Sunday, April 9, 2017

रौशनी के अँधेरे


"किंशुक पूरे घर को दिये और मोमबत्ती से सजाना" मयंक ने कहा तो किंशुक चिंहुक उठी। बहुत अच्छा आइडिया है मयंक एकदम अलग लगेगा। 
पूरा बंगला मोमबत्ती की झिलमिलाती रोशनी से जगमगा उठा और मयंक देर तक उनकी लौ को ताकता रहा। पहले तो किंशुक को लगा कि इस सजावट से अभिभूत हो कर मयंक उसमे खोया हुआ है। पर जब देर तक उसने मयंक को मोमबत्ती की लौ को ताकते देखा तो उसे अजीब सा लगा। 
"मयंक क्या हुआ है ऐसे क्या देख रहे हो ?" वह कई बार उसके आसपास से गुजरी उससे बातचीत करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला तो थक कर बैठ गई और खो गई। 
 मयंक के प्रमोशन की खबर सुनकर  किंशुक ख़ुशी से झूम उठी थी।  मयंक अब तो तुम्हे सरकारी बंगला मिलेगा ना ? 
हाँ बंगला गाड़ी ड्राइवर सभी मिलेगा। किंशुक की ख़ुशी से रोमांचित मयंक ने उसे बाँहों में लेते हुए कहा। 
"वाह अब हम अफसरी शान बान के साथ रहेंगे सरकारी गाड़ी ड्राइवर क्या ठाठ होंगे। रिश्तेदारों जान पहचान वालों में इज्जत कई गुना बढ़ जाएगी।" 
अचानक मयंक ने अपनी बाँहों का घेरा ढीला किया और फोन की तरफ बढ़ा। "हाँ अम्मा अब तुम्हार बिटवा बड़का अफसर हो गवा है। अब यहाँ से जाना पड़ेगा पर बड़े शहर में बड़ा बंगला मिलेगा तुम भी अब हमारे साथ शहर में रहना अपनी पोटली बाँध लो। " 
यह सुनते ही किंशुक का चेहरा उतर गया। "मयंक सुनो तो पहले हम लोग तो वहाँ सैटल हो जाएँ नया शहर नयी सोसायटी नए लोग कैसे होंगे उन्हें जान समझ लें फिर अम्मा बाबूजी को बुलवा लेंगे कुछ दिनों के लिए। " अंतिम चार अक्षर बोलते उसका स्वर धीमा हो गया और उसी तरह मयंक के चेहरे की ख़ुशी भी ढल गई। वह बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चला गया जिसे किंशुक ने अपनी बात की सहमति समझा। 
आज मयंक ने बंगला मोमबत्ती दिये से सजाने को कहा और कब से लौ को टकटकी लगाए देख रहा है। 
"मयंक कुछ तो बोलो क्या देख रहे हो ?" 
" देख रहा हूँ अम्मा कैसे जिंदगी भर तिल तिल जलती रही और आज मेरी जिंदगी रौशनी से भर कर खुद वहाँ गाँव के अँधेरे में अकेले पड़ी हैं जैसे इस लौ के नीचे अँधेरा है वैसे ही। और आँखें पोंछते मयंक झटके से उठ कर कमरे से बाहर चला गया। 
किंशुक सन्न रह गई और  रौशनी के बावजूद दिल के एक कोने को अँधेरे से भर देने के पश्चाताप से भर कर लौ को ताकती रह गई।  
कविता वर्मा 

