए दो आप्शन थे एक महेश्वर का अथाह जल और दूसरा मंडलेश्वर का धीरे-धीरे ढलता किनारा। पिछली बार महेश्वर में स्नान करते जब पैर नीचे की सीढ़ी पर रखना चाहा वह अथाह तल की ओर चला गया और मैं बस डूबने लगी। मुझे संभालने में पतिदेव के भी पैर उखड़ गये और वे घबरा गये इसलिये आज जब लगभग अंधेरा हो चला था महेश्वर में स्नान करने की हिम्मत नहीं हुई। इसलिये रास्ता पूछते हम पहुँचे मंडन मुनि की नगरी मंडलेश्वर के घाट पर।

पत्थरों से बना घाट धीरे-धीरे पानी में उतरता है और जितनी गहराई तक जाना हो वहीं रुकने के लिए जमीन दे देता है। कमर से थोड़े ऊपर पानी में डुबकियाँ लगा लगाकर नहाए। पैरों के नीचे एक सुदृढ़ तल बड़ी आश्वस्ति था। नहाकर नदी को अर्ध्य दिया और बाहर निकले। कपड़े बदलने के लिए यूँ तो चेंजिंग रूम हैं लेकिन चूंकि अंधेरा था और तट बिलकुल खाली तो वहीं थोड़ी आड़ करके कपड़े बदले।

पूजा करके जामुन के पत्ते पर एक एक फूलबत्ती रखकर जलाई और नदी में प्रवाहित कर दी। हल्की-फुल्की बत्ती को पत्ते ने आसानी से वहन किया और नदी के मंधर बहाव के साथ दूर तक बहते चले गये। चूँकि रात नदी के तल पर फैल चुकी थी नावें बंद हो चुकी थीं और कोई स्नानार्थी नहीं थे इसलिए दीपों की इस यात्रा में कोई अवरोध नहीं था।

बस संतोष इस बात का था कि कुछ दिनों में पत्ते सड गल जाएंगे और बत्ती जलकर राख हो जाएगी और नदी में कोई प्रदूषण नहीं होगा।

बस इस तसल्ली के साथ नर्मदा स्नान पूर्ण हुआ।

हर हर नर्मदे

Thursday, July 13, 2023

घूंट घूंट उतरते दृश्य

 #घूंट_घूंट_उतरते_दृश्य

एक तो अनजाना रास्ता वह भी घाट सड़क कहीं चिकनी कहीं न सिर्फ उबड़ खाबड़ बल्कि किनारे से टूटी। किनारा भी पहाड़ तरफ का तो ठीक लेकिन खाई तरफ का जहाँ से निकलने में रीढ़ की हड्डी में सिरहन दौड़ जाये। यही क्या कम था कि बीच-बीच में हवा के झोंकों के साथ आते बादल पूरी सड़क ही नहीं पेड़ पहाड़ सभी को ढंक लें। आपको पता ही न चले कि कितनी देर बाद कितनी दूर कितना तीखा मोड़ किस दिशा में आयेगा। हम बस चले जा रहे थे और तभी अचानक सड़क किनारे खड़ी वे दिखीं। गाड़ी की गति धीमी ही थी उन्हें देख और धीमी हो गई। बादलों के बीच बारिश हो न हो कोई फर्क कहाँ पड़ता है वे आपसे टकराते हैं और अपने संचय जल से कुछ नमी आपको दे देते हैं बिना मांगे बिना आपके चाहे।

इन बादलों के बीच वे खड़ी थीं हाथ में दोने लिये जामुन ले लो।

न जाने कितने बादल उनसे बिना जामुन लिये उन्हें अपनी नमी से तर करके चले गये थे। वे गीली तो नहीं थीं लेकिन नम थीं। बाल कपड़े हाथ और कुछ कुछ आँखें।

जामुन ले लो जामुन ले लो। कार का शीशा नीचे होते ही उनकी आवाज ही नहीं उनके हाथ भी अंदर चले आये। ताजा जामुन बारिश में गिरे धुले और कुछ पिलपिले। उनकी आँखों में उम्मीद की किरण कि जामुन उन्हीं से लिये जाएंगे।

अरे अरे आराम से कितने के दिये।

दस रुपये।

क्या नाम है तुम्हारा?

मैं अर्चना ये विमला ये वंदना।

स्कूल नहीं जातीं?