Wednesday, March 1, 2017

वीरान महफ़िल

वीरान महफ़िल 
बहुत रौनक थी उस पार्टी में बहत्तर तरह के भोज्य पदार्थ सुरा की नदियाँ खिलखिलाते कीमती कपड़ों की नुमाइश करते बड़े बूढ़े और जवान खूबसूरत चेहरे बातों ठहाकों से गूंजता माहौल और नेपथ्य में मधुर संगीत की स्वर लहरियाँ। 
पार्टी के होस्ट शिवराज जी कीमती साड़ी और लकदक जेवरों से सजी अपनी खूबसूरत पत्नी शालू की कमर में हाथ डाले गर्मजोशी से मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। शालू भी तो अपनी मधुर मुस्कान और आत्मीयता से सबकी बधाइयाँ स्वीकार कर शादी के पच्चीसवीं सालगिरह की इस पार्टी को पूरी तरह सफल बनाने के लिए हर एक का ध्यान रख रही थीं। 
बहुत खुश थी शालू कि आज शिवराज उनके साथ हैं। सभी मेहमानों के सामने घुटनों के बल बैठ कर जब उन्होंने शालू से फिर शादी की रजामंदी मांगी तो वह किसी नवयौवना सी शर्मा गई। आज कोई भी उसकी किस्मत पर रश्क कर सकता था। 
खाने पीने के बाद मेहमान एक एक कर जाने लगे महफ़िल खाली होने लगी। शिवराज अब तक नशे में धुत्त हो चुके थे शालू बड़ी मुश्किल से उन्हें बैडरूम तक लाई। बिस्तर पर लिटा कर उनके जूते उतारने लगी तभी शिवराज नींद और नशे में बड़बड़ाये निशा डार्लिंग आय लव यू। 
कविता वर्मा

Friday, January 27, 2017

इंतज़ार


जब कहानियाँ लिखना शुरू किया था तब यह कहानी लिखी थी। समय के साथ लेखनी में कुछ परिपक्वता आई तो लगा इसे फिर से लिखना चाहिए। एक प्रयास किया है पढ़िए और बताइये कैसी लगी ?


युवा उम्र का आकर्षण कब प्रेम में बदल साथ जीने मरने की कसमे खाने लगता है बिना परिवार की राय जाने या अपनी जिम्मेदारियों को समझे। यथार्थ से सामना होते ही प्रेम के सामने एक अलग ही व्यक्तित्व नज़र आता है जिससे नज़रें मिलाना खुद के लिए ही मुश्किल होने लगता है। प्रेम में किसी को तो गहरी चोट लगती है और उसके निशान सारी जिंदगी के लिए सीने पर अंकित हो जाते हैं। उम्र के किसी पड़ाव पर जब बिछड़े प्रेम से सामना होता है तब अतीत किसी आईने की तरह असली चेहरा दिखा देता है और उसका सामना करना कठिन होता है। एक तरफ प्रायश्चित करने का बोध होता है तो दूसरी तरफ प्रेम पाने की ललक। तब क्या फैसला होता है युवा मन सा या उम्र को सम्मान देते हुए फिर परिस्थितियों के अनुसार। जानना दिलचस्प होगा मेरी कहानी इंतज़ार में।

http://hindi.pratilipi.com/kavita-verma/intezaar

Monday, January 23, 2017

मातृभारती कथा कड़ी आइना सच नहीं बोलता

मातृभारती पर हमारा साझा उपन्यास आइना सच नहीं बोलता प्रकाशित हुआ है जिसे 13 लेखिकाओं ने मिल कर लिखा है। दिल्ली पुस्तक मेले में इस का लोकार्पण किया गया जिसे बेहतरीन प्रासाद मिला। इसकी अब तक 20 कड़ी प्रकाशित हो चुकी हैं। मोबाइल पर मातृभारती एप डाउनलोड करके आप इसे पढ़ सकते हैं। यह पहला प्रयोग है जिसमे पूरा उपन्यास ई बुक के रूप में है और अलग अलग लेखिकाओं के द्वारा लिखा गया है।
http://matrubharti.com/book/6191/