जाते हैं।

अब ध्यान गया अरे हाँ ये यूनीफॉर्म पहने हैं।

स्कूल के बाद जामुन बेचती हो यहाँ अकेले जंगल में डर नहीं लगता?

जवाब में बस एक मुस्कान ही मिली शायद लगता हो लेकिन दस रुपये कमा पाने के लिए डर पर काबू पाना जरूरी है।

एक दोना लेते ही दूसरी दोनों के चेहरे उदास हो गये।

बादल तेजी से रास्ते को घेर रहे थे इतने सारे जामुन खायेगा कौन का ख्याल था। तुमसे लौटते समय लेंगे। हाथ में दस दस के दो नोट कुलबुला तो रहे थे लेकिन कहीं उनके स्वाभिमान को धक्का न लगे इसलिये देने की हिम्मत न हुई।

गाड़ी तेजी से आगे बढ़ गई तभी ध्यान आया अरे हम तो सुबह लौटेंगे तब वे स्कूल में होंगी। तब तक गाड़ी एक तीखा मोड़ लेकर और ऊपर चढ़ गई और घने बादलों के बीच लेकिन उनकी आँखों में उतर आये बादल अभी भी उस एक दोने में गाड़ी में रखे हुए हैं।

#तोरणमाल

Friday, June 23, 2023

यादगार सफर

 पिछली बार की खरगोन यात्रा खतरों के खिलाड़ी वाली रही। शाम छह बजे निकली थी यह सोचकर कि डेढ़ घंटे में जाम घाट उतर जाऊँगी। उसके बाद अंधेरा हो जायेगा इसलिये हसबैंड से कहा था कि वे मंडलेश्वर के आगे चौली गाँव तक आ जाएं। लेकिन चार बजे खूब तेज बारिश हो गई। उसके बाद हसबैंड से बात नहीं हुई तो चाय बनाकर मैं थोड़ा अलसा गई। फिर अचानक धुन चढी कि नहीं बस अभी जाना है। तैयारी करके निकलते सवा छह बज गये ।

जाने की धुन में दाँए बाएँ सोचा नहीं। सोचा नहीं कि महान इंदौर के उटपटांग छोटे अंडरपास में जाम लगा होगा बस निकल गई। चार किलोमीटर बाद अंडरपास पर आधा घंटा लग गया। वहाँ से आगे बढ़ी तो रालामंडल फाटे पर फिर जाम था।

बादल घने थे सामने बिजली ऐसे चमक रही थी मानों आसमान से धरती तक रास्ता बनाकर उतर रही है। अंधेरा हो चुका था लेकिन गाड़ी पलटाकर वापस जाने की जगह नहीं थी। फिर खरगोन भी तो जाना था पतिदेव मंडलेश्वर पहुंच चुके थे।

खैर सोचा जो होगा देखा जाएगा खरगोन तो अभी जाना है।

बायपास से राऊ तरफ मुड़ी ही थी कि जोरदार बारिश शुरू हो गई इतनी तेज कि पचास मीटर दिखाई न दे। यही काफी न था महू में लाइट नहीं थी। टोल क्रास करते ही सड़क जिस तरह लहराती है उसके बलखाते डिवाइडर से गाड़ी टकराते बची।

 तभी पतिदेव का फोन आया। बेचारा धक से हुआ मन उनके सहारे को मचल उठा और मैंने बड़ी उदारता से कहा कि एक काम करो जाम घाट के ऊपर आ जाओ क्योंकि बहुत रात हो गई है और यहाँ तेज पानी गिर रहा है। यह कहकर मानों अहसान ही किया था उन पर क्योंकि मैं तो रात में गाड़ी चलाने का एडवेंचर करना चाहती थी जो उन्हें टेंशन देता और मैंने उन्हें उससे बचा लिया।

खैर महू क्रास करते पानी बंद हो गया लेकिन शहर के बाहर घुप्प अंधेरा और नागिन सी लहराती बलखाती सड़क जो अंधेरे में पता ही नहीं चल रही थी कि किस तरफ मुड रही है। वहाँ आंधी-तूफान अभी-अभी गुजरा था इसलिये जाम घाट में रुकी हुई गाड़ियाँ सामने से आ रही थीं जिनकी तेज हेडलाइट मानों अंधा किये दे रही थी। 