http://matrubharti.com/book/6337/

http://matrubharti.com/book/6441/

http://matrubharti.com/book/6541/

मातृभारती ई बुक्स पोर्टल

दोस्तों मातृभारती ई बुक्स का एक पोर्टल है जिस पर मेरी कहानियाँ प्रकाशित की गई हैं। आप मोबाइल में मातृभारती एप डाउनलोड करके इन्हें पढ़ सकते हैं। मेरी कहानियों के अलावा भी हजारों लेखकों की लाखों कहानियाँ यहाँ मौजूद हैं। मेरी कहानी डर , यात्रा , दलित ग्रंथि , आसान राह की मुश्किल , हैण्ड ब्रेक , जंगल की सैर ( बाल कहानी ) और बेटी के नाम पत्र के लिंक नीचे दे रही हूँ। कृपया पढ़ें और अपनी राय जरूर दें।
http://matrubharti.com/book/4580/

http://matrubharti.com/book/4470/

http://matrubharti.com/book/4298/

http://matrubharti.com/book/6024/

http://matrubharti.com/book/5492/

http://matrubharti.com/book/4169/

मातृभारती के होम पेज पर आप जा सकते है http://matrubharti.com/#homepage  

Sunday, January 22, 2017

सुविधा

 
पार्क की उस बेंच पर वे दो लड़के हमेशा दिखते थे मोबाइल में सिर घुसाये दीन दुनिया से बेखबर। रमेश और कमल रोज पार्क में घूमने आते उन्हें देखते और मुंह बिचकाते ये नई पीढ़ी भी एकदम बर्बाद है। कभी-कभी उनका मन करता उन्हें समझायें कि इस तरह उनकी आंखें और दिमाग खराब हो जायेगा पर युवा पीढ़ी की बदमिजाजी झेले हुए थे इसलिए हिम्मत नहीं होती थी। 
उस दिन एक लड़के ने दूसरे को अपना मोबाइल दिखाते हुए कुछ पूछा तो रमेश जी के कान खड़े हो गए। उन्होंने मोबाइल में देखना चाहा पर देख न पाये। कमल बाबू की तरफ देखा वह भी अचरज में थे। रहा न गया तो उस लड़के से पूछ ही लिया 'आप लोग मोबाइल में क्या करते रहते हो और अभी आप किस बारे में बात कर रहे थे।
लड़के ने उन दोनों को देखा फिर एकदूसरे को देखते हुए बोले हम पावर ब्रेक के मैकेनिज्म को पढ कर समझने की कोशिश कर रहे हैं। गरीब और स्वर्ण परिवार से होने के कारण कालेज में एडमिशन नहीं ले पाये पर हमारे दोस्त कालेज में हैं वे लेक्चर के वीडियो हमें भेज देते हैं जिन्हें देखकर हम सीखते हैं और एक गैराज में काम करते हुए प्रेक्टिस करते हैं। कभी-कभी इंटरनेट से भी लेक्चर डाउनलोड कर लेते हैं।
रमेश जी बहुत प्रभावित हुए फिर बोले लेकिन बिना डिग्री के तुम कहीं नौकरी तो नहीं पा सकते।
यह सुनकर वे दोनों मुस्कुराने लगे हां नौकरी तो नहीं पा सकते पर अपना गैरेज खोल कर दूसरों को नौकरी तो दे सकते हैं।
कविता वर्मा

Thursday, December 22, 2016

सूर्योदय सूर्यास्त और पीस पगोडा


 सुबह गाड़ियों के हॉर्न की आवाज़ों से नींद बहुत जल्दी खुल गई ये सब सुबह टाइगर पॉइंट पर जाने वाली गाड़ियाँ थीं जो कंचनजंघा पर सूर्योदय देखने जा रही थीं। हमने भी टैक्सी की बात की थी तो ड्राइवर ने कहा कोई फायदा नहीं है साब सुबह बादल हो जाते हैं कुछ दिखाई नहीं देता क्यों अपनी नींद ख़राब करते हैं। यह सुन कर हमने जाने  इरादा बदल दिया था पर अब नींद खुल ही गई थी और खिड़की से कंचनजंघा की चोटी दिख ही रही थी तो स्वेटर शॉल पहन कर खिड़की में खड़े हो गये। गहरे नीले जामुनी आसमान में धवल शिखर शान से सिर उठाये खड़ा था देखते ही देखते धुऐं की एक काली लकीर ने उसे ढँक लिया आसमान का रंग गहरे नीले से चमकीले नीले में बदलता जा रहा था और धवल शिखर कालिमा के आगोश में छुपता जा रहा था और देखते देखते पूरी तरह गायब हो गया। बहुत निराशा हुई सिर्फ इसलिए नहीं कि सूरज की पहली किरण से सुनहरी हुई चोटी को नहीं देख पाई बल्कि इसलिए भी कि जितना हम ज्ञान और जानकारी से लैस होते जा रहे हैं उतने ही कर्तव्यों से लापरवाह भी। लगातार चलती डीजल गाड़ियाँ उनके हॉर्न का शोर हमारा शोर धूल कचरा सुदूर प्राकृतिक स्थानों को भी इस कदर प्रदूषित कर चुका है इसके बाद कहाँ पनाह मिलेगी समझ नहीं आता। 
सुबह हो चुकी थी आसमान में धुएँ की धुंध थी अब सोने का मन ना था तो सोचा चलो सैर कर आयें बस तैयार हुए और पहुँच गये ओपन थियेटर वाले चौक में। सफाई चल रही थी लोग टहल रहे थे कुछ लोग बेंच पर बैठे थे। तभी एक व्यक्ति ने जेब से एक रोटी निकाली और बारीक़ टुकड़े कर बिखेर दिये। कबूतरों का एक झुण्ड तुरंत रोटी खाने पहुँच गया। इसके बाद तो  एक के बाद एक लोग आते गये और रोटी बाजरा बिस्किट के टुकड़े कर डालने लगे। थोड़ी ही देर में चिड़िया कबूतर और कुत्ते सभी अघा गये और उन्होंने खाना बंद कर दिया सफाई करने वालों ने बचा खाना झाड़ कर डस्टबिन के हवाले कर दिया। हमारी आस्थाएं भावनाएँ गलत नहीं हैं बस उनको नियंत्रित करने में कहीं चूक जाते हैं। 
टैक्सी टाइम से आ गई पहला स्थान था जापानी मोनेस्ट्री पीस पगोडा। मुख्य सड़क से काफी अंदर भव्य सफ़ेद स्तूप जिसपर बुद्ध की सुनहरी मूर्ति बगल के पहाड़ को टक्कर देते ऊँचे ऊँचे पेड़ साफ सुथरी खुली खुली जगह जिसमे करीने से लगा छोटा सा बगीचा अर्ध वृत्ताकार सीढियाँ और एक दूसरे से मुखातिब कंचनजंघा और बुद्ध। एक नज़र में प्यार हो जाये ऐसी जगह से। लेकिन यहाँ ढम ढम की आवाज़ क्यों ? शहर का शोर कुछ इस कदर कानों में भरा हुआ है कि कोई भी आवाज़ अब सहन नहीं होती। मोनेस्ट्री में अंदर गये भव्य मूर्ति के सामने एक बड़े ड्रम पर मंत्र उच्चार के साथ बीट दी जा रही थी एक बूढी महिला ने बैठने का इशारा किया फिर वहीँ रखे रैकेट जैसे ड्रम और ड्रम स्टिक उठाने का