जाम घाट के बारह किलोमीटर पहले घाट शुरू हो जाता है जहाँ सड़क किनारे से काफी ऊँची है और इस अबूझे अंधेरे में डर था कि कहीं गाड़ी सड़क से उतर कर गिर न जाये। इस इलाके में फोन को सिग्नल भी नहीं मिलते कि किसी को मदद के लिए बुला लें या कि बता सकें कि कहाँ हैं। अब एक बार फिर मोबाइल चैक किया। डर से थरथराती एक दो डंडी देख उन्हें बस थाम लिया और पतिदेव को फोन लगाया। बताया कि कुछ दिखाई सुझाई नहीं दे रहा है इसलिए जाम घाट से आगे आ जाओ। उन्होंने पूछा कहाँ बडगोंदा ग्रिड पर रुक जाना।

पता नहीं ये बिजली वालों को अंधेरे में भी ग्रिड डीपी डबल सर्किट कैसे दिख जाते हैं। मैं झुंझलाई अरे यार चलते रहो उस तरफ आने वाली मेरी अकेली गाड़ी है दिख जाएगी। जहाँ दिखे हाथ दे देना।

अब यह नहीं बताया कि एक गाड़ी बड़ी देर से मेरे पीछे पीछे चल रही है। पता नहीं वह भी अंधेरे अबूझ की मारी है या साइड मिरर में उसे अकेली महिला ड्राइवर दिख गई। खैर जो भी हो ऐसे रिस्क लेने की अभी कोई इच्छा नहीं थी। (वैसे अंधेरी बरसती रात में पति से मिलने जाना कोई रिस्क थोड़ी था। जरा सोहनी महिवाल को याद कर लीजिये।)

आजकल खूब सारी सस्पेंस थ्रिलर हाॅरर स्टोरी पढ रही हूँ इसलिए दो तीन बार ऐसा लगा जैसे पैसेंजर साइड की खिड़की के बाहर कोई साथ-साथ दौड़ रहा है। चौंक कर उधर देखा सिर झटका फिर सड़क ढूंढने लगी । चार साल से आना-जाना कर रही हूँ कितनी बार पढ़ा कि तेंदुए की एक्टिविटी है वह कभी नहीं दिखा तो भूत क्या दिखेगा? 

थोड़ी देर बाद एक गाड़ी ओवरटेक की जिसका नंबर एम पी 10 था। अरे ये तो खरगोन की गाड़ी है और मैं उसके पीछे चलती रही।

कहते हैं अंधेरे में दिमाग की क्रियाशीलता कम हो जाती है यह तब पता चला जब वह गाड़ी आगे रुकी और उसमें से एक हाथ निकला। अरे ये तो साहब की गाड़ी है ओह बढ़िया एक गहरी सांस आई जो इतनी देर से बस जरूरत भर चल रही थी। तुरंत गाड़ी रोकी अपना पर्स उठाया और जाकर उनकी गाड़ी में बैठ गई। उनके ड्राइवर ने मेरी गाड़ी ले ली और हम जाम घाट से उतरते मंडलेश्वर आ गये।

वैसे घाट उतरते एक अफसोस हुआ कि खुद को गाड़ी चलाना था अंधेरे में घाट उतरना एक अद्भुत अनुभव होता। खैर वह भी एक दिन करूँगी उस दिन के लिए काफी एडवेंचर हो चुका था।

 बारिश होकर बंद हो गई थी लाइट आ गई थी और ड्राइवर का गांव मंडलेश्वर के पास था। पतिदेव ने पूछा वहाँ से तुम ले लोगी गाड़ी या उसे खरगोन ले चलें फिर किसी के साथ वापस छुड़वा देंगे। तब तक रात के ग्यारह बज रहे थे। मैंने कहा अब वो जाएगा फिर वापस घर पहुंचेगा उसे आधी रात हो जायेगी रहने दो मैं ले लूंगी गाड़ी। यह नहीं कहा कि घाट पर गाड़ी न चला सकने का दुख रात में बाकी रास्ते गाड़ी चलाकर कुछ कम कर लूँ।

मंडलेश्वर टोल पर एक बार फिर गाड़ी अदला-बदली हुई और इस बार आगे पायलट कार थी जिसके टर्न सिग्नल ब्रेक लाइट देखकर सुरक्षित चलते हम छह घंटे में रात बारह बजे खरगोन पहुंचे।