इशारा किया। बोर्ड पर एक मंत्र लिखा था जिसे पढ़ कर उसके अनुसार ड्रम बजाना था। थोड़ी ही देर में हम उस लय में आ गये और फिर उसमे ऐसे रमे कि थोड़ी देर के लिये सब कुछ भूलकर सिर्फ मंत्रमय ध्यान में पहुँच गये। उठने का मन तो नहीं था लेकिन अगले स्पॉट पर भी जाना था  मसोस कर उठना ही पड़ा। इसके बाद स्तूप पर गये। इतनी ऊँचाई पर एक तरफ पहाड़ की दीवार और दूसरी तरफ विशाल नीला आसमान जिसकी हद तय करती कंचनजंघा की चोटी। सिक्किम के आदिम जन कंचनजंघा की पूजा करते हैं इसलिए भारत की इस सबसे ऊँची चोटी पर भूटान या चीन की तरफ से ही चढ़ा जाता है। कंचनजंघा नेशनल पार्क में और इसके बेस कैंप में लोग हर नियम का बिना किसी चौकसी के पालन करते हैं। स्तूप के चारो तरफ चार विशाल सुनहरी मूर्ति और उनके बीच चार लकड़ी की नक्काशी के भित्ति चित्र थे। 
अगला पड़ाव था बतिस्ता लूप। दार्जिलिंग प्रसिद्द है अपनी टॉय ट्रेन के लिये। अंग्रेजों के ज़माने से शुरू हुई यह ट्रैन अभी भी दार्जिलिंग से सिलीगुड़ी के बीच चलती है। बतिस्ता लूप ट्रेन की दिशा बदलने के लिये एक स्थान है। सुबह साढ़े दस बजे यहाँ एक ट्रैन आती है। कोयले से चलने वाली छोटी सी छुकछुक गाड़ी जब आई हवा में कोयले की कनि बिखर गई। सबने खूब फोटो खींचे कुछ खाली डब्बे में चढ़ गये। यहाँ बेहद खूबसूरत बगीचा भी है गुनगुनी धूप खूबसूरत फूल छोटी सी रेलगाड़ी एक स्वप्नलोक सी दुनिया। सड़क के दूसरी और दो तीन रेस्टॉरेंट हैं। हम बिना नाश्ते के चल दिए थे रेस्टॉरेंट की पहली मंजिल पर कांच की दीवारों के परे बिखरे अनंत आसमान और धवल शिखर को निहारते कॉफी के घूँट भरना एक सपने के पूरा होने जैसा है। 
अगला पड़ाव था एक और मोनेस्ट्री। परिसर में छोटे छोटे बच्चे बुद्धिस्ट ड्रेस पहने खेल रहे थे। ये बच्चे यहीं रह कर अपनी शिक्षा पूरी करते हैं इसके बाद कुछ अपनी भौतिक दुनिया में वापस लौट जाते हैं और कुछ आजीवन अविवाहित रहने का फैसला कर मठ में ही रहते हैं। ये अपनी गहरी मैरून बौद्ध ड्रेस के ऊपर एक सुनहरी जैकेट पहनते हैं। हर टूरिस्ट स्पॉट के बाहर स्थानीय लोग ऊनी कपड़े मोज़े टोपी शॉल लिये नज़र आते हैं। पर्यटक ही उनकी कमाई का साधन है। पुरुष टैक्सी गाइड एजेंट जैसे काम करते हैं महिलायें व्यवस्था दुकानदारी जैसे काम संभालती हैं। 
ज़ू चिड़ियाघर और हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान दोनों एक ही कैंपस में हैं। जानवरों के प्राकृतिक आवास पहाड़ी ढलान को ज्यों का त्यों रख कर उसमे अनगढ़ सा आवास बना कर प्राकृतिक रूप दिया गया है। ऊँची नीची पहाड़ी जगह में जानवर भी जंगल सा ही महसूस करते होंगे। यहीं है हिमालयीन पर्वतारोहण संस्थान जिसमें माउंट एवेरेस्ट के पहले एक्सपिडिशन में पहने कपडे जूते उपयोग किये औजार टेंट आदि सामान रखे हैं। इन्हें देख कर मुँह आश्चर्य से खुला रह जाता है। आज तो इस दिशा में बहुत तरक्की हो गई है। मौसम बर्फ ठण्ड के अनुसार सभी साजोसामान की क्वालिटी बहुत सुधर गई है। पानी की बॉटल रस्सी खाने पीने की सुविधा गैस आदि। पर उस समय के साजो सामान को देख कर उन पर्वतारोहियों की हिम्मत दंग करती है। इस संग्रह में पर्वतारोहण की पूरी विकास यात्रा प्रभावी रूप से प्रदर्शित की गई है। समय कम था अभी रोप वे पर जाना था इसलिए जू का कुछ हिस्सा जल्दी जल्दी पार किया। 
यह पाँच किलोमीटर की रोप वे है ढाई किलोमीटर जाना ढाई आना। एक ट्रॉली में छह लोग बैठते हैं हम दो थे लाइन के आखिर में खड़े तभी वहाँ का कर्मचारी आया और हमें लाइन में सबसे आगे आने को कहा। दरअसल चार लोगों के ग्रुप के साथ बैठने के लिए दो लोग चाहिए इसलिए हमारा नंबर जल्दी आ गया। हमारे साथ थे चार लड़के उनकी बातों में कई गलत जानकारियाँ थीं जिन्हें मैंने ठीक कर दिया और फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ। पता चला वो स्टूडेंट्स हैं और बांग्लादेश से आये हैं। आगे जाने का कोई फिक्स प्लान नहीं है और यहाँ वहाँ से जानकारी ले रहे हैं कि आगे कहाँ जायें ? रोप वे खूबसूरत चाय के बागानों के ऊपर से गुजरता है नीचे एक स्कूल एक छोटा सा गाँव पगडण्डी जैसे रास्ते दिखते हैं। स्कूल के बाहर बच्चे खेल रहे थे लौटते हुए बच्चे उछलते कूदते घर जाते हुए दिखे। दूर तक पहाड़ों की श्रृंखला और दूर पहाड़ पर दिखता एक मंदिर एक बड़ी मूर्ति। पता चला यह जगह दक्षिण सिक्किम में है। 
यहाँ से टी स्टेट जाने के बीच में पड़ती है तेनसिंग रॉक। लगभग 30 /40 फ़ीट ऊँची एक चट्टान जिस पर माउंटेन क्लाइम्बिंग का शौक पूरा किया जा सकता है। यह अनुभव शानदार था। आखरी स्टॉप था टी स्टेट। यहाँ दूरबीन लेकर बैठे लोग दक्षिण सिक्किम की वह मूर्तियाँ और मंदिर दिखाते हैं। चाय बागान के बाहर छोटे छोटे स्टाल जहाँ चाय दालचीनी लौंग इलायची आदि मिलती है। हमने भी थोड़ा बहुत सामान लिया और वापसी में फिर मॉल रोड पर घूमते हुए सूर्यास्त देखते चहल पहल देखते रहे। यह दार्जिलिंग की आखरी शाम थी हम देर तक वहाँ बैठे रहे फिर हेस्टी टेस्टी में खाना खा कर वापस होटल आ गये। 
टैक्सी ड्राइवर टैक्सी के मालिक ही थे और शांत और हँसमुख भी। कई जानकारियाँ वो देते रहे। उन्ही से कहा कि अगले दिन सुबह हमें गंगटोक जाना है अगर कोई ड्राप आउट वाली टैक्सी हो तो बताना और रात ही उनका फोन आ गया एक टैक्सी है जो गंगटोक जा रही है पर जाम से बचने के लिए सुबह जल्दी निकलना होगा। आते हुए जाम देख चुके थे इसलिये सुबह जल्दी ही दार्जिलिंग को विदा कह दिया एक बार फिर आने का वादा करके। 
कविता वर्मा 


जिंदगी इक सफर है सुहाना

  खरगोन इंदौर के रास्ते में कुछ न कुछ ऐसा दिखता या होता ही है जो कभी मजेदार विचारणीय तो कभी हास्यापद होता है लेकिन एक ही ट्रिप में तीन चार ऐ...