हाँ तो लब्बोलुआब यह है कि इस बार जब खरगोन आना था मैंने कल शाम आने का विचार किया लेकिन हवा पानी और ट्रैफिक जाम की स्थिति देख विचार त्याग दिया। आज सुबह जल्दी जल्दी करते भी 6:55 पर इंदौर से निकली। चालीस मिनट में महू पहुंच कर पांच मिनट जाम घाट पर रुकी पानी पिया फोटो खींची और दो घंटे बीस मिनट में खरगोन पहुंच गई।

वह सफर भी यादगार था यह सफर भी यादगार रहा दोनों के अपने अपने कारण थे। 

Wednesday, June 14, 2023

पहली बार मीठी याद

 जीवन में बहुत कुछ या सभी कुछ पहली बार होता है और वह पहली बार एक याद छोड़ जाता है चाहे मीठी या खट्टी कड़वी।

कल ऐसा ही एक पहली-पहली बार हुआ।

भाई बहुत सालों बाद भारत आया है। मेल मुलाकातों का दौर चल रहा है। कल रात वह घर आया हम देर तक बातचीत करते रहे फिर खाना खाने बाहर गये। होटल के बाहर गाड़ी पार्क करके हम उतरे और डाइनिंग में पहुँचे तभी उसके मोबाइल पर पापाजी का फोन आया। उनसे बात करते उसने कहा जीजाजी को काॅल कर।

मैंने पर्स खोला मोबाइल निकालने के लिए लेकिन उसमें मोबाइल नहीं था। हडबडाना स्वाभाविक था मैंने दो बार बैग चैक किया कुर्ते की जेब चैक की मोबाइल कहीं नहीं था।

घर से निकलते समय पतिदेव का फोन आया था मैंने ताला लगाते हुए बताया था उन्हें कि हम बाहर जा रहे हैं और फोन साथ रखा था फिर फोन कहाँ गया?

भाई ने पूछा जीजाजी का नंबर याद है? उसने टेम्पररी एक नंबर लिया है भारत का उस फोन में नंबर सेव नहीं था।

संयोग से मुझे सिर्फ एक ही नंबर याद है पतिदेव का मैंने तुरंत उसे बताया।

वहाँ से क्या कहा गया नहीं पता लेकिन वह तुरंत उठ खड़ा हुआ ओके ओके हम जाते हैं।

उसके पीछे पीछे मैं भी उठ गई। उसने चलते हुए बताया कि जीजी तेरा फोन नीचे गिर गया है और किसी के पास है वह नीचे इंतजार कर रहे हैं।

तब तक उसने मेरे मोबाइल पर फोन लगा दिया। लिफ्ट से रूफ टाप से नीचे आते वह लगातार बात करता रहा कि बस हम आ रहे हैं दो मिनट रुकिए।

बाहर गाड़ी के पास दो युवक खड़े थे यही कोई 25=28 साल के। चूंकि बात करते करते ही हम वहाँ पहुँचे थे इसलिए पहचान का कोई संकट उपस्थित नहीं हुआ। भाई का नंबर सेव था।

उन्होंने फोन वापस किया और बताया कि वे यहीं खड़े थे आपने गाड़ी खड़ी की तब तक यहाँ कुछ नहीं था और अचानक हमें फोन दिखा। चूंकि उसमें लाॅक नहीं था और लास्ट काॅल पापा न्यू के नाम से सेव था इसलिए उस पर काॅल लगा दिया।

हमें लगा आप यहाँ नहीं हैं तो हम थाने में जमा करवाने जा रहे थे।

उन्हें खूब सारा धन्यवाद दिया और उनका नाम पूछा वह विपुल तिवारी था बनारस से। इंदौर में उसका अपना होटल है।

संयोग से भाई अभी बनारस यात्रा करके आया है और अभी भी बनारस के प्रभाव में है। मैं बनारस जाने के दो मौके अपने अनमनेपन में छोड़ चुकी हूँ और बनारस इस तरह भी मुझे इस बात का अहसास करवा रहा है।

जब से मोबाइल रखना शुरू किया यह पहली बार था कि फोन गुमा लेकिन एक मीठी याद बनाकर उसका वापस मिलना हमेशा याद रहेगा।

#Banaras

#yaad 

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...